World Sparrow Day 2022: सोच लें, नहीं रही गौरेया तो बिगड़ जाएगा हमारी भी लाइफ का सिस्टम
World Sparrow Day 2022 भारत में गौरैया की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। शहरी आबादी के पास हाउस स्पैरो पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रजातियो मे स्पेनिश स्पैरो सिंड स्पैरो रूसेट स्पैरो डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो भारत के विभिन्न क्षेत्रों पाई जाती हैं।
आगरा, जागरण संवाददाता। गौरैया ईको सिस्टम और फूड चैन की महत्वपूर्ण कड़ी है। यह बीजों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गौरैया फसलों को कीड़ों से बचाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है। गौरैया अपने चूजों को अल्फ़ा और कैटवॉर्म कीड़े खिलाती है। यह कीड़े फसलों की पत्तियों को संक्रमित कर नष्ट कर देते हैं। गौरैया मानसूनी मौसम में पैदा होने वाले कीड़े खाकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान देती है।
पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह के अनुसार घरेलू गौरैया को जीनस - पैसर व परिवार- पैसराइड मे वर्गीकृत किया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिकस है। भारत में गौरैया की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। शहरी आबादी के पास हाउस स्पैरो पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रजातियो मे स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रूसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो भारत के विभिन्न क्षेत्रों पाई जाती हैं।
शहरीकरण और प्रदूषण से घट रही गौरैया की जनसंख्या
पक्षियों पर शोध कर रही आगरा विश्वविद्यालय की निधि यादव व हिमांशी सागर के अनुसार शहरों के फैलते दायरे के परिणाम स्वरूप कच्चे मकानों की जगह पक्के मकान, गगनचुंबी इमारते और फ्लैट कल्चर ने इनके प्रजनन आवासों को छीन लिया है। किसानो द्वारा खेती के लिए प्रयोग किए जा रहे उर्वरक व कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से गौरैया के भोजन पर बुरा असर पड़ा है। औद्योगिक क्षेत्रो से फैलने वाली जहरीली वायु व खतरनाक रसायनिक प्रदूषित जल ने गौरैया के अस्तित्व पर गंभीर संकट उत्पन्न किया है। पक्षी मुख्यतः भोजन व प्रजनन के लिए जंगल, पेड़ व खेती पर निर्भर रहते हैं। विकास के नाम पर जंगल, पेड़ और खेती में कमी आ रही है। गौरैया की कम होती जनसंख्या के यह महत्वपूर्ण कारक हैं।
लाॅकडाउन मे शहरी क्षेत्रों में दिख रही थी गौरैया
विश्वविद्यालय के शोधार्थी शमी सईद ने बताया कि भारत में गौरैया पर किये गए अध्ययनों के अनुसार इसकी जनसंख्या विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रो में 30 से 60 प्रतिशत तक कम हुई है। जैव विविधता के अध्ययन व संरक्षण कार्य से जुड़ी संस्था बीआरडीएस ने आगरा में लाॅकडाउन के पक्षियों पर पड़े प्रभाव का अध्ययन करने पर पाया कि गौरैया शहरों में फिर से दिख रही थी और कई स्थानों पर इनकी जनसंख्या व घौंसलों में वृद्धि दिखाई दी थी। बीआरडीएस सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह के अनुसार गौरैया साल में दो बार प्रजनन करती है। प्रजनन काल मार्च-अप्रैल एवं सितंबर-अक्टूबर में होता है। मार्च 2020 में लगे लाॅकडाउन से मानव गतिविधियों व हस्तक्षेप के अत्यधिक सीमित हो जाने के सुखद परिणाम गौरैया की जनसंख्या वृद्धि के रूप में सामने आए थे।