राजस्थान की नब्बे हजारी गाय बनी है पशु मेले की शान Prayagraj News
सहसों स्थित विराट पशु मेले में संकर प्रजाति की अच्छे किस्म के गोवंश लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैैं। विराट पशु मेले के व्यवस्थापक तीरथ सिंह ने बताया कि यह पशु मेला दशकों पूर्व लग रहा है। वह गोवंशों तथा व्यापारियों की रहने-खाने सहित अन्य व्यवस्था देते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। भारतीय संस्कृत में गाय को पूजनीय तथा देवी-देवताओं के स्वरूप में पूजा अर्चना की जाती रही है। सभी शुभ अवसरों तथा रसोई की सुख समृद्धि के लिए सुबह का पहला आहार भी इन्हीं को दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से गोवंश को पशु पालकों ने खर्च अधिक तथा उत्पादन कम होने के कारण छोड़ दिया है। जिसके चलते गोवंश तथा उनके बछड़े किसान की फसलों को अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब बेहतर नस्ल की गाय के प्रति पशु पालकों का क्रेज बढ़ा है।
दशकों से लग रहा है यहां पशु मेला
सहसों स्थित विराट पशु मेले में संकर प्रजाति की अच्छे किस्म के गोवंश लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैैं। विराट पशु मेले के व्यवस्थापक तीरथ सिंह ने बताया कि यह पशु मेला दशकों पूर्व लग रहा है। आज भी वह गोवंशों तथा व्यापारियों की रहने-खाने सहित अन्य व्यवस्था को देते हुए पशु मेला सुचारू रूप से संचालित कर रहे हैं। यहां पर दूसरे प्रदेशों के व्यापारी सहित क्षेत्रीय व्यापारी भी आकर रोजगार से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि यहां पर अच्छी नस्ल की कई गाय होने के कारण पशुपालक के अतिरिक्त महंत तथा साधु संत आकर मनपसंद गाय को ले जाकर उसकी सेवा कर रहे है। मुजफ्फरनगर के व्यापारी तालिब, नौशाद, शाहनवाज ने बताया कि मेले में इस समय राजस्थान की गिर प्रजाति की नब्बे हजार रुपये कीमत की गाय आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इसके अतिरिक्त कई प्रजाति की गाय भी यहां पर उपलब्ध है।
मेले में डेढ़ लाख रुपये की भैंस
मेले में व्यापारी ननकू, पप्पू, बच्चू मुजम्मिल, नाजिम, राजेंद्र, ननकू आदि व्यापारी अच्छी नस्ल की भैंस तथा पडिय़ा का व्यापार करते हैं। उन्होंने बताया कि इस समय मेले में हरियाणा की शंकर प्रजाति की डेढ़ लाख रुपये तक की भैंस तथा दर्जनों अच्छी नस्ल की पडिय़ा हैं।
संकर प्रजाति की गायों से ज्यादा लाभ
पशु चिकित्सक डॉ.आरके मौर्या ने बताया कि देसी गायों की अपेक्षा संकर प्रजाति गायों में खर्च कम तथा दुग्ध उत्पादन ज्यादा होता है। इसी वजह से पशु पालकों का रुझान संकर प्रजाति की गायों में अधिक है। इस प्रजाति की गायों में बच्चा देने का समय लगभग 18 माह है। वहीं पर देसी गायों में यह अवधि 3 वर्ष तक चली जाती है। इसके अतिरिक्त दूध देने की क्षमता भी देसी गायों में शंकर प्रजाति की अपेक्षा बहुत कम है।