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मध्य प्रदेश समेत पांच चुनावी राज्यों में साल में 30 दिन से भी कम चली विधानसभा की कार्यवाही : रिपोर्ट

PRS Legislative Research की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान विधानसभा की साल में औसतन 29 दिन और तेलंगाना विधानसभा की 15 दिन बैठक होती है। 2019 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ में विधानसभा की औसत बैठकें साल में 23 दिन हुईं जिसमें बैठने का औसत समय पांच घंटे था। इसमें कहा गया है कि मध्य प्रदेश विधानसभा की बैठकें 16 दिनों तक हुईं

By AgencyEdited By: Shashank MishraUpdated: Mon, 09 Oct 2023 06:06 PM (IST)
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रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान विधानसभा की साल में औसतन 29 दिन और तेलंगाना विधानसभा की 15 दिन बैठक होती है।

पीटीआई, नई दिल्ली।  चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों का आज एलान कर दिया है। इस बीच थिंक टैंक द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार जिन पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने जा रहें हैं उन सभी राज्यों में बैठकें साल में 30 दिन से कम होती हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में बैठकों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में लगातार कम हो रही है।

मिजोरम विधान सभा की बैठक 18 दिन हुई

समाचार एजेंसी पीटीआई ने PRS Legislative Research की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान विधानसभा की साल में औसतन 29 दिन और तेलंगाना विधानसभा की 15 दिन बैठक होती है। 2019 से 2023 के बीच, छत्तीसगढ़ में विधानसभा की औसत बैठकें साल में 23 दिन हुईं, जिसमें बैठने का औसत समय पांच घंटे था। इसमें कहा गया है कि मध्य प्रदेश विधानसभा की बैठकें 16 दिनों तक हुईं, औसतन प्रतिदिन लगभग चार घंटे, और मिजोरम विधानसभा की बैठकें 18 दिनों तक हुईं, जिनमें से प्रत्येक बैठक लगभग पांच घंटे की थी।

चुनाव आयोग ने सोमवार को इन पांच राज्यों के लिए 7 से 30 नवंबर के बीच होने वाले विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर, राजस्थान में 23 नवंबर, तेलंगाना में 30 नवंबर और मिजोरम में 7 नवंबर को एक चरण में विधानसभा चुनाव होंगे, जबकि छत्तीसगढ़ में दो चरणों में 7 नवंबर (20 सीटें) और 17 नवंबर (70 सीटें) को पर मतदान होगा।

विधान सभा की बैठकों का वार्षिक औसत गिरा

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान विधानसभा में इन पांच राज्यों में सबसे अधिक बैठकें हुईं - प्रति वर्ष लगभग 29 दिन, और प्रत्येक बैठक लगभग सात घंटे लंबी थी। इसमें कहा गया है कि जिन पांच राज्यों के लिए दीर्घकालिक डेटा उपलब्ध है, उनमें से चार में समय के साथ बैठकें कम हो गई हैं।

अपने पहले 10 वर्षों में, राजस्थान विधानसभा की बैठक औसतन साल में 59 दिन होती थी, जबकि एमपी विधानसभा की बैठक साल में 48 दिन होती थी। पिछले 10 वर्षों में, औसत वार्षिक बैठक के दिन राजस्थान में घटकर 29 और मध्य प्रदेश में 21 रह गए हैं।

2017 में तेलंगाना में सबसे अधिक 37 दिन बैठकें हुईं। हालांकि, तब से हर साल यह आंकड़ा कम होता जा रहा है। इन राज्य विधानसभाओं में लगभग 48 प्रतिशत विधेयकों पर उसी दिन या पेश होने के अगले दिन विचार किया गया और पारित किया गया। मिजोरम ने अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान 57 विधेयक पारित किए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में, छत्तीसगढ़ विधानसभा ने छह घंटे की एक बैठक में 14 विधेयक पारित किए। मध्य प्रदेश में, 2022 में दो दिनों में 13 विधेयक पेश और पारित किए गए, और दोनों बैठकें एक साथ पांच घंटे तक चलीं। इन राज्यों द्वारा बड़ी संख्या में अध्यादेश भी जारी किये गये। 2019 और 2023 के बीच, मध्य प्रदेश ने 39 अध्यादेश जारी किए, उसके बाद तेलंगाना (14) और राजस्थान (13) का स्थान रहा।

मध्य प्रदेश में 2020 में 11 अध्यादेश जारी किए गए, जब विधानसभा की बैठक केवल छह दिन चली। इनमें से छह बिलों द्वारा प्रतिस्थापित किए बिना ही समाप्त हो गए। 2021 में जारी किए गए अध्यादेशों की संख्या बढ़कर 14 हो गई, जब विधानसभा की बैठक 20 दिनों तक चली।

बता दें राज्य तब अध्यादेश जारी करते हैं जब विधानसभाएं सत्र में नहीं चल रही होती हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राजस्थान विधानसभा ने अपने कार्यकाल के दौरान एक उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं किया। मार्च 2020 में सरकार बदलने के बाद से मध्य प्रदेश में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में 17 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं।

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राजस्थान में यह अनुपात 13 फीसदी और मध्य प्रदेश में 10 फीसदी से भी कम है। छत्तीसगढ़ में, महिला विधायकों की उपस्थिति 93 प्रतिशत थी, पुरुषों की लगभग 88 प्रतिशत; मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की उपस्थिति औसतन 79 प्रतिशत और पुरुषों की 81 प्रतिशत थी, जबकि राजस्थान में महिला विधायकों की औसतन उपस्थिति 77 प्रतिशत और पुरुषों की 82 प्रतिशत थी। इसमें कहा गया है कि राजस्थान में बहस में पुरुष और महिला सदस्यों की औसत भागीदारी लगभग बराबर है।

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