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Pauranik Kathayen: जब इंद्र देव ने अपने शत्रु दैत्यराज मय से मांगा था वर, पढ़ें यह प्रेरक कथा

Pauranik Kathayen एक समय नमुचि नाम का राक्षस था जो दैत्यों का राजा था। देवताओं के राजा इंद्र से उसे शत्रुता थी।

By Kartikey TiwariEdited By: Updated: Fri, 03 Jul 2020 08:05 AM (IST)
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Pauranik Kathayen: जब इंद्र देव ने अपने शत्रु दैत्यराज मय से मांगा था वर, पढ़ें यह प्रेरक कथा

Pauranik Kathayen: एक समय नमुचि नाम का राक्षस था, जो दैत्यों का राजा था। देवताओं के राजा इंद्र से उसे शत्रुता थी। एक बार इंद्र देव अचानक युद्ध छोड़कर कहीं जाने लगे, ऐसा देखकर दैत्यराज नमुचि भी उनके पीछे पीछे चल दिया। दैत्यराज को अपने पीछे देखकर इंद्र देव भयभीत हो गए। वह अपने वाहन ऐरावत हाथी को छोड़कर समुद्र के फेन में ही प्रवेश कर गए। तब इंद्र देव ने अपने अस्त्र से नमुचि पर प्रहार करना शुरू कर दिया। वे वज्र से सागर के फेन को दैत्यराज पर फेंकते। अंतत: उनका शत्रु नमुचि उनके प्रहार से मारा गया।

नमुचि की मृत्य की खबर पाकर उसका छोटा भाई मय ने अत्यधिक क्रोधित हो गया। उसने अपने भाई के संहारक इंद्र देव का सर्वनाश करने के लिए अत्यंत कठोर तपस्या की। देवताओं को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उसने कई मायावी शाक्तियां और विद्याएं प्राप्त कर ली। यह इंद्र देव और अन्य देवताओं के लिए परेशानी खड़ी कर देने वाली बात थी। इतना ही नहीं, उसने जगत के पालनहार भगवान विष्णु को भी प्रसन्न करके वर प्राप्त कर लिया और शक्तिशाली हो गया।

राक्षस कुल में जन्म लेने वाला मय दानी और प्रिय वचन बोलने वाला था। उसने इंद्र द्रेव पर विजय प्राप्त करने के लिए अग्नि और ब्राह्मणों की पूजा करनी प्रारंभ कर दी। वह अपने द्वार पर आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ या निराश होकर जाने नहीं देता था। ऐसे करने से सब लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। इंद्र देव को मय की इन गतिविधियों के बारे में सूचना मिल गई।

फिर एक दिन इंद्र देव एक ब्राह्मण का वेष धारण करके दैत्यराज मय के पास पहुंच गए। उन्होंने मय से कहा कि आप बड़े दानी हैं, आप किसी को अपने द्वार से निराश होकर जाने नहीं देते हैं, इसलिए मैं आपके पास आया हूं। आप मुझे मनोवांछित वर दीजिए। इस पर दैत्यराज ने उस ब्राह्मण से कहा कि आप जो मांगना चाहते हो, वो समझ लो, तुम्हें मिल गया। दान करने वाला याचक को कम या ज्यादा देने का विचार नहीं रखते हैं।

मय के ऐसा कहने पर इंद्र देव ने कहा कि वह उससे मित्रता करना चाहते हैं। इस पर दैत्यराज ने ब्राह्मण बने इंद्र देव से कहा कि इस वर से आपको क्या लाभ होगा? आप से कोई शत्रुता नहीं है। इस पर इंद्र अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। यह देखकर मय आश्चर्य में पड़ गया।

उसने कहा, मित्र, ये कैसी बात है? तुम तो वज्र धारण करते हो। तुम्हें यह शोभा नहीं देता। इस पर मुस्कुराते हुए इंद्र ने मय को गले से लगा लिया और कहा कि विद्वान व्यक्ति किसी भी प्रकार से अपने कार्य को पूर्ण करते हैं। इस घटना के बाद दोनों में मित्रता हो गई। दैत्यराज मय सर्वदा के लिए इंद्र का शुभचिंतक हो गया।

शिक्षा: अपने शत्रु को मित्र बना लेना ही बुद्धिमानी है।