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खानपान पर कमाई का कितना हिस्सा खर्च कर रहे भारतीय, EAC-PM के रिसर्च पेपर से खुला राज

सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भोजन पर कुल घरेलू व्यय का हिस्सा काफी हद तक कम हो गया है। आधुनिक भारत (स्वतंत्रता के बाद) में यह पहली बार है कि भोजन पर औसत घरेलू खर्च परिवारों के कुल मासिक खर्च के आधे से भी कम है। सरकार के मुताबिक यह महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है।

By Jagran News Edited By: Suneel Kumar Updated: Thu, 05 Sep 2024 07:59 PM (IST)
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प्रति व्यक्ति व्यय की मात्रा राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग है।

पीटीआई, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) द्वारा तैयार किए गए एक पेपर के अनुसार, 1947 के बाद पहली बार भारत में भोजन पर औसत घरेलू खर्च आधे से भी कम हो गया है। 'भारत के खाद्य उपभोग और नीतिगत निहितार्थों में परिवर्तन: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 और 2011-12 का एक व्यापक विश्लेषण' शीर्षक वाले इस पत्र के अनुसार, भारत के खाद्य उपभोग पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव दिखाई दे रहे हैं।

इस पत्र के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भोजन पर कुल घरेलू व्यय का हिस्सा काफी हद तक कम हो गया है। इसमें कहा गया है, ''आधुनिक भारत (स्वतंत्रता के बाद) में यह पहली बार है कि भोजन पर औसत घरेलू खर्च परिवारों के कुल मासिक खर्च के आधे से भी कम है और यह महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है। कुल मिलाकर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के औसत मासिक प्रति व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।'

प्रति व्यक्ति व्यय की मात्रा राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में जहां 2011-12 से 2022-23 के बीच खपत व्यय में वृद्धि 151 प्रतिशत रही है वहीं तमिलनाडु में यह लगभग 214 प्रतिशत रही। सिक्किम में खपत व्यय में 394 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखी गई। आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण परिवारों की खपत वृद्धि जहां 164 प्रतिशत थी वहीं शहरी परिवारों की खपत वृद्धि 146 प्रतिशत रही।

पेपर में इस बात का सुझाव दिया गया है कि कृषि नीतियों को सिर्फ अनाज को ध्यान में रखकर नहीं तैयार करना चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जैसी नीतियों का किसानों के कल्याण पर सीमित प्रभाव पड़ता है। पैकेज्ड भोजन पर होने वाले घरेलू व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि सभी क्षेत्रों में देखने को मिली है, लेकिन देश के शीर्ष 20 प्रतिशत परिवारों और शहरी क्षेत्रों में यह वृद्धि काफी अधिक है।

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