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Dwadash Jyotirlinga Stotram: सोमवार के दिन करें द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत का पाठ, सभी कष्टों का होगा नाश

Dwadash Jyotirlinga Stotram धार्मिक मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा उपासना करने से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। इसके लिए साधक सोमवार के दिन भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 14 May 2023 03:08 PM (IST)
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Dwadash Jyotirlinga Stotram: सोमवार के दिन करें द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत का पाठ, सभी कष्टों का होगा नाश

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Dwadash Jyotirlinga Stotram: सोमवार के दिन देवों के देव महादेव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु शिव मंदिर जाते हैं। शिव मंदिरों को सजाया जाता है। इस दिन भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा-उपासना करने से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। इसके लिए साधक सोमवार के दिन भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। इस दौरान साधक शिव जी को प्रसन्न करने हेतु शिव चालीसा, शिव तांडव, शिव स्त्रोत का पाठ और शिव मंत्रों का जाप करते हैं। अगर आप भी देवों के देव महादेव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन पूजा के समय द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत का पाठ अवश्य करें। इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन में व्याप्त सभी कष्टों का नाश होता है। आइए, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत का पाठ करें-

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।

उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम् ॥१॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम् ।

सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥२॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे ।

हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये ॥३॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥४॥

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम्

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।

भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥1

श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।

तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥2

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।

अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥3

कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।

सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥4

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।

सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥5

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।

सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥6

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।

सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥7

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।

यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥8

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।

श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥9

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।

सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥10

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।

वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥11

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।

वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥12

ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।

स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥13

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