अब दिल्ली की सड़कों पर वाहनों के शोर से नहीं होगी परेशानी, ध्वनि अवरोधक तकनीक के इस्तेमाल की तैयारी
सड़कों का शोर नियंत्रित करने के लिए ध्वनि अवरोधक का इस्तेमाल किया जाएगा। सीआआरआई द्वारा विकसित किया गया ये ध्वनि अवरोधक विभिन्न आवृत्ति के आधार पर तैयार किया गया है। सिर्फ सड़क ही नहीं रेलवे और औद्योगिक क्षेत्रों के शोर को भी ये नियंत्रित कर सकेगा। इसकी एक और विशेषता है जिसके आधार पर सीआरआरआई इसके विश्व में पहली बार ऐसी तकनीक विकसित होने का दावा करता है।
अजय राय, नई दिल्ली। वायु प्रदूषण के साथ ध्वनि प्रदूषण भी हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है। शहरों में तो ध्वनि प्रदूषण सड़कों से घरों तक है। नींद में खलल, कानों के पर्दे को धीमी-धीमी क्षति ये समस्याएं निरंतर बढ़ रही हैं। सड़कों पर वाहनों के इस शोर को रोकने के लिए केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) ने आवृत्ति आधारित ध्वनि अवरोधक तैयार किया है।
संस्थान का दावा है कि यह अवांछित शोर को 95% तक खत्म करने में कारगर है। विकसित होते महानगरों में, वहां के बुनियादी ढांचे में ध्वनि प्रदूषण जैसी प्रमुख खामियां तो उजागर होती ही हैं। इस ध्वनि अवरोधक से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मुंबई में हिंदमाता फ्लाईओवर पर इस तकनीक का उपयोग होने भी लगा है।
इसके अलावा दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन नोएडा-62 मेट्रो स्टेशन और खान मार्केट स्थित अपने जेनसेट के शोर को कम करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहा है। फिलहाल छोटे से हिस्से में इसे दिल्ली स्थिति ईस्ट ऑफ कैलाश मेट्रो स्टेशन पर लगाया गया है।
रेलवे, मेट्रो, राजमार्ग सब जगह उपयोगी
सड़कों का शोर नियंत्रित करने को वैसे कई तरह के अवरोधक हैं लेकिन वर्तमान में सीआआरआई द्वारा विकसित किया गया ये ध्वनि अवरोधक विभिन्न आवृत्ति के आधार पर तैयार किया गया है। सिर्फ सड़क ही नहीं, रेलवे और औद्योगिक क्षेत्रों के शोर को भी ये नियंत्रित कर सकेगा। इसकी एक और विशेषता है जिसके आधार पर सीआरआरआई इसके विश्व में पहली बार ऐसी तकनीक विकसित होने का दावा करता है।
दरअसल इस ध्वनि अवरोधक का डिजाइन विशिष्ट आवृत्तियों निम्न, मध्यम और उच्च के आधार पर तैयार किया गया है। अब तक इस तरह की सुविधा नहीं थी। यह नवाचार रेलवे, मेट्रो, राजमार्ग आदि के लिए सबसे उपयुक्त है, जहां वक्र (टेढ़ी-मेढ़ी) भाग पर ट्रेन की पटरियों से निकलने वाले चीं चीं (इचिंग) का शोर सबसे बड़ी समस्या है।
देश में रेलवे पटरियों के किनारे कई शहर बसे हैं, जहां इसके आसपास के घरों में रहना दुश्वारियों से भरा है। यह उन समस्याओं से भी निजात दिलाने में कारगर होगा। ये उन सड़क चौराहों के लिए भी उपयुक्त है जहां हार्न बजाना सबसे बड़ी समस्या है। बता दें कि रेलवे, राजमार्ग या विमानन लगभग 72% ध्वनि प्रदूषण में योगदान करते हैं।
ध्वनि अवरोधक का न्यूनतम जीवन दो दशक
सामान्य परिस्थितियों में आवृत्ति आधारित शोर अवरोधक का न्यूनतम जीवन दो दशक तक है। इसकी विशेषता है कि इसे पुन: उपयोग किया जा सकता है। स्थापना के दौरान और स्थापना के बाद मानव शरीर पर इसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा। सीआरआरआई ने तीनों ध्वनि अवरोधक की तकनीक के लिए 50 लाख रुपये कीमत तय की है।
वहीं, कोई एक लेने पर 25 लाख देना होगा। फिलहाल दो मुंबई और एक विशाखापतनम की कंपनी ने इस तकनीक को खरीदा है। यह ध्वनि अवरोधक आधा मीटर ऊंचा और डेढ़ मीटर चौड़ा है। इसे लगाने के लिए पहले एक लोहे का फ्रेम तैयार किया जाता है। खुली जगह पर इसे कम से कम तीन मीटर ऊंचा लगाने की जरूरत होती है।
दुनिया में पहली बार हमने ऐसी बाधाएं विकसित की हैं जिनके जरिये तीनों तरह के शोर की आवृत्तियों को रोका जा सकता है। अवरोधों को फ्लाईओवर, यातायात चौराहों और रेलवे स्टेशनों पर आसानी से लगाया जा सकता है। वायु प्रदूषण की तरह ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, इसलिए ऐसे ध्वनि अवरोधकों की आवश्यकता है। - नसीम अख्तर, मुख्य विज्ञानी, परिवहन योजना और पर्यावरण, सीआरआरआई