चार धाम यात्रा के दौरान यहां जाना न भूलें, भगवान कार्तिकेय की पूजा के साथ देखने को मिलेगा अद्भुत दृश्य...
देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों चार धाम यात्रा जोरों पर है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य देवों के दर्शन को पहुंच रहे हैं। चार धाम यात्रा के दौरान आप अपने अराध्य शिव के पुत्र कार्तिक के इस मंदिर में भी जा सकते हैं।
जागरण ऑनलाइन डेस्क: देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों चार धाम यात्रा जोरों पर है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य देवों के दर्शन को पहुंच रहे हैं। चार धाम यात्रा के दौरान आप अपने अराध्य शिव के पुत्र कार्तिक के इस मंदिर में भी जा सकते हैं।
राज्य के कनकचौरी, रुद्रप्रयाग के पास एक पहाड़ी की चोटी पर बसा है कार्तिक स्वामी मंदिर। यह मंदिर राज्य में भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिक को समर्पित सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। क्रौंच पर्वत के ऊपर स्थित मंदिर भगवान कार्तिक को श्रद्धांजलि देता है, जिसे भारत के कुछ हिस्सों में भगवान मुरुगा या भगवान मुरुगन के रूप में भी जाना जाता है और उनके माता-पिता के प्रति समर्पण है।
कार्तिक स्वामी मंदिर के बारे में प्रचलित है अनेकों कहानियां
इस मंदिर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से सबसे लोकप्रिय उस युग की है जब भगवान शिव और देवी पार्वती के दो पुत्रों - भगवान कार्तिक और भगवान गणेश को ब्रह्मांड की सात बार परिक्रमा करने के लिए कहा गया था। भगवान कार्तिक ने ब्रह्मांड के सात चक्कर लगाने के चुनौतीपूर्ण कार्य को अंजाम देते हुए परिक्रमा की शुरुआत की जबकि भगवान गणेश ने अपने माता-पिता को अपना ब्रह्मांड बताते हुए उनके चक्कर लगाए। जब भगवान कार्तिक वापस लौटे और उन्हें पता चला कि कैसे भगवान गणेश ने कार्य पूरा किया और भगवान शिव की प्रशंसा प्राप्त की, तो वे क्रोधित हो गए। पुराणों के अनुसार, इस हार से क्रोधित होकर भगवान कार्तिक अपने माता-पिता के निवास कैलाश को छोड़कर क्रौंच पर्वत पर पहुंचे और इसके बाद, वह दक्षिण भारत में श्रीशैलम नाम के एक पर्वत पर गए, जहां उन्हें भगवान मुरुगा, भगवान मुरुगन और भगवान सुब्रमण्य के अलावा उनके कई नामों में से एक स्कंद के नाम से जाना जाता था।
कार्तिक भगवान को लगता है मक्खन का भोग
मंदिर के पुजारी के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान कार्तिक इतने क्रोधित थे कि उन्होंने अपने माता-पिता को खुश करने के लिए क्रौंच पर्वत पर अपने शरीर से मांस का दान कर दिया था इसलिए यहां भगवान कार्तिकेय की हड्डी स्वरूप की पूजा की जाती है। पुजारी जी ने बताया कि भगवान के मांस त्यागने के बाद देवों ने उन्हें मक्खन और घी का लेप लगाया तब से ही भगवान को मक्खन का भोग लाया जाता है।
सुंदर वादियों का उठा सकते हैं लुफ्त
यहां आप भगवान कार्तिकेय की पूजा के साथ-साथ पहाड़ से सुंदर वादियों को निहार सकते हैं। इसके साथ ही आप ट्रैकिंग, ग्रामीण क्षेत्र में रुकने का आनंद व सुंदर पक्षियों को भी देखने का लुफ्त उठा सकते हैं। यहां मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून तक है। कार्तिक पूर्णिमा के दौरान बड़ी संख्या में भक्त मंदिर आते हैं जो आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर के बीच मनाया जाता है। आप जून माह में कलश यात्रा के दौरान भी घूमने का प्लान बना सकते हैं साथ ही अपनी चार धाम यात्रा के दौरान भी यहां जा सकते हैं।
पहाड़ के ऊपर बसा है मंदिर
यह मंदिर पहाड़ के ऊपर बसा है। कनकचौरी गांव से तीन किमी की शांत यात्रा के बाद कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इसके बाद लगभग 380 सीढ़ियां मंदिर की ओर जाती हैं। यह गांव रुद्रप्रयाग से करीब 40 किमी की दूरी पर है। ट्रेक बंदरपंच, केदारनाथ डोम और चौखंबा पीक के आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है। कार्तिक स्वामी मंदिर के लिए एक और शानदार ट्रेक है जो चोपता से शुरू होता है। कोई भी पास बसे कनकचौरी गांव को देख सकता है। गांव का जीवन और यहां की संस्कृति एक आराम की छुट्टी के लिए एकदम सही है।
अधिक ऊंचाई के कारण सुंदर पक्षियों को देखना आसान
कार्तिक स्वामी मंदिर से आसपास की पर्वत चोटियों का स्पष्ट दृश्य विस्मयकारी है। सूर्यास्त और सूर्योदय भी नाटकीय होते हैं। एक स्पष्ट दिन पर, मंदिर का सहूलियत बिंदु आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं के आश्चर्यजनक दृश्य प्रस्तुत करता है। अपनी ऊंचाई और क्षेत्र के आसपास के घने जंगलों के कारण कार्तिक स्वामी मंदिर पक्षियों को देखने के लिए एक अच्छा स्थल है। पक्षियों में चील, विशेष रूप से सुनहरी चील और मोनाल।
कार्तिकेय के मंदिर तक पहुंचने के लिए आप हवाई मार्ग अपना सकते है लेकिन आपको देहरादून से सड़क मार्ग से जाना होगा। कार्तिक स्वामी मंदिर देहरादून से 5 घंटे और रुद्रप्रयाग 30 मिनट की दूरी पर है। यहां से बस, जीप और साझा टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।