Vehicle Scrapping: उम्र पूरी कर चुके वाहनों का एक माह में करना होगा 'काम तमाम', ये हैं स्क्रैपिंग के नए नियम
Vehicle Scrapping Policy ऐसे वाहनों की पूरी स्क्रैपिंग एक माह में पूरी करनी होगी। 15 दिन में डी पल्युशन जबकि अगले 15 दिनों में डिस्मेंटल का काम किया जाएगा। बेकार गाड़ियां काफी बड़ी हो सकती हैं इसलिए इनकी हेंडलिंग स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
By Sanjay GuptaEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Thu, 06 Apr 2023 02:07 PM (IST)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। उम्र पूरी कर चुके वाहनों यानी ईएलवी (एंड आफ लाइफ वीकल) की स्क्रैपिंग के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पर्यावरण अनुकूल नई गाइडलाइंस जारी की है। इसके तहत ऐसे वाहनों की पूरी स्क्रैपिंग एक माह में पूरी करनी होगी। 15 दिन में डी पल्युशन जबकि अगले 15 दिनों में डिस्मेंटल का काम किया जाएगा।
सीपीसीबी ने जारी की नई गाइडलाइंस
सीपीसीबी के अनुसार आटोमोटिव सेक्टर के साथ साथ ऐसी गाड़ियों की तादाद भी बढ़ती जा रही है जो अपनी समय सीमा पूरी कर चुकी हैं। लेकिन इन गाड़ियों की स्क्रैपिंग भी समस्या बढ़ा रही है। इसलिए ऐसी गाड़ियों के लिए संग्रहण, भंडारण, ट्रांसपोर्टेशन, इससे निकलने वाले कचरे आदि के लिए नियम तय करना जरूरी है।
ऐसी गाड़ियों में कई खतरनाक पदार्थ भी होते हैं, जिसमें खराब तेल, लूबरिकेंट, खराब बैट्री, लैंप, अन्य इलेक्ट्रानिक चीजें के साथ एयर बैग आदि शामिल हैं। यह सामान भी एक चिंता का विषय है। पहला यह स्क्रैपिंग साइट पर काम करने वालों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं और दूसरा इनका सही निस्तारण न होने पर यह पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह हैं।
इस समय ज्यादातर स्क्रैप यार्ड का मैनेजमेंट सेमी फार्मल सेक्टर में हो रहा है। इसकी वजह से इसमें काफी कमियां हैं। बेकार हो चुकी इन गाड़ियों में कई धातुएं और चीजें ऐसी हैं जिनको अगर सही तरीके से रिसाइकल किया जाए तो यह इकोनामी बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। सीपीसीबी के अनुसार अभी भी देश में 70 प्रतिशत कटने वाली गाड़ियां सीधे दोबारा इस्तेमाल होती है या दूसरे निर्माता को बेच दी जाती हैं।
स्क्रैपिंग की प्रक्रिया:-
- सबसे पहले बेकार हो चुकी गाड़ियों का डी पल्युशन किया जाता है। इस प्रक्रिया में गाड़ियों के सभी खतरनाक उपकरण जैसे बैट्री, फ्यूल, फ्लूयड, एयर बेग, केटालिस्ट, सभी तरह की धातुओं वाले उपकरणों को अलग किया जाता है।
- इसके बाद गाड़ी को डिस्मेंटल किया जाता है। इस प्रक्रिया में गाड़ी के हिस्सों को अलग करना और रिसाइकल वाले हिस्से को कलेक्ट करना शामिल रहता है। इसमें इस्तेमाल और दोबारा इस्तेमाल होने वाली चीजों को बेच दिया जाता है। इसमें हल्क, मोटर पार्ट्स, बैट्री, ईंधन आदि शामिल होता है। रिसाइकल होने वाली चीजों जैसे कारपेट, टायर या अन्य धातुओं को संबंधित सेंटरों पर भिजवाया जाता है।
- गाड़ी के डी पल्युशन और डिस्मेंटलिंग के समय जो पानी इस्तेमाल किया जाता है, उसका शोधन करना जरूरी होता है
- इसके बाद अन्य बचे हिस्सों को आटोमेटिव श्रेडर मशीन में डालकर छोटे छोटे टुकडे़ कर दिए जाते हैं।
स्क्रैपिंग के नए नियम:-
-नए व्हीकल सर्विस सेंटर को अपग्रेड कर कलेक्शन सेंटर बनाया जा सकता है। गाड़ियों को रिसाइकल करने वाले लोग गाड़ियां बनाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर कलेक्शन सेंटर बना सकते हैं। इस तरह के कलेक्शन सेंटर 50 किलोमीटर के दायरे को ध्यान में रखकर बनाए जाने चाहिए। यह कलेक्शन सेंटर सेंट्रलाइज्ड कलेक्शन सेंटर से जुडे़ हों। यदि इन कनेक्शन सेंटर में डी पल्युशन और डिस्मेंटलिंग का काम करना है तो वह मोटर व्हीकल रूल 2021 के अनुरूप करना होगा। बेकार गाड़ियां काफी बड़ी हो सकती हैं इसलिए इनकी हेंडलिंग, स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए।-गाड़ियों का डी पल्युशन करने के बाद उन्हें पंद्रह दिन से अधिक नहीं रखा जा सकता। साथ ही गाड़ियों से किसी तरह का फ्लूयड लीक नहीं होना चाहिए। गाड़ियां ऐसी जगह में खड़ी की जाएं जो पूरी तरह सूखी हों। गाड़ियां कच्ची जगह की बजाय पक्की जगह पर स्टोर की जाएंगी। ऐसी गाड़ियों को बाढ़ संभावित एरिया, झीलों, तलाबों के पास नहीं रखा जा सकता। सार्वजनिक संपत्ति के आसपास भी इस तरह की गाड़ियों को नहीं रखा जा सकता। गाड़ियों को एक लाइन में पार्क किया जाएगा और हर लाइन के बीच में आने जाने की जगह रहेगी।
-गाड़ियों को डी पल्युशन करने की प्रक्रिया पूरी तरह सुरक्षित हो। इस प्रक्रिया के लिए सबसे पहले बैट्री को डिस्कनेक्ट किया जाएगा। इसके बाद ईंधन, आयल फिल्टर, कूलेंट, ब्रेक फ्यूल, पावर स्टीयरिंग कैप्स आदि को निकाला जाएगा। इसके बाद पहिए और टायर, व्हील बेलेंसिंग, वेट कैप्स आदि को निकाला जाएगा। इसके बाद गाड़ी को तय जगह पर रखकर उससे अतिरिक्त फ्लूयड और गैस निकाली जाएगी। स्क्रैप के लिए आने वाली गाड़ियों की डी पल्युशन प्रक्रिया पंद्रह दिन में पूरी होनी चाहिए।
-गाड़ियों से निकले वाले तरल पदार्थ को जरूरत के अनुसार रिसाइकल प्लांट या वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में भेजा जाएगा।बता दें कि एक अनुमान के मुताबिक एक पैसेंजर कार में 70 प्रतिशत स्टील, सात से आठ प्रतिशत अल्युमिनियम होता है। बाकी में 20 से 25 प्रतिशत प्लास्टिक, रबड़, ग्लास आदि होते हैं। एक टन स्टील को रिसाइकल करने से 1,134 किलो लोहा, 635 किलो कोयला और 54.4 किलो लाइमस्टोन की बचत होती है।
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