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जहां दैत्यराज जलंधर का धड़ गिरा, वहीं हुआ जालंधर का उदय; लव-कुश की राजधानी था यह नगर

वर्तमान जालंधर शहर के साथ एक कथा दैत्यराज जलंधर से जुड़ी है। कहते हैं यहीं पर भगवान शंकर और जलंधर के बीच युद्ध हुआ था। जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर आज भी महानगर में मौजूद है।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Sat, 15 Oct 2022 01:09 PM (IST)
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भगवान शिव ने जालंधर में ही दैत्यराज जलंधर का वध किया था। सांकेतिक

जालंधर, जेएनएन। पंजाब के तीन प्रमुख नगरों में एक जालंधर के नाम के पीछे भी कई कथाएं प्रचलित हैं। इसका नाम राक्षस जलंधर जो कि भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुआ था, के साथ भी जोड़ा जाता है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि सागर मंथन के समय देवी लक्ष्मी के साथ जलंधर भी उत्पन्न हुआ था। इस लिहाज से देवी लक्ष्मी और जलंधर भाई-बहन थे।

जलंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी और उसके प्रताप से कोई उसको मार नहीं सकता था। राक्षस जलंधर को इसका अहंकार हो गया। उसका अत्याचार बढ़ने लगा। वह देवी-देवताओं और यहां तक की भगवान का भी निरादर करने लगा। इस पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से उसके वध की गुहार लगाई।

भगवान विष्णु भगवान समझाने गए तो जालंधर ने युद्ध को ललकारा। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से यह वचन ले लिया था कि जालंधर की हत्या न करें क्योंकि दोनों जल से उत्पन्न हुए थे। इस पर भगवान विष्णु युद्ध पूरा किए ही वापस चले गए। फिर नारद जी के आग्रह पर भगवान शंकर ने जालंधर से युद्ध किया। 

भगवान शंकर जानते थे कि जलंधर की पत्नी देवी वृंदा के कारण जलंधर का वध करना कठिन है। इसलिए वह जलंधर के स्वरूप में उसके सामने आए। वृंदा उन्हें अपना पति समझ व्यवहार करने लगी। पतिधर्म कमजोर होने पर भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। उसका सिर कटकर ज्वाला जी में गिरा। जहां धड़ गिरा, वहां जालंधर नगर का उदय हुआ।

इस तरह भगवान विष्णु बने शालिग्राम

भगवान विष्णु वृंदा के पति की रक्षा नहीं कर सके। इस पर सती (वृंदा) ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह धरती पर शालिग्राम यानि शिला के रूप में रहें। इस पर देवी लक्ष्मी ने वृंदा से अपने पति भगवान विष्णु को इस श्राप से मुक्त करने की विनती की। तब देवी वृंदा ने भगवान विष्णु को अपने समीप रहने की शर्त पर अपने श्राप को संशोधित कर दिया।

देवी वृंदा की राख पर उगा तुलसी का पौधा

देवी वृंदा के सती होने के पश्चात उस राख से एक नन्हे पौधे ने जन्म लिया। ब्रह्मा जी ने इसे तुलसी नाम दिया। भगवान विष्णु ने देवी तुलसी को भी वरदान दिया कि वह सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली माता कहलाएंगी और वर्ष में एक बार शालिग्राम और तुलसी का विवाह भी होगा। जालंधर में आज भी जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं यहीं पर वृंदा ने आत्मदाह किया था।

जालंधर बना लव-कुश की राजधानी

उत्तर रामायण में वर्णित है कि भगवान वाल्मीकि के आश्रम में सीता को प्रभु राम ने जब वनवास दिया था, तब वह गर्भावस्था में थी। लक्ष्मण जी ने सीता को भगवान वाल्मीकि के आश्रम के समीप छोड़ दिया। भगवान वाल्मीकि आश्रम में ही सीता ने लव और कुश को जन्म दिया। बड़े होकर लव इस क्षेत्र के राज सिंहासन पर आसीन हुए जालंधर को उनकी पहली राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ।