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संयोग से एक्टिंग में आ गई- सारिका ढ़िल्लो

‘‘सामने अन्याय हो रहा हो तो उसे अनदेखा करना बुजदिली है। गलत बातों के खिलाफ आवाज उठाने से मैं गुरेज नहींकरती’’ कहती हैं इन दिनों धारावाहिक ‘गुलाम’ में नजर आ रहीं सारिका ढिल्लो

By Srishti VermaEdited By: Updated: Thu, 16 Feb 2017 05:14 PM (IST)
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संयोग से एक्टिंग में आ गई- सारिका ढ़िल्लो

लाइफ ओके का धारावाहिक ‘गुलाम’ एक ऐसे शख्स की कहानी है जो अपने मालिक का गुलाम है। उसकी इच्छापूर्ति के लिए वह अपनी जान भी दे सकता है। ‘गुलाम’ बेरहमपुर का ऐसा स्याह चेहरा दिखाता है जहां क्रूरता ही इंसाफ है। इसका लेखन ‘दो दूनी चार’ और ‘इक्कीस तोपों की सलामी’ जैसी फिल्में लिखने वाले राहिल काजी कर रहे हैं। उसमें रश्मि का केंद्रीय किरदार निभा रही हैं सारिका ढिल्लो।

शब्दों को भावों में पिरोया
शो से जुड़ने के संदर्भ में सारिका कहती हैं, ‘मैं ‘ये हैं मोहब्बतें’ और ‘भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप’ कर रही थी। ‘ये हैं मोहब्बतें’ में लीप हुआ था। उसी दौरान ‘महाराणा प्रताप’ समाप्त हुआ था। तभी मुझे यह शो ऑफर हुआ। शो में मेरा किरदार बहुत चुनौतीपूर्ण है। दूसरा, रश्मि के किरदार से मैं बहुत रिलेट करती हूं। वह बहुत स्ट्रांग है। अपने फैसले खुद लेती है। अन्याय बर्दाश्त नहीं करती। पहले एपिसोड में दिखाया गया कि किस प्रकार से उसे लोग बेरहमपुर लेकर आते हैं। फिर उसके साथ अमानवीय व्यवहार होता है। उसके चलते उसकी बोलने की शक्ति चली जाती हैं। उसे अपनी भावनाओं को भाव-भंगिमाओं से ही बताना है। बिना बोले भावनाओं को व्यक्त करना बेहद कठिन होता है।’

अन्याय से लड़ने की सीख
महिलाएं अंतरिक्ष में जा रही हैं। वे फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं। वहीं ‘गुलाम’ में महिलाओं साथ क्रूरता और अत्याचार दिखाया जा रहा है। यह सोच क्या महिलाओं को पीछे नहीं धकेल रही है? यह पूछने पर सारिका कहती हैं, ‘इसमें दो राय नहीं कि महिलाएं तरक्की कर रही हैं। मगर अभी भी महिलाओं पर अत्याचार देश-दुनिया के कई कोनों में कायम है। शो में महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय को देखकर आक्रोश भी पैदा होता है। हम वास्तविकता के चित्रण के माध्यम से लोगों में अन्याय से लड़ने का जज्बा पैदा करना चाहते हैं।’

माता-पिता की श्रवण कुमार
सारिका पंजाब से ताल्लुक रखती हूं। उनके पिता पुलिस अधिकारी हैं। सारिका कहती हैं, ‘मैंने बचपन से ही यह सीखा है कि गलत बातें बर्दाश्त नहींकरनी चाहिए। मैं बहुत इमोशनल हूं। परिवार के लिए जान भी दे सकती हूं। मैं आठवीं क्लास में थी। उसी दौरान मेरी मां को पैरालिसिस हुआ था। उस छोटी सी उम्र में मैंने उनकी बहुत सेवा की थी। तब पिता ने मुझे अपना श्रवण कुमार कहा था। एक और वाकया बताती हूं। मैंने दिल्ली से ग्रैजुएशन किया था। मैं वहां बस से सफर कर रही थी। मैंने देखा में एक लड़का किसी लड़की के साथ बदतमीजी कर रहा है। लड़की थोड़ा डरी हुई थी। मुझसे वह बर्दाश्त नहीं हुआ। मैंने उस लड़के की खूब धुनाई की थी।’

संयोग से बनी एक्ट्रेस
सारिका ने अपने कॅरियर का’ आगाज ‘धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान’ से किया था। सारिका कहती हैं, ‘मुझे माइथोलॉजिकल से ज्यादा ऐतिहासिक शो पसंद हैं। यह झुकाव तब से है, जब मैंने अभिनय में कदम भी नहीं रखा था। पृथ्वीराज चौहान पर बेस्ड शो टीवी पर आने वाला था। मेरे मन में ख्याल आया कि अगर मैं उसमें होती तो कैसी लगती। उस समय मैं पढ़ाई कर रही था। मेरे परिवार का भी टीवी की दुनिया से कोई नाता नहीं है। संयोग ऐसा बना कि मैंने अपना पहला ऑडिशन उसी शो के दिया। वहां तक मैं कैसे पहुंची मुझे खुद नहीं पता। बस राहें बनती गईं। उस शो में मैंने राजकुमारी प्रथा की भूमिका निभाई थी। अब एक्टिंग मेरा प्रोफेशन और चाहत दोनों है।