Lok Sabha Election 2024: अपने ही गढ़ में गफलत में सपा, मुरादाबाद मंडल की इन पांच सीटों पर प्रत्याशियों के चयन में आ रही ये चुनौतियां
मुरादाबाद मंडल की छह सीटें अमरोहा संभल मुरादाबाद रामपुर नगीना और बिजनौर भाजपा के लिए चुनौती बनी हुई हैं। 2019 में मोदी लहर के बाद भी कोई सीट भाजपा को नहीं मिल सकी थी। सपा-बसपा गठबंधन में इनमें तीन पर सपा और तीन पर बसपा के सांसद बने। इस बार सपा से बसपा और रालोद अलग हैं। कांग्रेस से गठबंधन है।
मोहसिन पाशा, मुरादाबाद। दो सूची जारी कर प्रत्याशी चयन में बाजी मारने वाली समाजवादी पार्टी गढ़ में ही असमंजस में है। मंडल की छह सीटों में अमरोहा सीट गठबंधन में कांग्रेस के पास चली गई है। संभल में सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क को प्रत्याशी घोषित किया था। उनके निधन के बाद वहां चुनौती बरकरार है। अन्य चार सीटों पर भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है। प्रत्याशी चयन में समाजवादी पार्टी नेतृत्व के समक्ष क्या हैं चुनौतियां, बता रही है मोहसिन पाशा की रिपोर्ट...
मुरादाबाद मंडल की छह सीटें अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, नगीना और बिजनौर भाजपा के लिए चुनौती बनी हुई हैं। 2019 में मोदी लहर के बाद भी कोई सीट भाजपा को नहीं मिल सकी थी। सपा-बसपा गठबंधन में इनमें तीन पर सपा और तीन पर बसपा के सांसद बने। इस बार सपा से बसपा और रालोद अलग हैं। कांग्रेस से गठबंधन है। सपा ने 16 प्रत्याशियों की पहली सूची में संभल के सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क को प्रत्याशी बनाया था। उनके निधन के बाद सीट रिक्त हो गई।
पार्टी हाईकमान के सामने चुनौती
अब पार्टी हाईकमान के सामने चुनौती बनी हुई है। अन्य दावेदार तो हैं ही। अब तक डा. बर्क के परिवार से उनके पौत्र कुंदरकी विधायक जियाउर्रहमान बर्क की प्रबल दावेदारी मानी जा रही थी। दो दिन पहले सांसद के पुत्र ममलूकउर्रहमान बर्क ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से दावेदारी जता दी है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में भी इसे स्वीकार किया है। लिहाजा अब पार्टी हाईकमान के सामने नई चुनौती बन गई है।सलीम शेरवानी संभल से ठोकी दावेदारी
इस बीच बदायूं के पूर्व सांसद और राज्यसभा प्रत्याशी न बनाए जाने से नाराज चल रहे सलीम इकबाल शेरवानी ने भी संभल से दावेदारी ठोक दी है। वह पहले ही पार्टी के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बयान दे चुके हैं। उनके यहां से टिकट न मिलने पर बागी होने की आशंका है। शेरवानी के अलावा और भी कई दावेदार हैं। संभल सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां से पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनके भाई प्रो. रामगोपाल यादव भी सांसद रह चुके हैं। सिर्फ 2014 में ही भाजपा यहां से जीत सकी है।
रामपुर से कौन?
बात रामपुर सीट की करें, तो पार्टी के थिंकटैंक आजम खां की वजह से नेतृत्व बेफिक्र रहता था। उनके सात साल की सजा काटने के कारण पूरी जिम्मेदारी पार्टी हाईकमान पर है। खास बात यह है, वहां कोई प्रबल दावेदार अभी सामने नहीं आया है। हाईकमान भी दो सूची में वहां के बारे में कोई निर्णय नहीं ले सका है। मंडल मुख्यालय की मुरादाबाद सीट पर भी सपा का बोलबाला रहा है। डा. शफीकुर्रहमान बर्क ही तीन बार यहां से जीते हैं। वर्तमान में सपा के ही डा. एसटी हसन सांसद हैं। उन्हें संसदीय दल का नेता बनाया गया है। सिर्फ 2014 में ही भाजपा यहां से जीत सकी है। नगर निगम चुनाव में चौथे स्थान पर सपा के रहने के कारण डा. हसन के विरोधियों को कहने का मौका मिल गया है।यहां से कांठ के विधायक कमाल अख्तर भी दावेदार बताए जा रहे हैं। सपा के ही एक और विधायक भी चुपचाप टिकट की लाइन में लगे हैं। ऐसे में दो सूची में पार्टी यहां के प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं कर सकी है। अमरोहा सीट गठबंधन में कांग्रेस के पास चली गई है। वहां बसपा के निलंबित सांसद दानिश अली के कांग्रेस से मैदान में आने की संभावना है, लेकिन उनके नाम की घोषणा अभी नहीं की गई है। माना जा रहा है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश से प्रत्याशियों की घोषणा करेगी, उसमें अमरोहा सीट प्राथमिकता में शामिल रहेगी।
बिजनौर और नगीना पर भी पार्टी निर्णय नहीं ले सकी है। नगीना से भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर को भी पार्टी उतार सकती है। इसके विपरीत इन चुनौतीपूर्ण सीटों में मुरादाबाद छोड़ अन्य पांच पर भाजपा प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है। बसपा भी अमरोहा और मुरादाबाद से प्रत्याशी उतार चुकी है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि सपा हाईकमान गढ़ में फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है।
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