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Unique Story: प्रकृति में बांस की कैसे हुई उत्पत्ति, पढ़िए आदिवासी समुदाय में प्रचलित लोककथा

Bamboo Origin Story लोक जीवन का अहम हिस्सा है बांस। जीवन-मरण के समय बांस की अहम भूमिका होती है। बांस को लेकर समाज में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। इसे वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसे काटना अशुभ होता है। सरकार भी इसे ग्रीन गोल्ड कहती है।

By M. EkhlaqueEdited By: M EkhlaqueUpdated: Mon, 17 Oct 2022 05:28 PM (IST)
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Bamboo Originated In Nature: आदिवासी समुदाय की बंसा देवी, जिन्हें बांस की उत्पत्ति का कारक माना जाता है।

रांची, (एम अखलाक)। Bamboo Origin Unique Story प्रकृति में बांस की उत्पत्ति कैसे हुई? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसे लेकर तरह-तरह की लोक मान्यताएं व लोक कथाएं हमारे समाज में प्रचलित हैं। विज्ञान का भी इस बारे में अपना मत है। लेकिन झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में रहने वाले आदिवासी समुदाय के बीच बांस की उत्पत्ति को लेकर एक रोचक कथा प्रचलित है। यह कथा बेहद दिलचस्प है। दरअसल, बांस हमारे समाज में बेहद अहम स्थान रखता है। इसका कई तरह से इस्तेमाल होता है। जीवन के हर क्षण में बांस की उपयोगिता महसूस की जाती है। बांस से बने उत्पाद तो मानव जीवन के अहम हिस्सा रहे हैं। ऐसे में यह जानना और भी दिलचस्प हो जाता है कि बांस की उत्पत्ति कैसे हुई। इसके बारे में हमारे समाज में किस तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं।

खाना पकाते समय टपक गया खून का एक बूंद

आदिवासी लोक कथा के अनुसार, आदिकाल में एक परिवार था। इस परिवार में एक बहन और उसके चार भाई थे। भाई गांव-घर में खेती-मजदूरी करते थे। बहन घर में खाना पकाती थी। उनका परिवार खुशहाल था। एक दिन की बात है कि बहन चूल्हे पर खाना पका रही थी। इसी बीच उसका हाथ थोड़ा कट गया। खाना पकाते समय उसके खून का एक बूंद खाने में टपक गया। जब भाई घर लौटे तो बहन ने उनके सामने खाना परोसा। खाना खाने के बाद भाइयों ने बहन से कहा- आज खाना इतना टेस्टी क्यों लग रहा है? बहन ने उत्तर दिया- खाना पकाते समय खून का एक बूंद खाने में टपक गया था।

बहन के मांस को भाइयों ने मिट्टी में गाड़ दिया

चारों भाई आपस में बातें करने लगे। एक भाई ने दूसरे भाइयों से कहा- जब बहन का खून इतना स्वादिष्ट है तो उसका मांस कितना स्वादिष्ट होगा? अन्य भाइयों ने कहा- बिल्कुल, बहन का मांस तो और ज्यादा स्वादिष्ट होगा। इसके बाद भाइयों ने साजिश के तहत बहन की हत्या कर दी। इसके बाद उसके मांस को चार हिस्सों में बांट दिया। तीन भाइयों ने अपना अपना हिस्सा खा लिया। लेकिन एक भाई इस बीच कहीं चला गया। उसका हिस्सा भाइयों ने सहेज कर रख दिया। जब चौथा भाई समय पर नहीं लौटा तो अन्य भाइयों ने उसके हिस्से के मांस को मिट्टी में गाड़ दिया।

आदिवासी समाज में होती है बंसा देवी की पूजा

लोककथा के अनुसार, जिस जगह भाइयों ने बहन के मांस को गाड़ दिया था, वहां कुछ दिनों बाद बांस का पेड़ उग आया। कहा जाता है कि तभी से बांस की उत्पत्ति हुई। आगे चलकर आदिवासी समुदाय के बीच बंसा देवी की पूजा होने लगी। इस तरह इस समुदाय के बीच बंसा देवी प्रचलित हो गईं। मध्यप्रदेश के भाेपाल स्थित जनजातीय संग्राहलय में इस कहानी को आधार बनाते हुए बंसा देवी की कहानी को दर्शाया गया है। 2013 में बने इस संग्रहालय में आज भी आप इस लोक कथा को देख सकते हैं, सुन सकते हैं। बेहद सलीके से बांस के घने जंगल के बीच बंसा देवी को चित्रित किया गया है।

भारत सरकार ने ग्रीन गोल्ड का दे रखा है दर्जा

बहरहाल, बांस की उत्पत्ति की यह कहानी सच के कितना करीब है, इस पर कुछ भी कहना मुश्किल है, लेकिन यह लोक मान्यता अब भी आदिवासी समुदाय में प्रचलित है। इन सबके बीच बांस की उपयोगिता हमारे जीवन में किसी से छिपी नहीं है। एक समय ऐसा था जब बांस से बनी चीजें हमारे घरों में अनिवार्य रूप से देखने को मिल जाती थीं। अब इसकी मांग कुछ कम हुई है, लेकिन खत्म नहीं हुई है। शादी के मंडप में बांस उतना ही अहम होता है, जितना मरने के बाद। बांस के पौधे को काटने को लेकर भी हमारे समाज में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। बांस को वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। आलम यह है कि भारत सरकार ने इसे ग्रीन गोल्ड का भी दर्जा दे रखा है। बांस के पौधे लगाने के लिए सरकार लोगों को प्रेरित कर रही है। घरों और दफ्तरों में बांस के पौधे रखने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसी मान्यता है कि बांस के पौधे रखने से सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।