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झारखंड में अब पंचायत सचिव और महिला पर्यवेक्षिका भी लगा सकेंगे बाल विवाह पर रोक, पहले सिर्फ BDO को था यह अधिकार

पहले बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए प्रत्येक प्रखंड में प्रखंड विकास पदाधिकारियों को बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त किया गया था। अब इसकी जिम्मेदारी जहां राज्य स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव को दी गई है।

By Neeraj AmbasthaEdited By: Prateek JainUpdated: Fri, 17 Mar 2023 11:14 PM (IST)
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झारखंड में अब पंचायत सचिव और महिला पर्यवेक्षिका भी लगा सकेंगे बाल विवाह पर रोक।

रांची, नीरज अम्बष्ठ: पहले बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए प्रत्येक प्रखंड में प्रखंड विकास पदाधिकारियों को बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त किया गया था।

अब इसकी जिम्मेदारी जहां राज्य स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव को दी गई है, वहीं अपने-अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत इसकी जिम्मेदारी पंचायत सचिवों व महिला पर्यवेक्षिकाओं को भी देते हुए उन्हें बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त किया गया है।

महिला एवं बाल विकास विभाग ने जारी की अधि‍सूचना

राज्य सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 को सख्ती से लागू करने तथा बाल विवाह रोकने में इस कानून को प्रभावी बनाने को लेकर यह निर्णय लिया है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की है।

अब बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए अपने-अपने क्षेत्राधिकार में बाल निषेध पदाधिकारी की जिम्मेदारी विभिन्न पदाधिकारियों को दी गई है।

जैसे महिला एवं बाल विकास विभाग पूरे राज्य के लिए बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं। आयुक्त संबंधित प्रमंडल तथा उपायुक्त संबंधित जिला के लिए बाल निषेध पदाधिकारी होंगे।

इसी तरह जिला कल्याण पदाधिकारी को संबंधित जिला, अनुमंडल पदाधिकारी को संबंधित अनमुंडल, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी को संबंधित प्रखंड, अंचलाधिकारी को संबंधित अंचल, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी को संबंधित परियोजना, महिला पर्यवेक्षिका को अपने क्षेत्राधिकार तथा पंचायत सचिव को संबंधित पंचायत के लिए यह जिम्मेदारी देते हुए उन्हें बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त किया गया है।

राज्य सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के प्रविधानों का उपयोग करते हुए अलग-अलग क्षेत्र के लिए बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त किया है।

बाल विवाह निषेध पदाधिकारी के निर्धारित हैं दायित्व

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 16 में प्रविधान है कि राज्य सरकार संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारी के नियुक्ति करेगी, जिसका क्षेत्राधिकार उक्त अधिसूचना में निर्धारित क्षेत्रों पर होगा।

बाल विवाह निषेध अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह बाल विवाह रोकने को लेकर ऐसी कार्रवाई करे, जो वह उचित समझे। वह इस अधिनियम के उपबंधों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के प्रभावी अभियोजन के लिए साक्ष्य संग्रह करेगा।

बाल विवाह को बढ़ावा देने व इसमें सहायता देनेवालों के विरुद्ध भी यह कार्रवाई करेगा तथा उसे इसपर रोक लगाने के लिए आवश्यक सुझाव देगा।

उसका दायित्व बाल विवाह के परिणामस्वरूप होनेवाले नुकसान को लेकर भी जन-जागरुकता लाने का काम करेगा। वह राज्य सरकार के निर्देश पर आंकड़े संग्रहित करेगा तथा अन्य कार्य करेगा।

झारखंड में सबसे अधिक बालिकाओं की शादी होती कम उम्र में

रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा अक्टूबर 2022 में जारी डेमोग्राफिक सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में सबसे अधिक बालिकाओं की शादी कम उम्र में होती है।

यहां अभी भी 5.8 प्रतिशत बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम आयु में हो जाती है। पूरे देश में ऐसी बालिकाओं का प्रतिशत 1.9 है, जिनकी शादी वयस्क होने से पूर्व हो जाती है।

वर्ष 2020 में हुए सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में 7.3 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में तीन प्रतिशत बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है।

बता दें कि बाल विवाह का खराब असर न केवल बालिकाओं के शैक्षणिक, सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं पर पड़ता है, बल्कि उसके स्वास्थ्य पर सबसे अधिक पड़ता है।