बंगाल दौरे पर मतुआ समुदाय से मिलेंगे अमित शाह, जानें- समुदाय के बारे में और इनके वोटों की अहमियत
विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की जबरदस्त पकड़ है। यह समुदाय बांग्लादेश से पलायन करके आया था और वर्षों से यहां शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। बंगाल में मतुआ समुदाय के करीब 70 लाख शरणार्थी रहते हैं जिन पर भाजपा व तृणमूल दोनों की नजर है।
कोलकाता, [ जागरण संवाददाता ]। Mission Bengal Amit Shah : बंगाल फतह करने में जुटी भाजपा के मिशन को अंजाम देने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर राज्य के दो दिवसीय दौरे पर शुक्रवार देर रात कोलकाता पहुंच रहे हैं। भाजपा सूत्रों के अनुसार, इस दौरे में शाह 30 जनवरी को उत्तर 24 परगना के ठाकुरनगर आएंगे, जहां वह 2.50 बजे से एक सभा करेंगे जिसमें मतुआ समुदाय को संबोधित करेंगे। इस दौरान शाह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू करने के बारे में महत्वपूर्ण घोषणा कर सकते हैं। दरअसल मतुआ शरणार्थियों का बंगाल के कुछ जिलों में गहरा प्रभाव है। आइए जानें, कौन हैं ये मतुआ समुदाय ? क्यों अमित साह इनसे मिलना चाहते हैं?
कौन हैं मतुआ समुदाय से संबंध रखने वाले लोग
बताया जाता है कि पूर्वी पाकिस्तान से संबंध रखने वाले मतुआ समुदाय के लोग बांग्लादेश के गठन के बाद पश्चिम बंगाल के हिस्सों में आ गए थे। इनमें से कई ने भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली है, जबकि काफी संख्या में इस समुदाय के लोगों के पास नागरिकता नहीं है। क्योंकि भाजपा हमेशा से कहती आई है कि सीएए-एनआरसी लागू होने के बाद ऐसे लोगों को देश छोड़ना होगा। इन लोगों की नागरिकता को लेकर ही ममता सरकार ने भाजपा पर हमला किया था।
मतुआ समुदाय की महिलाओं ने फूलों की बारिश की थी
जानकारी हो कि पिछले बंगाल दौरे के दौरान भी शाह कोलकाता के न्यूटाउन से सटे गौरांगनगर में मतुआ समुदाय के मंदिर पहुंचे थे। शाह के यहां आने को लेकर मतुआ समुदाय के लोगों में जबरदस्त उत्साह देखा गया था और सड़क के दोनों किनारे लोगों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा था। यहां पहुंचने पर मतुआ समुदाय की महिलाओं ने शाह पर फूलों की बारिश भी की थी। यहां के बाद वह मतुआ समुदाय से आने वाले अपने पार्टी कार्यकर्ता नवीन विश्वास के घर पहुंचे थे जहां उन्होंने दोपहर का भोजन किया था। मतुआ के घर पर भी शाह ने जमीन पर बैठकर भोजन किया था।
शाह के साथ भाजपा के अन्य नेताओं ने भी भोजन किया था
इस दौरान उन्हें भोजन के मेनू में चावल, रोटी, छोला व मूंग दाल, बैंगन भाजा, पनीर, शुक्तो, चटनी और गुड़ का पायस परोसा गया था। नवीन विश्वास की पत्नी ने खुद यह खाना तैयार किया था। खाने को केले के पत्ते पर परोसा गया था। शाह के साथ भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी भोजन किया था। बता दें कि बंगाल की राजनीति में मतुआ समुदाय का खासा प्रभाव है।
विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की जबरदस्त पकड़
मालूम हो कि, खासकर उत्तर व दक्षिण 24 परगना एवं नदिया जिले की 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की जबरदस्त पकड़ है। यह समुदाय बांग्लादेश से पलायन करके आया था और वर्षों से यहां शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। बंगाल में मतुआ समुदाय के करीब 70 लाख शरणार्थी रहते हैं, जिन पर भाजपा व तृणमूल दोनों की नजर है।
मतुआ समुदाय को केवल नागरिकता चाहिये
मतुआ समुदाय यानी कि बंगाल में एससी आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा। वर्ष 2019 के दिसंबर महीने में सीएए बिल पास किया गया जिससे बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व अन्य पड़ोसी देशों से आये शरणार्थियों को नागरिकता मिलने वाली थी। बंगाल में मतुआ समुदाय का वोट अत्यंत अहम है। इसका कारण है यहां लगभग 70 लाख मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं जिन्हें किसी तरह का झुनझुना नहीं, केवल नागरिकता चाहिये। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ समेत अन्य शरणार्थियों का समर्थन भाजपा को मिला था। ऐसे में तृणमूल और भाजपा दोनों के लिए ही 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले मतुआ वोट कितना अहम है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
इसलिए जरूरी है मतुआ वोट
वर्ष 2001 की गणना के अनुसार, बंगाल की 1.89 करोड़ एससी आबादी में 33.39 लाख अथवा 17.4 प्रतिशत आबादी नमोशूद्र है। कहा जाता है कि नमोशूद्र की आधी आबादी मतुआ समुदाय की है। धार्मिक प्रताड़ना के कारण वर्ष 1950 से मतुआ बंगाल में आ गये। मतुआ संप्रदाय वर्ष 1947 में देश विभाजन के बाद हिंदू शरणार्थी के तौर पर बांग्लादेश से यहां आया था। 2011 के जनगणना के अनुसार बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी 1.84 करोड़ है जिसमें मतुआ संप्रदाय की आबादी तकरीबन आधा है। यद्यपि कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन मतुआ संप्रदाय को लगभग 70 लाख की जनसंख्या के साथ बंगाल का दूसरा सबसे प्रभावशाली अनुसूचित जनजाति समुदाय माना जाता है।
भाजपा को समर्थन देने वाले मतुआ अब कर रहे हैं नागरिकता देने की मांग
गत लाेकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन देने के बाद अब मतुआ समुदाय के लोग नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं। अब तक सीएए बिल पास नहीं होने से बनगांव के भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर भी पार्टी से नाराज हो गये थे जिसके बाद भाजपा नेता तथागत राय ने उनके घर जाकर उन्हें मनाया था। ऐसे में यह तो जाहिर है कि सीएए कानून लागू करने में हो रही देरी को लेकर अब नाराजगी बढ़ने लगी है।
जेपी नड्डा ने कहा था जल्द लागू करेंगे सीएए
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा गत 19 अक्टूबर को बंगाल आये थे तो उस समय भी सीएए लागू होने में देरी को लेकर प्रश्न पूछा गया था जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि कोरोना के कारण सीएए लागू करने में देरी हो रही है। इसकी प्रक्रिया चालू है और जल्द इसे लागू किया जाएगा।
सीएए लागू करने में देरी से भाजपा को पहुंच सकता है नुकसान
प्रदेश भाजपा के कई नेताओं का कहना है कि राज्य में सीएए लागू करने में हो रही देरी का नुकसान भाजपा को विधानसभा चुनाव में पहुंच सकता है। इस कारण शरणार्थी वोटर और विशेषकर मतुआ वोट भाजपा के खिलाफ जा सकता है।