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World Book Fair 2024: साहित्य के महाकुंभ में टूटे रिकॉर्ड, खूब हुआ कारोबार; आखिरी दिन विश्व पुस्तक मेले में पहुंची भीड़

डिजिटल क्रांति के बावजूद पुस्तकें पढ़ने वालों की संख्या में कमी नहीं आई बल्कि वृद्धि ही हुई है। हर वर्ग और हर उम्र के लोग किताबें पढ़ना चाह रहे हैं। यह बात अलग है कि अब उनकी पसंद परंपरागत साहित्य पुस्तकों के साथ-साथ अपनी रूचि और जरूरत के अनुरूप व्यापक हो गई है। समय था जब साहित्य का पर्याय मोटे-मोटे उपन्यास कहानी संग्रह जीवनियां कविता संग्रह और निबंधात्मक पुस्तकें होती।

By sanjeev Gupta Edited By: Geetarjun Updated: Sun, 18 Feb 2024 08:27 PM (IST)
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प्रगति मैदान में लगे विश्व पुस्तक मेला के अंतिम दिन खरीदारी करते युवा। फोटो- चंद्र प्रकाश मिश्र

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। डिजिटल क्रांति के बावजूद पुस्तकें पढ़ने वालों की संख्या में कमी नहीं आई बल्कि वृद्धि ही हुई है। हर वर्ग और हर उम्र के लोग किताबें पढ़ना चाह रहे हैं। यह बात अलग है कि अब उनकी पसंद परंपरागत साहित्य पुस्तकों के साथ-साथ अपनी रूचि और जरूरत के अनुरूप व्यापक हो गई है।

एक समय था जब साहित्य का पर्याय मोटे-मोटे उपन्यास, कहानी संग्रह, जीवनियां, कविता संग्रह और निबंधात्मक पुस्तकें होती थीं। वक्त बदलने, सैटेलाइट चैनल आने एवं इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स आने के बाद एक समय ऐसा भी आया जब पुस्तकों की बिक्री एवं इन्हें पढ़ने दोनों के प्रति गिरावट आने लगी।

अब बदल गईं स्थितियां

पुस्तक मेलों में भी या तो बहुत ज्यादा दर्शक आते नहीं थे और आते भी थे तो उनमें किताबें खरीदने वालों की संख्या बहुत ही कम होती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थितियां तेजी से बदली हैं।

आज न केवल लोग पुस्तकें पढ़ना चाह रहे हैं बल्कि पुस्तकें खरीदना भी पसंद करने लगे हैं। इस बार विश्व पुस्तक मेले में जितनी भीड़ आई, देखते ही बनी। खास बात यह कि यह भीड़ केवल मेला घूमने वालों की नहीं रही, अपितु इसमें एक बड़ी संख्या पुस्तकें खरीदने वालों की भी थी।

पसंद भी बदली

यह बात अलग है कि आज का पाठक छोटी कहानियां या यूं कहें कि लघुकथा, सामयिक या चर्चित विषयों पर आधारित उपन्यास, शेरो-शायरी, रोमांटिक या कटाक्ष करने वाली कविताएं, चर्चित हस्तियों से जुडे़ विषयों सहित अपनी जरूरत के मुताबिक पुस्तकें पढ़ना भी पसंद करता है। मसलन, योग, प्रबंधन, पाककला, हास्य व्यंग्य, बच्चों की देखभाल, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, फिल्मों, व्यक्तित्व विकास इत्यादि। धार्मिक पुस्तकों के प्रति भी पाठकों का रूझान बढ़ा है।

प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार बताते हैं, पहले अगर मेला देखने 200 लोग आते थे तो उसमें से 20 लोग ही पुस्तकें खरीदते थे जबकि आज यह संख्या एक सौ से अधिक है। इसके अलावा आज मेले में आने वाले पाठक अपना एक बजट भी बनाकर चलते हैं कि उन्हें इतने रुपये तक की किताबें लेनी हैं।

किताबघर के संचालक राजीव शर्मा भी इस सच्चाई से इनकार नहीं करते। वह कहते हैं, पुस्तकों की बिक्री भी बढ़ी है और पठन पाठन संस्कृति भी। जहां तक पसंद का सवाल है तो वह समयानुसार बदलती ही रहती है। सुखद यह है कि पठन संस्कृति का विकास हो रहा है और लोग वापस इलेक्ट्रॉनिक गैजेटस की चकाचौंध से निकलकर पढ़ने का समय निकाल रहे हैं।

15 लाख से अधिक पाठक, करोड़ों का कारोबार

किताबों के प्रति दिल्ली एनसीआर वासियों का बढ़ता प्रेम कहें या कुछ और. लेकिन 31 वें विश्व पुस्तक मेले ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। मेले में आने वाले पुस्तक प्रेमियों की संख्या तो व्यापार मेला दर्शकों के अधिक पहुंच गई। कारोबार भी करोड़ों रुपये का हुआ। शनिवार-रविवार को तो मेले में पाठकों को कतार में लगकर प्रवेश करते देखा गया। मेला आयोजक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के मुताबिक नौ दिन के मेले में 15 लाख से अधिक पाठक पहुंचे। पुस्तकों की बिक्री का आंकड़ा भी करोड़ों में रहा।

इस बार मेले में धार्मिक पुस्तकें भी खूब बिकीं। गीताप्रेस गोरखपुर के स्टाल पर श्रीरामचरितमानस की ही हजारों प्रतियां बिक गईं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की 93 हजार से अधिक किताबें बिकी। प्रभात प्रकाशन की बिक्री 35 लाख से अधिक जबकि किताबघर प्रकाशन की 10 लाख से अधिक रही।