आज भी हरियाणा के हर गांव को आपदा से बचाता है 'दादा खेड़ा'
प्रदेश के प्रत्येक गांव में 'दादा खेड़ा' के लिए एक जगह निश्चित छोड़ी होती है। वहां दादा खेड़ा का छोटा मंदिर बनाया होता है।
फरीदाबाद [हरेंद्र नागर]। तकनीक व आधुनिकता में हरियाणा वासी काफी प्रगति कर चुके हैं, मगर सदियों से चली आ रही कुछ ऐसी मान्यताएं हैं जिन्हें आज भी वह दिल से निभाते हैं। जहां मान्यताएं हों वहां तर्क नहीं चलते, श्रद्धा के आगे हर तर्क ढेर हो जाता है। शायद यही कारण है कि सदियों से लेकर आज भी प्रदेश के हर गांव को 'दादा खेड़ा' आपदा से बचाता चला आ रहा है।
प्रदेश सांस्कृतिक धरोहरों व मान्यताओं को संजोने व अलग पहचान देने का काम कुरुक्षेत्र युनिवर्सिटी का सांस्कृतिक विभाग बखूबी कर रहा है। यूनिवर्सिटी की ओर से प्रदेश की खास पहचान और चिन्हों को चुन-चुनकर सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में हरियाणा के अपना घर में रखा गया। यहां रखा गया छोटा सा गुंबदनूमा मंदिर हर किसी के मन में उत्सुक्ता पैदा कर देता है।
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यह 'दादा खेड़ा' यानि ग्राम देवता का प्रतिरूप है, जो हरियाणा के हर गांव में आवश्यक रूप से बना होता है। प्रदेश में कहीं-कहीं इसे खेड़ा देवत भी कहते हैं। प्रदेश के प्रत्येक गांव में 'दादा खेड़ा' के लिए एक जगह निश्चित छोड़ी होती है। वहां दादा खेड़ा का छोटा मंदिर बनाया होता है। गांव के लोग द्वारा कोई भी शुभ कार्य करने से पहले ग्राम देवता की पूजा की जाती है। नियमित तौर पर भी 'दादा खेड़ा' की पूजा होती है।
मान्यता है कि ग्राम देवता पूरे गांव की आपदा, बुरी आत्माओं व जानलेवा बीमारियों से रक्षा करता है। अगर गांव में कभी कोई आपदा या बीमारी फैलती है तो माना जाता है कि ग्राम देवता नाराज हो गए, तब उन्हें मनाने के लिए हवन व पूजन किया जाता है। सदियों पुरानी यह प्रथा आज भी हरियाणा में बेहद शिद्दत के साथ मानी जाती है। उत्सुकतापूर्वक जब पर्यटक 'दादा खेड़ा' के बारे में जानकारी हासिल करते हैं तो वह हरियाणा निवासियों की मान्यता के कायल हुए बिना नहीं रहते।
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