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बेअंत सिंह हत्याकांड: कौन है बलवंत सिंह, 28 साल से मांग रहा दया की भीख; अब SC सुनवाई को तैयार

बलवंत सिंह राजोआना को 31 अगस्त 1995 को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। राजोआना को 1 अगस्त 2007 को चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआइ अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी।

By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Thu, 02 Mar 2023 11:29 AM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट बेअंत सिंह हत्याकांड में बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुनवाई करेगा

चंडीगढ़, डिजिटल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है। बलवंत सिंह के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी मौत की सजा को कम करने के लिए दया याचिका दायर की थी, जिसपर आज सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिल गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उसकी दया याचिका पर विचार में देरी के लिए मौत की सजा को कम करने की मांग की गई थी।

बता दें कि पंजाब की पटियाला जेल में बंद बलवंत सिंह राजोआना को 31 अगस्त 1995 को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। राजोआना को 1 अगस्त 2007 को चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआइ अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी।

कौन है बलवंत सिंह राजोआना

बलवंत सिंह राजोआना का जन्म 23 अगस्त 1967 को पंजाब, लुधियाना के राजोआना कालां गांव में हुआ। लुधियाना के जीएचजी खालसा कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी की और 1 अक्टूबर 1987 में पंजाब पुलिस में शामिल हो गया। बलवंत सिंह के पिता मलकीत सिंह को आतंकवादियों ने मार दिया था। इसी दौरान एक केस में संदिग्ध बलवंत सिंह के दोस्त हरपिंदर सिंह उर्फ गोल्डी को पंजाब पुलिस ने गोली मार दी थी। इसके बाद 1993 में बलवंत सिंह राजोआना को गोल्डी के माता-पिता, जसवंत सिंह और सुरजीत कौर ने कानूनी तौर पर गोद ले लिया था।

राजोआना की बहन कमलदीप कौर एक राजनेता हैं, जिन्होंने 2022 में उपचुनाव घोषित होने पर SAD-BSP के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था।

31 अगस्त 1995 को दिलावर सिंह ने अपनी कमर की बेल्ट में 1.5 किलोग्राम विस्फोटक बांध लिया और बलवंत सिंह राजोआना के साथ दिल्ली लाइसेंस प्लेट वाली एक सफेद रंग के एंबेसडर में सचिवालय परिसर पहुंचे।

कथित तौर पर दिलावर और बलवंत ने यह तय करने के लिए एक सिक्का उछाला था कि आत्मघाती हमलावर कौन बनेगा। थोड़ी देर बाद जब बलवंत चला गया, तो दिलावर ने एक कागज के टुकड़े पर लिखा, जे में शहीदान दी याद जो गीत ना गाये, ते ओहना दियां रूहान कुरालुं ग्यान।

शाम 5.10 बजे, तीन सफेद एंबेसडर बेअंत सिंह को लेने के लिए सचिवालय परिसर में वीआईपी पोर्टिको के पास रुकी।

जैसे ही बेअंत सिंह कार में कदम रखने वाले थे, दिलावर उनकी बुलेट प्रूफ कार की ओर बढ़े और बम का बटन दबा दिया।

सचिवालय में जाहिर तौर पर किसी को कुछ भी शक नहीं हुआ, क्योंकि दिलावर सिंह पुलिस की वर्दी में हाथ में फाइलें लेकर मुख्यमंत्री की कार के पास पहुंचे थे।

इस विस्फोट में 3 भारतीय कमांडो सहित 17 अन्य लोगों की जान चली गई। हत्या के दिन बेअंत सिंह के साथ उसका घनिष्ठ मित्र रणजोध सिंह मान भी था।

सितंबर 1995 में चंडीगढ़ पुलिस ने दिल्ली नंबर के साथ एंबेसडर कार बरामद की, जिसके कारण पहले दोषी लखविंदर सिंह को गिरफ्तार किया गया।

फरवरी 1996 में गुरमीत सिंह, नसीब सिंह, लखविंदर सिंह, नवजोत सिंह, जगतार सिंह तारा, शमशेर सिंह, जगतार सिंह हवारा, बलवंत सिंह राजोआना और परमजीत सिंह भेवरा के खिलाफ आरोप तय किए गए।

राजोआना ने 25 दिसंबर 1997 को बुड़ैल जेल चंडीगढ़ की अस्थायी अदालत में अपना अपराध कबूल किया और राजोआना ने खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए।