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Rejangala Battle Day: रेजांगला में हालात बदले, पर नहीं बदला चीन का हौसला पस्त करने का जज्बा

कारगिल के रेजांगला में आज से 61 साल पहले हुई रेजांगला की जंग में 114 भारतीय सैनिकों ने अपने से 11 गुना अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराकर अपने अद्भुत साहस और पराक्रम की नई इबारत लिखी थी। इस युद्ध में भारतीय सेना के वीरों ने दुश्मन के सात हमले नाकाम कर उसके 1300 सैनिक मार गिराए थे। रेजांगला में हालात बदल चुके हैं।

By Jagran NewsEdited By: Jeet KumarUpdated: Sat, 18 Nov 2023 07:52 AM (IST)
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चीन से मुकाबले के लिए भारतीय सेना 1962 के मुकाबले आज कहीं अधिक सक्षम है

राज्य ब्यूरो, जम्मू। पूर्वी लद्दाख में चीन से मुकाबले के लिए भारतीय सेना 1962 के मुकाबले आज कहीं अधिक सक्षम है और आज ड्रैगन की चाल को नाकाम को नाकाम बनाने में सक्षम हैं। हाल के वर्षों में बेहतर आधारभूत ढांचे के विकास और युद्धक साजोसामान की आपूर्ति के साथ-साथ रेजांगला के वीरों का बलिदान इन विपरीत परिस्थितियों में हमारे जवानों को निरंतर प्रेरित करता है और दुश्मन के हौसले को पस्त कर देता है।

कारगिल के रेजांगला में आज से 61 साल पहले हुई रेजांगला की जंग में 114 भारतीय सैनिकों ने अपने से 11 गुना अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराकर अपने अद्भुत साहस और पराक्रम की नई इबारत लिखी थी। इस युद्ध में भारतीय सेना के वीरों ने दुश्मन के सात हमले नाकाम कर उसके 1300 सैनिक मार गिराए थे।

अंतिम सांस लड़ते हुए लद्दाख को दुश्मन से बचाया

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की कमान में चीनी सैनिकों से लड़ते बलिदान हुए 13 कुमाऊं रेंजीमेंट के 114 वीर देश पर बलिदान हो गए थे। इन बलिदानियों ने शून्य से 24 डिग्री नीचे के तापमान में अंतिम गोली और अंतिम सांस लड़ते हुए लद्दाख को दुश्मन से बचाया था। रेजांगला बैटल डे पर शनिवार को 18 नवंबर, 1962 को चीन से हुए युद्ध में बलिदान हुए भारतीय सैनिकों के शौर्य को फिर से नमन किया जाएगा।

गलवन के बाद क्षेत्र में बुनियादी ढांचा कई गुना मजबूत हो चुका है

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार तब से लेकर आज तक हालात काफी बदल चुके हैं चीन के सामने भारतीय सेना और वायुसेना हर लिहाज से मजबूत हैं। आज चुशुल में भारतीय वायुसेना अपने एडवांस लैंडिंग ग्राउंड से सैनिक व गोला बारूद को जल्द वास्तविक नियंत्रण रेखा तक पहुंचाने में सक्षम है। गलवन के बाद क्षेत्र में बुनियादी ढांचा कई गुना मजबूत हो चुका है। अब भारतीय सैनिक आधुनिक हथियारों व बेहतर उपकरणों से दुश्मन का सामना करने में लैस है।

उन्होंने जोड़ा कि आज भी देश पर सर्वस्व न्योछावर करने का भारतीय सैनिकों का जज्बा ही नहीं बदला है। लद्दाख में भारतीय सेना और वायुसेना आज चीन के मुकाबले में हर लिहाज से मजबूत हैं। आज गोला-बारूद की कोई कमी नहीं है और सैनिकों का जज्बा हिमालय से भी ऊंचा हो गया है। सेना की राइजिंग स्टार कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रशिम बाली समुद्र तल से 15 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रेजांगला युद्ध स्मारक पर जाकर बलिदानियों को सलामी देंगे।

रेजांगला के युद्ध का यह है इतिहास

चुशुल पर चीनी सैनिकों ने 18 नवंबर, 1962 को तड़के सुबह साढ़े तीन बजे हमला बोला था। 13 कुमायूं रेजीमेंट की प्लाटून नंबर 8 ने दुश्मन को लाइट मशीन गन की फायरिंग कर रोका। एलएमजी पर मोर्चा वीर चक्र विजेता हुकुमचंद संभाले थे। 10 मिनट के बाद प्लाटून नंबर 7 ने रेडियो पर सूचना दी कि 14 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर 400 दुश्मन पहाड़ी चढ़ रहे हैं। रेजीमेंट की 9 प्लाटून में से दो प्लाटून पर सुबह साढ़े सात बजे तक हमला हो चुका था। मेजर शैतान सिंह ने अपनी प्लाटून नंबर 9 के साथ चीनी सैनिकों को रोका। इस दौरान उन्हें पेट में गोली लगी। इसके बावजूद वह मोर्चे से नहीं हटे। सुबह सवा आठ बजे वह वीरगति को प्राप्त हो गए तो साथी जवानों ने उनका पार्थिव शरीर दुश्मन से बचाने के लिए बर्फ में छिपा दिया था। उनकी कमान में 120 जवान चीन के करीब छह हजार सैनिकों पर भारी पड़े।

बलिदानियों में 30 सैनिक हरियाणा के रेवाड़ी जिले के थे

रेजांगला के युद्ध में बलिदान हुए सैनिकों के पार्थिव शरीर तीन माह बाद बर्फ में दबे मिले थे। हर बलिदानी गोलियों से छलनी था। मेजर शैतान सिंह को 20 गोलियां लगी थीं। सैनिकों ने वीरता का नया अध्याय लिखा था। यह युद्ध विश्व की 10 सबसे ऊंची चोटी पर हुए युद्ध में एक है। मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र मिला तो आठ जवानों को वीर चक्र व चार को सेना मेडल मिला। रेजांगला से सिर्फ मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शरीर को ही लाना संभव हुआ था। उनका अंतिम संस्कार राजस्थान में हुआ था। अन्य बलिदानियों का अंतिम संस्कार रेजांगला में ही किया गया। बलिदानियों में 30 सैनिक हरियाणा के रेवाड़ी जिले के थे।