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वैवाहिक मामलों में मुकदमेबाजी बदला लेने के लिए झूठी गवाही का इस्तेमाल नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में झूठी गवाही और दुश्मनी की भावना से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को अपनी दुश्मनी की भावना को संतुष्ट करने और बदला लेने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का मजाक उड़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने पत्नी को भरण-पोषण के भुगतान से संबंधित याचिका पर यह टिप्पणी की है।

By Ritika Mishra Edited By: Geetarjun Updated: Thu, 26 Sep 2024 01:15 AM (IST)
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वैवाहिक मामलों में मुकदमेबाजी बदला लेने के लिए झूठी गवाही का इस्तेमाल नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पति द्वारा अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के भुगतान से संबंधित याचिका पर तल्ख टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि वैवाहिक मामलों में, खास तौर पर झूठी गवाही का इस्तेमाल कर मुकदमेबाजी करने वालों को अपनी दुश्मनी की भावना को संतुष्ट करने और बदला लेने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का मजाक उड़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति अमित महाजन ने कहा कि वैवाहिक विवादों में लड़ने वाले पक्षों द्वारा दूसरे व्यक्ति को परेशान करने के लिए अनुमान और संदेह के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत कार्यवाही की मांग करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। धारा 340 उस प्रक्रिया से संबंधित है जब कोई पक्ष अदालत में झूठा तथ्य रख करके झूठी गवाही देता है।

न्यायमूर्ति महाजन नं अपने फैसले में कहा कि बेशक अगर पत्नी को दुराचार में लिप्त पाया जाता है तो उचित जांच का आदेश दिया जा सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में धारा 340 के तहत जांच का आदेश दिया जाए। अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में कई बार देखा गया है कि पक्षकारों में अपनी वास्तविक आय का उल्लेख न करना एक सामान्य प्रवृत्ति है।

ऐसी परिस्थितियों में अदालत को कुछ अनुमान लगाने और एक ऐसे आंकड़े पर पहुंचने की अनुमति है जो पक्षकार उचित रूप से कमा सकता है। अदालत ने झूठी गवाही के लिए पत्नी को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को खारिज कर दिया और कहा कि अभियोजन केवल झूठ के स्पष्ट मामलों में ही शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि यह व्यक्तिगत बदला लेने की भावना को संतुष्ट करने का साधन नहीं बन सकता।

दूसरे पक्ष को परेशान करने और बदला लेने के लिए सीआरपीसी की धारा 340 के तहत शक्ति का नियमित दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने अपने आदेश में पारिवारिक अदालत द्वारा पत्नी को दिए गए भरण-पोषण की राशि में बदलाव करने से इन्कार कर दिया और कहा कि 12,000 रुपये प्रति माह की राशि न्यायसंगत और उचित है।

पत्नी ने पारिवारिक अदालत के आदेश का इस आधार पर विरोध किया कि उसके बयानों में विसंगतियां थीं। उसका अदालत को गुमराह करने का कोई इरादा नहीं था और भरण-पोषण की राशि को उसकी वर्तमान वित्तीय जरूरतों को दर्शाने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए।

पारिवारिक अदालत ने पत्नी को दिए जाने वाले 25,000 रुपये के भरण-पोषण भत्ते को घटाकर 12,000 रुपये प्रति माह कर दिया था, साथ ही पति द्वारा यह दावा किए जाने के बाद कि उसने अपनी आय और संपत्ति के संबंध में झूठा हलफनामा दायर किया है और इसलिए उस पर झूठी गवाही देने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए, धारा 340 के तहत उसके खिलाफ कार्यवाही भी शुरू कर दी थी। पारिवारिक अदालत ने कहा था कि पत्नी के पास कुछ वित्तीय साधन थे, जिनका उल्लेख उसके समक्ष नहीं किया गया था।