Phanishwar Nath Renu के हाथों की हथकड़ी का गवाह है बूढ़ा बरगद, पढ़ें रेणु की जेल यात्रा
Phanishwar Nath Renu- भारत छोड़ो आंदोलन के साथ-साथ जेपी आंदोलन में भी रेणु जेल गए थे। कथाशिल्पी केंद्रीय कारा पूर्णिया में बंद रहे। इसी कारा का बूढ़ा बरगद का पेड़ रेणु के हाथों में पड़ी हथकड़ी का गवाह है।
By Shivam BajpaiEdited By: Updated: Wed, 08 Jun 2022 06:00 PM (IST)
प्रकाश वत्स, पूर्णिया : कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के हाथों में हथकड़ी का साक्ष्य अब भी केंद्रीय कारा पूर्णिया में महफूज है। केंद्रीय कारा के सामने मौजूद बूढ़े बरगद ने भी उस पल को देखा है, जब रेणु को हथकड़ी में यहां लाया गया था। अमर कृतियों से विश्व में अपनी अलग पहचान बनाने वाले रेणु के व्यक्तित्व का यह पहलू भी उनके प्रति सम्मान का एक बड़ा कारक है। महज 56 वर्ष की आयु में जग को अलविदा कहने वाले रेणु को दो-दो बार केंद्रीय कारा, पूर्णिया में कुछ समय काटना पड़ा था।
पहली बार 1942 में गिरफ्तार हुए थे रेणुफणीश्वर नाथ रेणु न केवल कलम के जादूगर थे बल्कि उनके दिल में देश व अपने समाज के लिए भी काफी प्रेम था। स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। पहले उन्हें अररिया जेल में रखा गया था फिर वहां से पूर्णिया केंद्रीय कारा लाया गया था। यहां से बाद में उन्हें भागलपुर कारा भेज दिया गया था। उस दौर में लगभग दो साल उन्होंने विभिन्न जेलों में अपना समय बीताया था। बाद में 1974-75 में जेपी आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी और इस चलते तत्कालीन हुकूमत के फरमान पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। यद्यपि स्वास्थ्य कारणों से जल्द ही उनकी रिहाई हो गई थी और बाद में 1977 में पटना में इलाज के दौरान ही उनका निधन हो गया था।
बूढ़े बरगद से भी है केंद्रीय कारा की पहचानकेंद्रीय कारा के समक्ष बूढ़े बरगद की भी अपनी पहचान रही है। 99 वर्षीय अमित लाल ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही इस वटवृक्ष को इसी रुप में देखा है। यह अब भी कैदियों के मुलाकातियों का बड़ा बसेरा है और पूर्व में भी यह वैसे लोगों का बसेरा था। यही नहीं बाहर से बंदी को लेकर आने वाले पुलिस कर्मियों का भी पहला पड़ाव यही होता है। कागजी प्रक्रिया चलने तक वे लोग इसी के छांव में आज भी इंतजार करते हैं। पहले भी यहां चाय, पान व नाश्ते की दुकान सजती थी और आज भी वही नजारा है। इस वटवृक्ष ने यहां के कल को भी देखा है और आज को भी देख रहा है।
'केंद्रीय कारा में आजादी के पूर्व का रिकार्ड तो अब जीर्ण-शीर्ण हो चुका है, लेकिन सन 1975 के इंट्री फाइल में बंदी के रुप में कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु का नाम भी दर्ज है। उस रिकार्ड को उन लोगों ने संभालकर रखा है और उसे फोटो फ्रेम में कराने की कवायद हो रही है।'- राजीव कुमार झा, कारा अधीक्षक, पूर्णिया।
'कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की आजादी की लड़ाई से लेकर जेपी आंदोलन तक में उनकी अहम सक्रियता रही थी। और तो और नेपाली क्रांति में भी उनकी भागीदारी रही थी। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका के चलते उन्हें जेल जाना पड़ा था। जेपी आंदोलन में भी वे गिरफ्तार हुए थे लेकिन स्वास्थ्य के आधार पर उन्हें जल्द रिहा कर दिया गया था।'- गोविंद कुमार, साहित्यकार, पूर्णिया।
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