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Mahabharat Katha: महाभारत का एक ऐसा योद्धा जो आज भी है जीवित, जाने उनसे जुड़े कुछ तथ्य

Mahabharat Katha पौराणिक कथाओं में ऐसा उल्लेख है कि महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बचे योद्धाओं में एक ऐसे भी योद्धा हैं जो आज भी अपराजित और जीवित हैं। उनका जन्म भगवान शिव के आशीर्वाद से हुआ था। आइए जानते हैं उनके बारे में।

By Kartikey TiwariEdited By: Updated: Tue, 01 Jun 2021 10:00 AM (IST)
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Mahabharat Katha: महाभारत का एक ऐसा योद्धा जो आज भी है जीवित, जाने उनसे जुड़े कुछ तथ्य

Mahabharat Katha: पौराणिक कथाओं में ऐसा उल्लेख है कि महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बचे योद्धाओं में अश्‍वत्थामा एक मात्र ऐसे योद्धा हैं, जो आज भी अपराजित और जीवित हैं। भगवान शिव के वरदान से गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी को एक पुत्र हुआ, जो एक महान योद्धा हुए। वे अश्वत्थामा थे। अश्वत्थामा भी अपने पिता के ही तरह शास्त्र व शस्त्र कला में पारंगत थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था, वो युद्ध में कौरवों की सेना के सेनापति थे। उनके युद्ध कौशल ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की सेना तितर-बितर कर दी थी, वो अकेले के दम पर ही पूरा युद्ध लड़ने की ताकत रखते थे। जागरण आध्यात्म में आज जानते हैं अश्‍वत्थामा के जीवन से जुड़े कुछ रहस्य....

1. अश्‍वत्थामा ने जन्म लेते ही अश्व के समान गरजना की थी, जो सभी दिशाओं में गूंजा था, तभी आकाशवाणी हुई थी कि इस बालक का नाम अश्‍वत्थामा होगा।

2. अश्‍वत्थामा ने अपना बचपन बहुत ही संघर्ष में बिताया। स्थिति ये थी कि उनके जन्म के बाद द्रोण के घर में खाने तक की कमी हो गई थी। कथाओं के अनुसार, चावल के आटे का घोल पीकर बालक अश्‍वत्‍थामा कहते थे, 'मैंने दूध पी लिया।'

3. अपनी आर्थिक स्थिति से परेशान द्रोण ने मदद के लिए अपने बचपन के मित्र राजा द्रुपद के पास जाने का विचार किया। वो अपने पुत्र अश्‍वत्थामा के साथ राजा द्रुपद के दरबार में जा पहुंचे, लेकिन वहां उन्हें धिक्कार का ही सामना करना पड़ा। जो अश्‍वत्थामा ने अपनी आखों से खुद देखी। बाद में पांडवों ने गुरु दक्षिणा में गुरू द्रोण को द्रुपद का राज्य छीनकर दे दिया था।

4. द्रोण अश्‍वत्थामा को लेकर पांचाल राज्य से हस्तिनापुर आ गए, जहां वो कौरवों के आचार्य बन गए और उन्होंने दुर्योधन समेत अर्जुन को शिक्षा दी। जिसके बाद वो भारतवर्ष के सबसे श्रेष्‍ठ आचार्य बनें। उन्हें राज्‍य में भीष्‍म, धृतराष्‍ट्र, विदुर सभी से पूर्ण सम्‍मान प्राप्‍त था, यानी अब उनके कठिनाइयों भरें दिन खत्म हो गए थे।

5. महाभारत के युद्ध में जब राक्षसों की सेना ने भयानक आक्रमण किया, तो सभी कौरव भयभीत हो गए, लेकिन अकेले ही अश्‍वत्थामा वहां खड़े रहे। उन्होंने घटोत्कच के पुत्र अंजनपर्वा का वध किया और पांडवों की एक अक्षौहिणी सेना को भी मार डाला और घटोत्कच को घायल कर दिया।

6. महाभारत युद्ध में नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था, जिसका ज्ञान द्रोण के अलावा किसी योद्धा को नहीं था। यह बहु‍त ही भयंकर अस्त्र था। साथ ही अश्‍वत्थामा के ब्रह्मतेज, वीरता, धैर्य, शस्त्रज्ञान, नीतिज्ञान और बुद्धिमत्ता पर किसी को भी शक नहीं था।

7. अश्‍वत्थामा कौरव सेना के मुख्य महारथी थे। कौरवों ने अपनी सेना में ग्यारह महारथियों को संगठित किया था। वो थे- द्रोण, कृप, शल्य, जयद्रथ, सुदक्षिण, कृतवर्मा, अश्‍वत्थामा, कर्ण, भूरिश्रवा, शकुनि और बाह्‍लीक। यानी अश्‍वत्थामा ग्यारह सेनापतियों में एक मुख्य स्थान पर थे।

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