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Mauni Amavasya 2024: साल 2024 में कब है मौनी अमावस्या? जानें शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि

मौनी अमावस्या के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण सुबह 07 बजकर 05 मिनट से हो रहा है जो देर रात 11 बजकर 29 मिनट तक है। साधक प्रातः काल में स्नान-ध्यान पूजा जप-तप और दान-पुण्य कर सकते हैं। किसी कारणवश प्रातः बेला में पूजा-पाठ नहीं कर पाते हैं तो दोपहर के समय में भी स्नान-दान कर सकते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 15 Jan 2024 05:44 PM (IST)
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Mauni Amavasya 2024: साल 2024 में कब है मौनी अमावस्या? जानें शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Paush Amavasya 2024: सनातन धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन साधक मौन व्रत रख भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस अवसर पर श्रद्धालु गंगा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, सरस्वती एवं नर्मदा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। धर्म शास्त्रों में मौनी अमावस्या की महिमा का बखान विस्तार पूर्वक किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को सौ यज्ञों के समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः साधक मौनी अमावस्या पर स्नान-ध्यान कर श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। आइए, शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि जानते हैं-

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शुभ मुहूर्त

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, माघ अमावस्या 09 फरवरी को सुबह 08 बजकर 02 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 10 जनवरी को ब्रह्म बेला यानी सूर्योदय से पूर्व 04 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना होती है। इसके लिए 09 फरवरी को मौनी अमावस्या मनाई जाएगी।

शुभ योग

मौनी अमावस्या के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण सुबह 07 बजकर 05 मिनट से हो रहा है, जो देर रात 11 बजकर 29 मिनट तक है। साधक प्रातः काल में स्नान-ध्यान, पूजा, जप-तप और दान-पुण्य कर सकते हैं। किसी कारणवश प्रातः बेला में पूजा-पाठ नहीं कर पाते हैं, तो दोपहर के समय में भी स्नान-दान कर सकते हैं।

पूजा विधि

मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु को प्रणाम करें। इस समय मन ही मन उनको प्रणाम करें। मौनी अमावस्या पर बोलने की मनाही होती है। अतः मौन व्रत धारण करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर सुविधा है, तो गंगा नदी में स्नान करें। इस समय बहती जलधारा में काले तिल प्रवाहित करें। अब सर्वप्रथम भगवान भास्कर को अर्घ्य दें। इसके पश्चात दक्षिण दिशा में मुख कर पितरों को जल का अर्घ्य दें। इस दिन पीपल के पेड़ में भी जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। इस समय विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्र जाप करें। पूजा के अंत में आरती-अर्चना कर सुख-समृद्धि और आय में वृद्धि की कामना करें। पूजा-पाठ, दान-पुण्य करने के पश्चात मौन व्रत खोलें।

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