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यासीन मलिक से जुड़े मामले की सुनवाई से जज ने खुद को किया अलग, NIA ने की थी मौत की सजा की मांग

न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने कहा कि न्यायमूर्ति शर्मा ने इससे खुद को अलग कर लिया है ऐसे में में अब मामले को नौ अगस्त को किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें। इससे पहले न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने दिल्ली दंगा से जुड़े मामले से भी खुद को अलग कर लिया था। साथ ही मामले पर अगली सुनवाई के दौरान यासीन मलिक को वर्चुअली पेश करने को कहा।

By Vineet Tripathi Edited By: Sonu Suman Updated: Thu, 11 Jul 2024 10:47 PM (IST)
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यासीन मलिक से जुड़े मामले की सुनवाई से जज ने खुद को किया अलग।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। आतंकी फंडिंग मामले में अलगाववादी नेता यासीन मलिक के लिए मौत की सजा की मांग करने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई से दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने खुद को अलग कर लिया। यह मामला बृहस्पतिवार को ऐसे मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों के रोस्टर में बदलाव के बाद मामला न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।

न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने कहा कि न्यायमूर्ति शर्मा ने इससे खुद को अलग कर लिया है, ऐसे में में अब मामले को नौ अगस्त को किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें। इससे पहले न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने दिल्ली दंगा से जुड़े मामले से भी खुद को अलग कर लिया था। साथ ही मामले पर अगली सुनवाई के दौरान यासीन मलिक को वर्चुअली पेश करने को कहा।

2022 में दोषी करार दिए गए थे यासीन मलिक

आजीवन कारावास की सजा काट रहे यासीन मलिक को 24 मई 2022 को पटियाला हाउस कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों के लिए दोषी करार दिया था। मलिक ने यूएपीए के तहत लगाए गए आरोपों सहित सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया था।

एनआईए ने की मौत की सजा की मांग

सजा के खिलाफ अपील करते हुए एनआईए ने कहा कि किसी आतंकवादी को केवल इसलिए आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती क्योंकि उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया है और मुकदमा नहीं चलाने का विकल्प चुना है। सजा को बढ़ाकर मौत की सजा में बदलने की मांग करते हुए एनआईए ने कहा है कि अगर ऐसे खूंखार आतंकवादियों को दोषी मानने के कारण मौत की सजा नहीं दी जाती है, तो सजा नीति पूरी तरह खत्म हो जाएगी और आतंकवादियों के पास मौत की सजा से बचने का एक रास्ता बच जाएगा।

एनआईए ने दावा किया है कि आजीवन कारावास की सजा आतंकवादियों द्वारा किए गए अपराध के अनुरूप नहीं है, वह भी तब जब देश और सैनिकों के परिवारों को जान का नुकसान हुआ हो।

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