हरियाणा के मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों का सरकार से टकराव, 1000 करोड़ के बकाए को लेकर खोला मोर्चा
हरियाणा के मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों ने शिक्षा विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि सरकार उन्हें प्राइवेट स्कूल कहकर बुला रही है जबकि वे राज्य सरकार के मान्यता प्राप्त स्कूल हैं। साथ ही गरीब बच्चों को पढ़ाने के एवज में उनका करीब एक हजार करोड़ रुपये बकाया है। स्कूल संचालकों का कहना है कि सरकार स्कॉलरशिप के नाम पर भी भेदभाव कर रही है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों ने शिक्षा विभाग के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। इन स्कूलों को प्राइवेट स्कूल कहलाने पर कड़ी आपत्ति है। उनका कहना है कि वे प्राइवेट स्कूल नहीं, बल्कि राज्य सरकार के मान्यता प्राप्त स्कूल हैं।
दूसरा, गरीब बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाने की एवज में बकाया करीब एक हजार करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया जा रहा है। मान्यता प्राप्त स्कूल संचालकों ने कहा है कि सरकार स्कॉलरशिप देने के नाम पर भी स्कूली बच्चों में भेदभाव पैदा कर रही है। स्कूल संचालकों पर अनाप-शनाप खर्चे डाले जा रहे हैं, जिसे किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन हरियाणा से राज्य के करीब 10 हजार मान्यता प्राप्त स्कूल जुड़े हैं। नेशनल इंडीपेंडेंट स्कूल्स एलाइंस से देश भर के करीब एक लाख स्कूल जुड़े हैं। फेडरेशन और एलाइंस के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने रविवार को चंडीगढ़ में कहा कि हरियाणा सरकार पिछले 10 सालों से स्कूलों को मान्यता देने संबंधी नियमों का सरलीकरण करने का भरोसा दिला रही है, लेकिन हर साल इन स्कूलों पर बंद होने की तलवार लटकी रहती है। अभी भी करीब चार से पांच हजार स्कूल ऐसे हैं, जिनके मान्यता के केस सरकार ने लटकाए हुए हैं।
हरियाणा स्कूल शिक्षा नियमों की धारा 134-ए के तहत मान्यता प्राप्त स्कूलों में सरकार ने गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़वाया, लेकिन स्कूलों की बकाया करीब एक हजार करोड़ रुपये की राशि देने को सरकार तैयार नहीं है। सरकार 134-ए को खत्म भी कर चुकी है, लेकिन गरीब बच्चे अभी भी मान्यता प्राप्त इन स्कूलों में मुफ्त पढ़ रहे हैं। सरकार ने स्कूलों से वादा किया था कि सरकारी स्कूलों में एक बच्चे की पढ़ाई पर आने वाला खर्च तथा मान्यता प्राप्त स्कूलों में आने वाले खर्च में जो राशि कम होगी, वह भुगतान की जाएगी। मगर इस भुगतान को लेकर सरकार गंभीर नहीं है।
कुलभूषण शर्मा का कहना है कि सरकार मेधावी बच्चों में जातिवाद को बढ़ावा देने का काम कर रही है। 12वीं क्लास के मेधावी दलित बच्चों को सरकार ने एक लाख 11 हजार रुपये की स्कालरशिप दी, लेकिन सामान्य श्रेणी के मेधावी बच्चों को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया। इसमें भी सरकार ने 10वीं क्लास के दोनों वर्ग के मेधावी बच्चों को छोड़ दिया।
राज्य सरकार मान्यता प्राप्त स्कूलों से स्पोर्ट्स फंड लेती है, लेकिन खेल सुविधाएं नहीं देती। सरकारी स्कूलों के बच्चों को 600 करोड़ रुपये के टैब बांटे, मगर मान्यता प्राप्त स्कूलों के बच्चों को नहीं दिए। 70 प्रतिशत मान्यता प्राप्त स्कूल ऐसे हैं, जिनकी मासिक फीस एक हजार रुपये से कम है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर सरकार हर साल मान्यता प्रदान करने में भी परेशान करती है।
राजस्थान की तरह 20 साल मिले बसों के संचालन की अनुमति
फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन के अनुसार हरियाणा सरकार मान्यता प्राप्त स्कूलों से 20 रुपये प्रति सीट के हिसाब से पैसेंजर टैक्स लेती है, सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए मुफ्त यात्रा करने हेतु हैप्पी कार्ड बनाती है, लेकिन मान्यता प्राप्त स्कूलों को कोई सुविधा नहीं देती। कोविड के समय दो-दो साल तक इन स्कूलों की बसें खड़ी रहीं।
एनसीआर में अब 10 साल और हरियाणा में 15 साल बस संचालन की आयु रह गई है, मगर राजस्थान में 20 साल है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह तीन लाख किलोमीटर अथवा 20 साल तक बसों के संचालन की अनुमित प्रदान करे।
कुलभूषण शर्मा ने बताया कि राज्य की हर विधानसभा में मान्यता प्राप्त स्कूलों की संख्या 200 से 250 है, जिनमें तीन से चार हजार शिक्षक काम करते हैं। यदि प्रदेश सरकार ने इन मान्यता प्राप्त स्कूलों के कल्याण की दिशा में सोचते हुए उनकी बकाया एक हजार करोड़ रुपये की राशि जारी नहीं की तो वह आंदोलन करने के मजबूर होंगे।