UP News: अस्पताल में मरीज तड़प रहा था, डॉक्टर बोले- वेंटिलेटर खाली नहीं है; 12 घंटे बाद अचानक सब चौंक उठे
गोंडा के गल्लापुर घाट के रहने वाले 65 वर्षीय को रामतेज फेफड़े की बीमारी थी। हालत ज्यादा खराब होने पर डॉक्टरों ने उन्हें बुधवार को गोंडा के निजी चिकित्सालय से लखनऊ ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया। परिजन रामतेज को एंबुलेंस से बुधवार देर शाम ट्रामा सेंटर लेकर पहुंचे और भर्ती करवा दिया लेकिन वेंटिलेटर नहीं मिला।
जागरण संवाददाता, लखनऊ। गोंडा के गल्लापुर घाट के रहने वाले 65 वर्षीय को रामतेज फेफड़े की बीमारी थी। हालत ज्यादा खराब होने पर डॉक्टरों ने उन्हें बुधवार को गोंडा के निजी चिकित्सालय से लखनऊ ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया।
परिजन रामतेज को एंबुलेंस से बुधवार देर शाम ट्रामा सेंटर लेकर पहुंचे और भर्ती करवा दिया, लेकिन वेंटिलेटर नहीं मिला। परिजनों ने डॉक्टरों से कहा तो वे वेंटिलेटर खाली न होने के हवाला देते रहे। इसके चलते रामतेज ने गुरुवार को तड़पकर दम तोड़ दिया।
यह है पूरा मामला
केजीएमयू ट्रामा सेंटर में 81 वेंटिलेटर बेड हैं। ज्यादातर मरीजों से भरे रहते हैं। एक चिकित्सक के मुताबिक, वेंटिलेटर खाली न होने की दशा में एंबु बैग लगाकर किसी अन्य अस्पताल जाने के लिए कहा जाता है। बावजूद इसके तीमारदार मरीज को लेकर कहीं नहीं ले जाते हैं। इसके कारण मरीज की मौत हो जाती है।
वहीं, राम तेज के परिवार का आरोप था कि बुधवार रात किसी भी तरह वेंटिलेटर दे दिया जाता तो जान बच सकती थी।
डॉक्टरों ने कहा- पर्चा लाएं फिर देखेंगे
चौक के विक्टोरिया स्ट्रीट निवासी मो. मुस्तकीन का छह वर्षीय बेटा अबु तालिब स्कूल से आते ही पतंग उड़ाने छत पर चला गया। तभी अचानक गिर कर गंभीर रूप से घायल हो गया। मुस्तकीन आनन-फानन ट्रामा सेंटर लेकर पहुंचे तो डॉक्टरों ने उसका इलाज करने की जगह पहले पर्चा भरने को कहा।
काउंटर पर पहुंचे तो कागज थमा दिया गया। पढ़े-लिखे न होने के कारण वह कुछ समझ नहीं सके। इस पर काउंटर पर मौजूद कर्मी को डिटेल देने लिए हा तो उसने मना कर दिया। करीब 15 मिनट भटकने के बाद एक व्यक्ति से पर्चा भरवाया और बच्चे का इलाज हो सका।
मरीज को बलरामपुर कर दिया रेफर
गोंडा के सेमरीपुर के रहने वाले दिलीप सड़क हादसे में घायल हो गए थे। परिजनों ने उन्हें ट्रामा सेंटर पहुंचाया, लेकिन यहां उपचार के बाद बलरामपुर अस्पताल रेफर कर दिया। परिजनों का आरोप है कि बेहतर इलाज के लिए ट्रामा सेंटर लाए। वहां उस स्तर का इलाज मिल सके। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा।