Ahoi Ashtami 2022: सोमवार को रखेंगी माताएं संतान के लिए व्रत, पढ़ें पूजन विधि और कथा के साथ शुभ मुहूर्त
Ahoi Ashtami 2022 17 अक्टूबर को है अहोई अष्टमी का व्रत। दिन भर निर्जल निराहार रहकर माताएं रखती हैं संतान की लंबी आयु के लिए व्रत। सप्त तारा मंडल को अर्घ्य देकर करती हैं व्रत का परायण। निः संतान माताएं भी इस दिन व्रत रखकर संतान की करती हैं।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Sat, 15 Oct 2022 02:37 PM (IST)
आगरा, तनु गुप्ता। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन यानि जिस वार की दीपावली हो उसके एक सप्ताह पहले अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। संतान की दीर्घ आयु एवं सुख समृद्धि के लिए माताएं अहोई माता की पूजा करके यह व्रत रखती हैं।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय होई का पूजन करती हैं। तारों को करवा से अर्घ्य भी दिया जाता है। यह होई गेरु आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर होई काढ़कर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।
यह भी पढ़ेंः Facebook पर फेक अकाउंट बना हाई प्रोफाइल महिलाओं से एक करोड़ की ठगी, आगरा का रहने वाला है आरोपित
अहोई अष्टमी के व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन सही विधि से पूजा और व्रत करने से अहोई माता संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने से संतान के कष्टों का निवारण होता है एवं उनके जीवन में सुख− समृद्धि व तरक्की आती है। ऐसा माना जाता है कि जिन माताओं की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो या बार− बार बीमार पड़ते हों अथवा किसी भी कारण से माता− पिता को अपनी संतान की ओर से चिंता बनी रहती हो तो माता द्वारा विधि− विधान से अहोई माता की पूजा− अर्चना व व्रत करने से संतान को विशेष लाभ होता है।
माता पार्वती का स्वरुप है अहोई माता .
अहोई अनहोनी शब्द का अपभ्रंश है। अनहोनी को टालने वाली माता देवी पार्वती हैं। इसलिए इस दिन मां पार्वती की पूजा.अर्चना का भी विधान है। अपनी संतानों की दीर्घायु और अनहोनी से रक्षा के लिए महिलाएं ये व्रत रखकर साही माता एवं भगवती पार्वती से आशीष मांगती हैं।अहोई अष्टमी पूजा विधि
व्रत के दिन प्रातः उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संकल्प करें कि संतान की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पार्वती की पूजा करें।
अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनायें और साथ ही स्याहु और उसके सात संतानो का चित्र बनायें। उनके सामने अनाज मुख्य रूप से चावल ढीरी, कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखते हैं और दीपक प्रज्जवलित कर कहानी कही जाती है।कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी या सूट के दुप्पटे में बांध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें।
पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। इस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ्य किया जाता है। शाम को माता के सामने दिया जलाते हैं और पूजा का सारा सामान, पूरी, मूली, सिंघाड़े, पूए, चावल और पका खाना पंडित जी या घर के बड़ों को दिया जाता है।अहोई माता का कैलंडर दिवाली तक लगा रहना चाहिए। अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।
पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। तारों को अर्घ्य दें। ध्यान रहे कि पानी सारा इस्तेमाल नहीं करना है। कुछ बचा लेना है ताकि दिवाली के दिन इसका इस्तेमाल किया जा सके। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान देने से शुभ फल मिलता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।यह भी पढ़ेंः Diwali Decoration Tips: इन आसान से 6 टिप्स के साथ इस दिवाली सजाएं दरवाजे से लेकर पूजा घर तक
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर में एक साहूकार रहा करता थाए उसके सात बेटे थे। सात बहुएं तथा एक पुत्री थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और ननद मिट्टी लाने जंगल गईं, साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु, साही अपने सात बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गयाए स्याहु इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। तब ननंद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुम में से कोई मेरे बदले अपनी कोख़ बंधा लो सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया परंतु सबसे छोटी भाभी सोचने लगी यदि मैं कोख न बंधाऊगी तो सासू जी नाराज होंगी। ऐसा विचार कर ननंद के बदले छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधा ली।उसके बाद जब उसे जो बच्चा होता वह सात दिन बाद मर जाता। एक दिन साहूकार की स्त्री ने पंडित जी को बुलाकर पूछा की क्या बात है मेरी इस बहु की संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है तब पंडित जी ने बहू से कहा कि तुम काली गाय की पूजा किया करो। काली गाय स्याऊ माता की भायली हैं वह तेरी कोख छोड़े तो तेरा बच्चा जियेगा। इसके बाद से वह बहु प्रातःकाल उठ कर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती। एक दिन गौ माता बोली कि आज कल कौन मेरी सेवा कर रहा है सो आज देखूंगी। गौमाता खूब तड़के जागी तो क्या देखती है कि साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली कि तुझे किस चीज की इच्छा है जो तू मेरी इतनी सेवा कर रही है।मांग क्या चीज मांगती है। तब साहूकार की बहू बोली की स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उन्होंने मेरी कोख बांध रखी है। उनसे मेरी कोख को खुलवा दो। गौमाता ने कहा अच्छा तब गौ माता सात समुंदर पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थीए इसलिए दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी के बच्चे थे उनको मारने लगा। तब साहूकार की बहू ने सांप को मार कर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहां खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी। तब साहूकार की बहु बोली कि मैंने तेरे बच्चे को मारा नहीं है बल्कि सांप तेरे बच्चे को डसने आया था। मैंने तो तेरे बच्चों की रक्षा की है। यह सुनकर गरुड़ पंखनी खुश होकर बोली की मांग तू क्या मांगती है वह बोली सात समुंदर पार स्याऊ माता रहती है। मुझे तू उनके पास पहुंचा दें। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर स्याऊ माता के पास पहुंचा दिया। स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली की आ बहन बहुत दिनों बाद आई। फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूं पड़ गई है। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सिलाई से उसकी जुएं निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न होकर बोली कि तेरे सात बेटे और सात बहुएं हों।सहुकारनी बोली कि मेरा तो एक भी बेटा नहीं। सात कहां से होंगे। स्याऊ माता बोली वचन दिया वचन से फिरूं तो धोबी के कुंड पर कंकरी होऊं। तब साहूकार की बहू बोली माता बोली कि मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है ।यह सुनकर स्याऊ माता बोली तूने तो मुझे ठग लिया। मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं परंतु अब खोलनी पड़ेगी। जा तेरे घर में तुझे सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी। तू जा कर उजमान करना। सात अहोई बनाकर सात कड़ाई करना। वह घर लौट कर आई तो देखा सात बेटे और सात बहुएं बैठी हैं।वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाईं। सात उजमान किये। सात कड़ाई की। दिवाली के दिन जेठानियां आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी पूजा कर लो। कहीं छोटी बहू बच्चों को याद करके रोने न लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा अपनी चाची के घर जाकर देख आओ की वह अभी तक रोई क्यों नहीं।बच्चों ने देखा और वापस जाकर कहा कि चाची तो कुछ मांड रही है। खूब उजमान हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी− दौड़ी उसके घर गई और जाकर पूछने लगीं कि तुमने कोख कैसे छुड़ाई वह बोली तुमने तो कोख बंधाई नहीं मैंने बंधा ली अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी को खोल दी है।