सावन में राम के प्रिय वृक्ष करील का भी दर्शन
सावन में राम के प्रिय वृक्ष करील का भी हो रहा दर्शन
सावन में राम के प्रिय वृक्ष करील का भी दर्शन
संसू, घुइसरनाथ धाम : अयोध्या और प्रयागराज के बीच बसे बेल्हा से होकर प्रभु राम वन को गए थे। वह जिस करील वृक्ष के नीचे रात में ठहरे थे, वह भी यहां है। चूंकि प्रभु राम व शिव एक दूसरे के प्रिय हैं। ऐसे में इस वृक्ष के दर्शन का महत्व सावन में और बढ़ गया है।
लालगंज के घुइसरनाथ धाम के पास में सई नदी के एक तट पर जहां शिव जी के दर्शन हो रहे हैं, वहीं दूसरे किनारे करील में लोग मनोकामना की गांठें बांध रहे हैं। सैकड़ों भक्त सामान्य दिनों में भी घुइसरनाथ धाम आते हैं। वह धाम में जलाभिषेक कर लौट जाते हैं, लेकिन सावन में यह संख्या हजारों में तब्दील हो जाती है। इनमें से बहुत से लोग नदी पार कर झाड़ियों में उतरकर शिव के प्रिय राम जी से जुड़े करील के दर्शन भी कर रहे हैं। नदी पार करने को पक्का पुल बना है। अलग से दो पैदल पुल भी बन गए हैं। बहुत से लोग पैदल पुल से सीधे उतरकर करीब तीन सौ मीटर दूर करील का दर्शन करते हैं। उसमें मनोकामना पूरी करने को कपड़े बांधते हैं। पूरी हो जाने पर वहां घंटा बांधते हैं। प्रसाद चढ़ाते हैं। धाम के महंत मयंक भाल गिरि बताते हैं कि इस पेड़ की बड़ी महत्ता है। गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में इसका उल्लेख इस तरह चौपाई में किया है...नव रसाल वन विहरन शीला सोह कि कोकिल विपिन करीला। यही नहीं वन विभाग ने इसे विरासत वृक्ष का दर्जा दिया है। हालांकि, अभी यहां तक पहुंचने का मार्ग पक्का नहीं है। धाम के सुंदरीकरण की दरकार है।
- इसलिए चुना करील को
आचार्य प्रताप नारायण मिश्र बताते हैं कि भगवान ने सुखों को त्यागा था। यही कारण रहा कि उन्होंने फूल, फल, पत्तीविहीन इस उदासीन वृक्ष को विश्राम के लिए चुना। शिवजी को वह पूजते थे और शिव भी वैराग्य प्रवर्तक देव हैं।
- सियरहिया गांव से मिला बल
सई के किनारे कंटक वाले मार्ग पर चलर प्रभु राम, माता सीता व लक्ष्मण के साथ गए थे। इस विश्वास को इससे भी बल मिलता है कि कुछ ही दूरी पर सियरहिया गांव है। इसे सिया यानी सीता के नाम से जोड़कर देखा जाता है।