Jharia City: यहां जमीन के भीतर धधक रही आग देखने आते हैं विदेशी... झारखंड के झरिया की कहानी
Unique Story Of Jharia झारखंड के झरिया में जमीन के भीतर वर्षों से आग धधक रही है। आग के ऊपर यहां दर्जनों बस्तियां आबाद हैं। लोग जान हथेली पर लेकर यहां रहते हैं। इनकी जिंदगी देखने-समझने के लिए यहां हर साल विदेशी मेहमान आते हैं।
झरिया {गोविन्द नाथ शर्मा}। लगभग तीन सौ वर्ष पुराने काले हीरे की नगरी व आग के ऊपर बसे झारखंड के झरिया शहर को देखने के लिए हर वर्ष दर्जनों विदेशी यहां आते हैं। ये विदेशी यहां लगी भीषण जमीनी आग, हमेशा निकलती जहरीली गैस व भू धसान स्थल को देखकर दंग रह जाते हैं। विदेशियों के लिए यहां की आग आज भी रिसर्च व कौतहुल का विषय बना हुआ है। झरिया की तरह विश्व में बहुत कम जगह ऐसे हैं जहां एक सौ वर्षों से भी अधिक समय से जमीनी आग लगी है। विदेशियों का झरिया आने का मुख्य उद्धेश्य यहां की धरती में लगी आग को देखने, आग के ऊपर यहां रहनेवाले लोगों की जीवन शैली को समझने व यहां फैल रहे प्रदूषण को देखना ही होता है। पिछले 10 वर्षों में झरिया आनेवाले विदेशियों की संख्या बढ़ी हैं। यहां कई दिनों तक रहकर विदेशी झरिया हेटलीबांध के सामाजिक कार्यकर्ता व गाइड पिनाकी राय के माध्यम से ऐतिहासिक शहर झरिया के बारे में जानते हैं।
तीन प्रकार के विदेशी मेहमान आते हैं झरिया
झरिया में तीन तरह के विदेशी मेहमानों की टीम मुख्य रुप से आती है। इनमे पहला विदेशी न्यूज-टीवी चैनल। दूसरा रिसर्च करने वाले व तीसरा सोशल वर्कर होते हैं। झरिया आने के बाद विदेशी यहां के लाज में तीन से पांच दिनों तक जरुर रुकते हैं। इन दिनों में विदेशी टीम झरिया के अग्नि, भू धंसान क्षेत्र के अलावा कोलियरी को भी देखते हैं। इस दौरान यहां की जमीनी आग लगे क्षेत्र व इसके आसपास रहनेवाले लोगों को देखकर आश्चर्यचकित होकर दंग रह जाते हैं।
लोगों की जीवनशैली को पास से देखते हैं विदेशी
झरिया में कई दिनों तक रुकने के बाद विदेशी मेहमान इंदिरा चौक, बोका पहाड़ी, राजापुर, भगतडीह, घनुडीह, लोदना, बागडिगी, जयरामपुर, जीनागोरा, नार्थ तिसरा, साउथ तिसरा, लालटेनगंज, बंगाली कोठी, पांडेयबेरा, लिलोरीपथरा, मोहरीबांध के अलावा विश्वकर्मा परियोजना, काली बस्ती, गंशाडीह आदि क्षेत्रों में लगी जमीनी आग को देखते हैं। आग के पास रहनेवाले लोगों की जीवनशैली को नजदीक से देखते हैं।
375 श्रमिकों की समाधि पर जरूर जाते हैं विदेशी
झरिया शहर कोयले के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यह धनबाद जिले का हिस्सा है। यहां भूमिगत आग बुझाने के लिए कई वर्षों से सरकारी कवायद जारी है, लेकिन अबतक किसी भी सरकार को इसमें सफलता नहीं मिली है। यहां कई बार भीषण हादसे हो चुके हैं। भू धसान के कारण कई परिवार जमींदोज हो गए हैं। यहां चासनाला डीप माइंस के पास एक स्मारक स्थल भी है। यहां 375 श्रमिकों की समाधि है। विदेशी मेहमान इस स्मारक को देखना नहीं भूलते हैं। यहां आते हैं और शहीद कोल श्रमिकों को श्रद्धांजलि देते हैं।
पिनाकी राय विदेशी मेहमानों का करते हैं सहयोग
सामाजिक कार्यकर्ता शांति निकेतन बोलपुर के पूर्व छात्र व गाइड पिनाकी राय विदेशी मेहमानों के झरिया आने पर उनका सहयोग करते हैं। पिनाकी के माध्यम से ही विदेशी टीम यहां के अग्नि व भू धंसान प्रभावित क्षेत्र को देखकर यहां की जीवनशैली से अवगत होते हैं। बकौल पिनाकी अब तक मेरे पास दो दर्जन से अधिक विभिन्न देशों के विदेशी झरिया आकर यहां की आग व जीवनशैली से अवगत कराने का आग्रह कर चुके हैं। मैंने इनका सहयोग किया। कहा कि पूर्व में हेटलीबांध के समाजसेवी अशोक अग्रवाल विदेशियों को सहयोग करते थे।
इस वर्ष ये विदेशी आ चुके हैं भूमिगत आग देखने
पिनाकी राय ने बताया कि हाल के वर्षों में स्टुटगर्ट जर्मन के सोशल वर्कर डॉ एच सुलमेयर व उनकी पत्नी जोहाना सुलमेयर, यूएसए के रिसर्च स्कालर मैथ्यू वेब, जापान के पत्रकार-फोटोग्राफर यमादा मोकोतो, मिस्न की महिला पत्रकार वल्ला वाल्सर, इटली की पत्रकार एरिक मीसूरी, फ्रांस के फोटोग्राफर रॉबिन टुटाेज, फ्रांस के टेली फिल्म मेकर यान व सेबिस्टाइन, फ्रांस की प्रसिद्ध पत्रिका लाफिगारो की पत्रकार सेलिया व सिबरेटे आदि विदेशी मेहमान शामिल हैं।