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मिसालों में ही रह जाएंगे ढाक के तीन पात

सहारनपुर : अगर ऐसे ही चलता रहा तो तीस साल बाद ढाक वृक्ष देखने को भी नहीं मिलेंगे। ढाक क

By JagranEdited By: Updated: Mon, 29 Jan 2018 11:23 PM (IST)
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मिसालों में ही रह जाएंगे ढाक के तीन पात

सहारनपुर : अगर ऐसे ही चलता रहा तो तीस साल बाद ढाक वृक्ष देखने को भी नहीं मिलेंगे। ढाक के तीन पात केवल मिसालों तक ही सिमट कर रह जाएंगे। उद्यान विभाग के अधिकारियों, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की मानें तो सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, शामली, बिजनौर, मुरादाबाद, आजमगढ़, इलाहाबाद, बरेली के अलावा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि प्रदेशों में पिछले दस साल में ढाक का 60 फीसद जंगल खत्म हो चुका है। आने वाले तीस साल ढाक के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। मौजूदा समय में ही देश की पत्ता मंडियों में ढाक के पत्ते नहीं के बराबर आ रहे हैं।

दरअसल दस साल पहले सहारनपुर जनपद के बेहट में ढाक का विशाल जंगल हुआ करता था। पत्ता मंडी में रोजाना ढाक का तकरीबन सौ से एक सौ पचास टन पत्ता बिक्री के लिए आता था। जिसे पत्तल बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था। लेकिन अब यह संख्या शून्य में पहुंच चुकी है। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीटयूट देहरादून की डा. सविता की मानें तो सहारनपुर ही नहीं अन्य जनपदों की मंडियों में भी ढाक के पत्तों की आवक शून्य हो चली है। इसका मुख्य कारण घटती जलवायु और गिरता भूजल स्तर है। घटते जलस्तर और कम होती वर्षा के चलते ढाक के पेड़ को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण यह पेड़ पनप नहीं पा रहा है और जंगल सूख रहे हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो अगले तीस साल में ढाक के पेड़ नहीं के बराबर रह जाएंगे। हालांकि फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट इस पेड़ को बचाने के लिए प्रयासरत है। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विवि के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. बीआर ¨सह की ने बताया कि ढाक के जंगल घटने का कारण और इसे बचाने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर कार्य शुरु करने जा रहा है। कोशिश रहेगी की मौजूदा गुणों के साथ ही ढाक की ऐसी नस्ल तैयार की जाए जो कम पानी में भी खूब पनप सके। जिससे देश का यह बहुऔषधीय गुण वाला पेड़ एक बार फिर हरा भरा होकर आबाद हो सकेगा।

सुपाच्य होता है ढाक का पत्ता

सदियों से ढाक का पत्ता खाना खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। आयुर्वेद में इसे सुपाच्य बताया गया है। ढाक के पत्तों से तैयार होने वाले पत्तल का प्रयोग इसीलिए उत्सवों में खाना खाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।

कई नामों से जाना जाता है ढाक का पेड़

ढाक के पेड़ को अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। देश के ¨हदी भाषी क्षेत्रों में इसे पलास, टेसू, परास, छिडल, ¨कशुक, क्षर श्रेष्ठ, बंगला आदि नामों से जाना जाता है।

औषधियों में किया जाता है उपयोग

ढाक के पेड़ का कण-कण औषधीय होता है। छाल, पत्तों, गोंद आदि से जहां बहुत सी औषधि तैयार की जाती है। वहीं इसके फूलों से औषधि तो तैयार होती ही है, साथ ही हर्बल रंग तैयार किए जाते हैं।