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E-Commerce नीति में बदलाव करना जरूरी, ज्यादा देर करना उपभोक्ता के हित में नहीं

सामान पसंद नहीं आने पर ई-कॉमर्स कंपनियां सामान लौटा देती हैं लेकिन आप यह जानकार हैरान रह जाएंगे कि अभी कानूनी रूप से ये कंपनियां सामान लौटाने के लिए बाध्य नहीं है। पहल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में देश के कुल खुदरा कारोबार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी 10.4 प्रतिशत हो जाएगी और वर्ष 2030 तक देश में ई-कॉमर्स का आकार 350 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।

By Jagran News Edited By: Yogesh Singh Updated: Fri, 23 Aug 2024 09:05 PM (IST)
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ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि अभी हमारे देश में नियम नहीं है।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। दो दिन पहले वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ई-कॉमर्स को लेकर जो चिंता जताई थी वह उपभोक्ता और छोटे दुकानदार दोनों के हितों लिए जायज थी। छोटे दुकानदार ई-कॉमर्स कंपनियों की गैर प्रतिस्पर्धात्मक रवैये से प्रभावित तो हो ही रहे हैं। कारोबार बढ़ने के साथ उपभोक्ताओं के साथ ई-कॉमर्स कंपनियों की ठगी भी बढ़ रही है। हालांकि, उपभोक्ता ऑफलाइन व्यापारियों के यहां भी ठगे जाते हैं। नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन पर वर्ष 2018 में ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ 95,270 शिकायतें आईं जो वर्ष 2023 में बढ़कर 4.44 लाख हो गई।

चिंतित उपभोक्ता मामले का विभाग ई-कॉमर्स कंपनियों को अपना एक लिखित संहिता तैयार करने के लिए कहा है ताकि यह पता लग सके कि कंपनी में क्या मान्य है और क्या अमान्य। ई-कॉमर्स नीति के अभाव में उत्पाद के फेक रिव्यू, उत्पाद की कमी दिखाकर दबाव पैदा करना, उत्पाद की सही जानकारी नहीं देना, सामान लौटाने में आनाकानी करना जैसी हरकतों से उपभोक्ता प्रभावित हो रहे हैं तो सस्ते दाम पर सामान बेच कर, ई-कॉमर्स प्लेटफार्म चलाने वाली कंपनियों की तरफ से अपने उत्पाद बेचने जैसे गैर पेशेवर हरकतों से छोटे दुकानदारों की दुकानदारी खराब हो रही हैं। लेकिन ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, क्योंकि अभी हमारे देश में नियम नहीं है। कोई नीति नहीं है।

सामान पसंद नहीं आने पर ई-कॉमर्स कंपनियां सामान लौटा देती हैं, लेकिन आप यह जानकार हैरान रह जाएंगे कि अभी कानूनी रूप से ये कंपनियां सामान लौटाने के लिए बाध्य नहीं है। पहल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में देश के कुल खुदरा कारोबार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी 10.4 प्रतिशत हो जाएगी और वर्ष 2030 तक देश में ई-कॉमर्स का आकार 350 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।

ऐसे में पिछले चार साल से 27 प्रतिशत की दर से बढ़ने वाले ई-कॉमर्स के लिए लिखित कानून का होना बहुत जरूरी है। वर्ष 2015-16 में ऑनलाइन मोबाइल फोन की खरीदारी का चलन तेजी से बढ़ा और तब यह शिकायत आने लगी कि फोन की जगह ईंट-पत्थर कंपनियां भेज रही हैं। मामले को सरकार के सामने लाए जाने पर शुरू में यह कहा गया कि उपभोक्ता मामले का मंत्रालय ई-कॉमर्स नियम को देखेगा।

बाद में उपभोक्ता के साथ खुदरा व्यापारी जब बिग बिलियन सेल के खिलाफ आवाज उठाने लगे तो यह तय हुआ कि ई-कामर्स व्यापार से जुड़ा है, इसलिए वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय ई-कामर्स नीति को तैयार करेगा। वर्ष 2019 में का उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने नेशनल ई-कॉमर्स नीति के लिए मसौदा जारी किया जिसमें ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस, नियामक संबंधी मामले, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, डाटा विकास व सुरक्षा घरेलू डिजिटल कारोबार जैसे मुद्दों को शामिल किया गया था।

लेकिन, उस ड्राफ्ट को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका और उसके बाद ई-कॉमर्स नीति पर एक नेशनल फ्रेमवर्क बनाने की कवायद शुरू हुई। इस साल लोक सभा चुनाव से पहले विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एवं वाणिज्य व उद्योग मंत्री सभी की तरफ से यह बताया गया था कि ई-कॉमर्स नीति तैयार है। छोटे कारोबारियों से लेकर उपभोक्ता तक को इस नीति का इंतजार है।