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Hul Diwas: दमनकारी दारोगा व नौ सिपाहियों की हत्‍या से शुरू हुआ था संथाल विद्रोह, जानें

Santhal Vidroh Kab Hua Jharkhand Hindi News Hul Diwas 30 जून 1855 को भोगनाडीह में 10000 लोगों की सभा में सिद्धू को राजा घोषित किया गया। कान्हू को मंत्री चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति बनाया गया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Updated: Wed, 30 Jun 2021 01:13 PM (IST)
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Jharkhand News, Hul Diwas सिद्धू को 30 जून 1855 को सभा में सिद्धू को राजा घोषित किया गया।

रांची। 1857 के गदर से दो वर्ष पूर्व दामिन-ई-कोह में विद्रोह का बिगुल बज उठा। इस व्यापक विद्रोह के नायक सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव थे। उस समय अंग्रेजी सरकार, जमींदार, महाजन, बनिया तथा साहूकार की शोषण नीति के खिलाफ लोग गोलबंद हुए। मालगुजारी न देने पर भूमि नीलाम कर दी जाती थी, कर्ज अदा नहीं करने पर पूरे परिवार को बंधुआ मजदूर बना लेते। अंग्रेजों को रेलवे लाइन बिछाने के लिए जमीन और मजदूर की आवश्यकता थी।

संथाल विद्रोह के बारे में बंगाल के उपराज्यपाल की मीटिंग का विवरण दिनांक 12 सितंबर 1855 में लिखा गया था। उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं, “... मुझे राजमहल लाइन के ठेकेदारों, मेसर्स नेल्सन एंड कंपनी की ओर से प्रतिनिधित्व करने के लिए एक प्रतिनियुक्ति प्राप्त हुई है। विद्रोह के दौरान बाधित रेल कार्यों को फिर से शुरू करना होगा। संथालों को निशस्त्र करने की आवश्यकता पर बहुत जोर दिया गया है। संथालों की युद्ध-कुल्हाड़ी, तलवारें और धनुष और स्टील की नोक वाले तीरों को उनसे लिया जाना चाहिए.....”।

सिद्धू को 30 जून 1855 को भोगनाडीह में 10000 लोगों की सभा में राजा घोषित किया गया। कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति बनाया गया। अंग्रेजी राज गया और अपना राज कायम हुआ की घोषणा की गई। संथालों का नारा था, “हमने खेत बनाए हैं, इसलिए हमारा है ....”। अंग्रेजी सरकार को मालगुजारी देना बंद हो गया। 7 जुलाई 1855 संथाली वीरों ने दमनकारी दारोगा और 9 सिपाहियों को मार डाला। यहीं से हूल की शुरुआत हुई।

संथाली सैनिकों की संख्या बढ़कर 30,000 हो गई। इसमें समाज के सभी तबके के लोग शामिल थे। जमींदार, महाजन बड़ी संख्या मारे गए। भागलपुर का मजिस्ट्रेट उनके डर से राजमहल भाग गया। पाकुड़ के राजमहल में सिद्धू-कान्हू-चाँद-भैरव की सेना ने प्रवेश किया और मुर्शिदाबाद की ओर बढ़े। 15 जुलाई 1855 को अंग्रेजी सेना के साथ लड़ाई में 200 संथाल सैनिक शहीद हुए। सिद्धू, कान्हू, भैरव घायल हुए। व्यापक क्षेत्र में फैले संथाल आंदोलन रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

छापामारी युद्ध पद्धति के कारण तंग आकर 10 नवंबर 1856 को अंग्रेजों ने पूरे इलाके को सेना के सुपर्द कर दिया। संथालों के गाँव जलाए जाने लगे। सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव शहीद हुए। यह भी कहा जाता है कि इनकी दो बहनों फूलों और झानू भी क्रांति में शामिल थी। इस तरह इनकी महान क्रांति का अंत हो गया, जिसमें हजारों संथालों ने अपनी शहादत दी। हजारों संथाल हजारीबाग जेल में बंदी बनाए गए। संथाल विद्रोह का परिणाम यह हुआ कि संथाल क्षेत्र को एक ‘नन रेगुलेशन’ जिला बनाया गया। यहां के लिए काश्तकारी अधिनियम लागू हुआ।

-डॉ. मोहम्मद जाकिर (लेखक रांची यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और कई पुस्‍तकों के लेखक हैं)।