Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

UP Politics: रसातल में नवाब खानदान की स‍ियासत, कभी कांग्रेस की राजनीत‍ि का केंद्र हुआ करता था नूरमहल, वक्‍त ऐसे पलटा क‍ि...

पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रत्याशियों के चयन में नूरमहल की भूमिका प्रमुख होती थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एचडी देवगौड़ा और मनमोहन सिंह नूरमहल आ चुके हैं। इंदिरा गांधी एक रात यहां रुकी भी हैं। रामपुर की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि उनके नूरमहल से बहुत करीबी संबंध रहे हैं। सियासी कमजोरी के लिए खुद नूरमहल के लोग ही जिम्मेदार हैं।

By Jagran News Edited By: Vinay Saxena Updated: Mon, 11 Mar 2024 12:57 PM (IST)
Hero Image
रामपुर स्थित नूर महल में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ मिक्की मियां (फाइल फोटो)

मुस्लेमीन, रामपुर। रामपुर यानी नवाबों का शहर। पौने दो सौ साल नवाबों ने यहां की रियासत पर राज किया। नवाबी दौर जाने के बाद नवाब खानदान ने राजनीति में धाक जमाई। लंबे अरसे तक लोकसभा और विधानसभा में इस परिवार का प्रतिनिधित्व रहा। कहते हैं वक्त बदलता है। नवाब खानदान के वक्त ने भी पलटी मारी। पहले नूरमहल (नवाब खानदान का महल) से जहां टिकट तय होते थे, अब खुद उन्हें ही टिकट मिलना मुश्किल हो गया है। नवाबी परिवार की सियासत के बारे में बताती मुस्लेमीन की रिपोर्ट...

नवाब खानदान की धाक का परिणाम था कि देश के 1947 में आजाद होने के बाद भी रामपुर में नवाबी रियासत कायम रही। 1949 में रामपुर के लोगों ने आजादी का जश्न मनाया। इसी के साथ नवाब खानदान ने राजनीति में प्रवेश कर लिया। दो बार नवाब खानदान के रिश्तेदार राजा सैयद मेहंदी सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद नवाब जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां पांच बार सांसद चुने गए। उनकी पत्नी बेगम नूरबानो दो बार सांसद बनीं। उनके बेटे नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां पांच बार विधायक का चुनाव जीते। वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे। आजादी के बाद एक दौर था जब नूरमहल कांग्रेस की राजनीति का केंद्र हुआ करता था।

पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रत्याशियों के चयन में नूरमहल की भूमिका प्रमुख होती थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, एचडी देवगौड़ा और मनमोहन सिंह नूरमहल आ चुके हैं। इंदिरा गांधी एक रात यहां रुकी भी हैं। रामपुर की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि उनके नूरमहल से बहुत करीबी संबंध रहे हैं। सियासी कमजोरी के लिए खुद नूरमहल के लोग ही जिम्मेदार हैं।

2003 में नूरबानो कांग्रेस की सांसद थीं और उनके बेटे नवेद मियां विधायक। तब नवेद मियां कांग्रेस छोड़ बसपा में चले गए। छह माह बाद सपा, फिर बसपा में शामिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस में आ गए। 2022 में नवेद मियां रामपुर शहर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे, उनके बेटे हमजा मियां स्वार सीट पर भाजपा गठबंधन के अपना दल से मैदान में थे। इसके बाद उन्होंने पार्टी विरोधी रुख किया। पहले नूरमहल सबको एक साथ लेकर चलता था, लेकिन अब नूरमहल के लोग खुद अलग-अलग पार्टियों का झंडा लेकर चल रहे हैं। ऐसे में वफादार लोग अलग होते गए।

नूरमहल का राजनीतिक ग्रहण

वक्त के साथ नूरमहल की राजनीतिक छवि धूमिल होती गई। कांग्रेस के अंदर ही उसका महत्व कम हो गया। 2019 में कांग्रेस ने बेगम नूरबानो के बजाय संजय कपूर को चुनाव लड़ाया। पांच बार विधायक बन चुके उनके बेटे नवेद मियां 2003 में बसपा में चले गए। मायावती सरकार में मंत्री बने। कुछ माह बाद ही सपा में आ गए। उसके टिकट पर विधायक बन भी गए, लेकिन बसपा सरकार बनने पर इस्तीफा देकर फिर लड़े। विधायक बने। इसके बाद वह कांग्रेस में लौटे, लेकिन पार्टी की राजनीति उन्हें रास नहीं आई।

विधानसभा चुनावों में उन्होंने पार्टी के विरुद्ध राजनीति की। लिहाजा 2022 के विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें निष्कासित कर दिया। इस बार बेगम नूरबानो ने संसदीय चुनाव खुद ही कांग्रेस से लड़ने का एलान कर दिया था, लेकिन सीट गठबंधन में सपा के खाते में चली गई। लिहाजा इस बार उनका लड़ना मुश्किल माना जा रहा है।

‘राजनीति में आया बदलाव’ राजनीति में बदलाव आया है। हम हमेशा कांग्रेस के साथ रहे और उसी से ही चुनाव लड़ने की बात कही थी। सपा और कांग्रेस के गठबंधन के चलते रामपुर सीट सपा के पास चली गई है। पार्टी हाई कमान जैसा चाहेगा, हम वैसा ही करेंगे। कांग्रेस और समाज की बेहतरी के लिए हमसे जो भी हो सकेगा, वह करेंगे।- बेगम नूरबानो, पूर्व सांसद

यह भी पढ़ें: यूपी में ये है सपा का सबसे मजबूत 'गढ़', सभी 10 विधानसभा सीटों पर कब्जा; लोकसभा उपचुनाव में BJP के सामने दरका 'किला'

यह भी पढ़ें: सपा का 'गढ़' ढहाने को विकास का ब्रह्मास्त्र चला गए PM मोदी, परिवारवाद-माफियावाद के मुद्दे पर विपक्ष पर जमकर बरसे