Holi 2023: वृंदावन में होली की मस्ती का आनंद, रंग ही नहीं साहित्य में भी रची-बसी है ब्रज की होली
Holi 2023 होली को भक्त मीराबाई ने अपने पदों में कुछ इस तरह गाया है मुरली चंग बजत डफ न्यारो संग जुवति ब्रजनारी चंदन केसर छिरकतमोहन अपने हाथ बिहारी। भरि भरि मूठ गुलाल लाल चहुं देत सबन पै डारी छैल छबीले वन कान्ह संग स्यामा प्राण पियारी।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Sat, 18 Feb 2023 11:48 AM (IST)
संवाद सहयोगी, वृंदावन-मथुरा। वृंदावन में होली की मस्ती का आनंद ही देश दुनिया के भक्तों को वृंदावन खींच लाता है। यूं तो श्रद्धालु रंगों की मस्ती में मस्त होकर होली का आनंद लेंगे। लेकिन, खास बात है कि यहां होली केवल रंगों में ही नहीं बल्कि साहित्य में भी रची बसी है। होली को सूरदास, रसखान जैसे महान कवियों ने पदों में उतारा है, तो स्वामी हरिदास के पदों का गायन कर सेवायत आराध्य बांकेबिहारीजी को आज भी हर दिन रिझा रहे हैं।
देश भर से आते हैं श्रद्धालु
ब्रज की होली देश के तमाम हिस्सों से अप्रतिम सौंदर्य के दिव्यधाम की अनुभूति का आनंद देने वाली है। ब्रज संस्कृति अध्येता डा. राजेश शर्मा की मानें तो जहां गोप, गोपिकाएं, गाय-बछड़े, पशु-पक्षी इस प्रेम के उत्सव में मूर्तिमान विग्रह का रूप ले लेते हैं, जो राधा-कृष्ण, नंद-यशोदा के प्रेम भक्ति का सबसे अनूठा प्रमाण है। टेसू के फूलों से बने रंग से भरी पिचकारी यहां की पहचान है।
राधाकृष्ण की होली को याद करते हुए सूरदास, रसखान से लेकर अनेक कवि हुए। उन्होंने काव्य में राधाकृष्ण को प्रेरणास्रोत मानकर भावनाओं का पदों के रूप में सृजन किया। मंदिरों में बरसते रंगों में सराबोर हुरियारों की टोलियां घमासान मचाते हुए गगन मंडल को रंगीन करती हैं। दिनभर रंगों की होली के बाद शाम को होली के गीत गाए जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने खेली थी होली
महाकवि सूरदास कालिंदी किनारे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा खेली गई होली के भाव को व्यक्त करते हैं। उसमें रंगों के साथ वे एक-दूसरे पर रसभरी गालियां शामिल हैं। कवियों की रचना में लिखी, होली में कृष्ण के हाथ में सोने की पिचकारी है और वे मिश्रित रंग-गुलाल उड़ाते दिखते हैं। होरी खेलत यमुदा के तट कुंजनि तट बनवारी, दूत सखियन की मंडल जोरे श्रीबृषभान दुलारी। होड़ा-होड़ी होत परस्पर देत है आनंद गाली, भरे गुलाल कुम-कुम केसर कर कंचन पिचकारी।
पूरे ब्रजमंडल में मची धूम
महाकवि रसखान होली में सायंकाल का वर्णन करते हुए ब्रजगोपियों और श्रीकृष्ण के होली खेलने का चित्रण करते है और विशाखा सखि के वर्णन में लिखते है कि जैसे ही फागुन ला पूरे ब्रजमंडल में धूम मच गयी है और एक भी गोपी इससे अूछूती नहीं रही है चाहे वह गोपी नयी नवेली वधु ही क्यों न हो, सांझ के समय भी रंग गुलाल का जादू छाया हुआ है।फागुन लाग्यो सखी जब तै तब तैं ब्रजमंडल धूम मच्यों है, नारि नवेली बचे नहीं एक विसेख यहै सबै प्रेम अच्यो है।महाकवि भारतेंद्र हरिश्चंद्र होली का वर्णन कुछ इस तरह करते हैं चहुं ओर कहत सब होरी हो हो होरी.., पिचकारी छूटत उड़त रंग की झोरी। मधि ठाढे सुंदर स्याम साथ लै गौरी..., बाढ़ी छवि देखत रंग रंगीली जोरी। गुन गाय होत हरिश्चन्द दास बलिहारी, वृंदावन खेलत फाग बढ़ी छवि भारी।
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