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कैसे पता चला ये था अकबर का इबादतखाना, खोज के पीछे की कहानी भी है बड़ी दिलचस्‍प

फतेहपुरसीकरी में बने इबादतखाना में सभी धर्मों के लोगों से अकबर करता था परिचर्चा। पदमश्री केके मुहम्मद ने वर्ष 1982-84 तक उत्खनन कर खोजा था। दीन-ए-इलाही की स्‍थापना भी अकबर ने यहीं से की थी। एक मुगलकालीन पेंटिंग बनी इस खोज का साक्ष्‍य।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Thu, 15 Oct 2020 11:54 AM (IST)
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फतेहपुरसीकरी में वह जगह जो अकबर का इबादतखाना रही। इसकी खोज पद्मश्री केके मुहम्‍मद ने की। फोटो: जागरण

आगरा, निर्लोष कुमार। आगरा को दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल ही नहीं सुलहकुल की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। सुलहकुल को मुगल शहंशाह अकबर से जोड़ा जाता है। 15 अक्टूबर, 1542 को जन्मे अकबर ने सभी धर्मों के लोगों को आपस में मिल-जुलकर रहने को सुलहकुल का संदेश दिया था। उसने दीन-ए-इलाही की शुरुआत भी की थी, जिसमें सभी धर्मों का समावेश था। इन सबका साक्षी फतेहपुर सीकरी स्थित इबादतखाना है, जहां अकबर सभी धर्मों के विद्वानों व मनीषियों से विचार-विमर्श किया करता था। इसकी खोज पुरातत्वविद पदमश्री केके मुहम्मद ने मुगलकालीन पेंटिंग के आधार पर की थी।

अकबर के इबादतखाना की खोज केके मुहम्मद ने वर्ष 1982-83 और 1983-84 में उत्‍खनन कर की थी। तब उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को ज्वॉइन नहीं किया था और वो अलीगढ़ मुस्लिम विवि से जुड़े हुए थे। केके मुहम्मद ने 'दैनिक जागरण' को बताया कि इबादतखाने को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत थे। फतेहपुर सीकरी स्थित अलग-अलग भवनों को इबादतखाना बताया जाता था। सईद अहमद मारहरवी ने जामी मस्जिद और जोधाबाई महल के बीच के टीले को इबादतखाना के रूप में चिह्नित किया था। इतिहासकार अतहर अब्बास रिजवी और सलीम ने भी उसी जगह पर इबादतखाना होने की बात कही थी। उनके पास कोई साक्ष्य नहीं होने से अन्य इतिहासकार इस बात को मानने को तैयार नहीं थे। मैंने मुगलकालीन चित्रकार नरसिंह द्वारा अकबर की मृत्यु से तीन वर्ष पूर्व 1602 में बनाई गई इबादतखाना की पेंटिंग को देखा था। पेंटिंग में सबसे ऊंचे स्थान पर अकबर, उससे नीचे अबुल फजल, फैजी, फादर रूडोल्फ एक्वावीवा, फादर मांसरेट और उससे नीचे अन्य धर्मों के लोग बैठे हुए थे। पेंटिंग में पीछे की तरफ बनी तीन आर्च नजर आ रही थीं।

जब यहां उत्खनन किया गया तो यहां मिट्टी के ढेर और पेड़ों के नीचे पेंटिंग से मिलता-जुलता स्ट्रक्चर निकलकर सामने आया। पेंटिंग के आधार पर मैंने साबित किया कि यही असली इबादतखाना है। आगरा में अधीक्षण पुरातत्वविद के पद पर रहते हुए यहां संरक्षण का काम कराया। अधिक काम तो नहीं करा सकते थे, लेकिन प्वाइंटिंग और वाटर टाइटनिंग के काम कराए गए थे।

1575 में बना था इबादतखाना

अकबर ने वर्ष 1575 में इबादतखाना का निर्माण कराया था। यहां वो गुरुवार शाम विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं, दार्शनिकों के साथ विचार-विमर्श किया करता था। वर्ष 1582 में सभी धर्मों में समन्वय स्थापित करने को उसने दीन-ए-इलाही की शुरुआत की थी। इसमें इस्लामिक सूफीवाद, हिंदू धर्म, भक्ति आंदोलन, ईसाई धर्म के तत्वों, पारसी और जैन धर्म के सिद्धांतों को मिलाकर बनाया गया था।

मिल-जुलकर लाेगों के रहने की नीति है सुलहकुल

इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि अकबर कट्टर सुन्नी मुसलमान था। अबुल फजल और फैजी भाइयों का उस पर प्रभाव पड़ा तो उसने दीन-ए-इलाही धर्म चलाया। उसने फतेहपुर सीकरी में खुतबा पढ़ा था। सुलहकुल मिल-जुलकर लोगों के रहने की नीति है। सुलह और कुल दो शब्दों को मिलाकर इसे बनाया गया है। 30-40 वर्षों से यह शब्द प्रचलन में आया है। पुरानी किताबों में इसका जिक्र नहीं मिलता है।

भेदभाव व विघटन रोकने का किया था प्रयास

एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन ने बताया कि अकबर ने दीन-ए-इलाही में इस्लाम के कट्टरपंथ को शामिल नहीं किया था। उससे पूर्व मुस्लिम एक-दूसरे से सलाम किया करते थे। उसने अल्लाह-हू-अकबर को इसमें शामिल किया। उसका कहना था कि मैं कुछ नहीं हूं, ऊपर वाला ही सब कुछ है। दीन-ए-इलाही के माध्यम से उसने भेदभाव व विघटन को रोकने का प्रयास किया था। कट्टरवादिता के चलते यह आगे नहीं बढ़ सका।