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भारत की पांच जनजातियां और उनके अजब-गजब रिवाज

भारत में आज भी कई लोग ऐसे हैं जो शहर से दूर जंगलों में रहते हैं। इनकी आदतें और रहन-सहन सबकुछ अलग है।

By abhishek.tiwariEdited By: Updated: Tue, 01 Aug 2017 01:40 PM (IST)
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भारत की पांच जनजातियां और उनके अजब-गजब रिवाज

जारवा जनजाति

जारवा, भारत के अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह की एक प्रमुख जनजाति है। वर्तमान समय में इनकी संख्या 250 से लेकर 400 तक अनुमानित है जो कि अत्यन्त कम है। जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और कद छोटा होता है। करीब 1990 तक जारवा जनजाति किसी की नज़रों में नहीं आई थी और एक अलग तरह का जीवन जी रही थी। अगर कोई बाहरी आदमी इनके दायरे में प्रवेश करता था, तो ये लोग उसे देखते ही मार देते थे, हालाँकि 1998 के बाद इनकी इस आदत में बहुत बदलाव आ चुका है। जारवा जनजाति 5 हजार साल से यहाँ रहती है, लेकिन 1990 तक बाहरी दुनिया के लोगों से इनका कोई संपर्क नहीं था। जनजाति अब भी तीर-धनुष से अपने लिए शिकार करती है। इस समुदाय में एक अजीब परंपरा है। यदि बच्चे की माँ विधवा हो जाए या उसका पिता किसी दूसरे समुदाय का हो तो बच्चे को मार दिया जाता है। बच्चे का रंग थोड़ा भी गोरा हो तो कोई भी उसके पिता को दूसरे समुदाय का मानकर उसकी हत्या कर देता है और समुदाय में इसके लिये कोई दंड नहीं है।

चेंचू जनजाति

यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी और बढ़ती हुई जनजाति है। आंध्रप्रदेश में पाई जाने वाली इस जनजाति में अपनी मर्ज़ी से वरवधु का चुनाव करने की आज़ादी है। सबसे अहम बात यह है की तलाक की स्थति में आपसी सहमति को ज़्यादा महत्व दिया जाता है जो की आम समाज में अभी भी कम देखने को मिलता है। एक और ध्यान देने योग्य बात यह है की इस जनजाति में विधवा-विवाह को बुरा नहीं माना जाता है।

भील जनजाति

भील मध्य भारत की एक जनजाति है। भील जनजाति के लोग भील भाषा बोलते है। भील, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है, अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भी भील पूर्वजों के वंशज हैं। भील त्रिपुरा और पाकिस्तान के सिन्ध के थारपरकअर जिले मे भी बसे हुये हैं। इनके रिति रिवाज राजपूतों की तरह ही है। इनमें वधूमूल्य नहीं पाया जाता और ना ही ये भीली भाषा बोलते है। इनके चेहरे और शरीर की बनाबट, कद काठी प्राचीन राजपूतों से मिलती है।

संथाल जनजाति

संथाल जनजाति झारखंड के ज्यादातर हिस्सों तथा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम के कुछ जिलों में रहने वाली भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। ये भारत के प्रमुख आदिवासी समूह है। इनका निवास स्थान मुख्यतः झारखंड प्रदेश है। झारखंड से बाहर ये बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, असम, मे रहते है। संथाल समुदाय का धार्मिक विश्वासों और अभ्यास किसी भी अन्य समुदाय या धर्म से मेल नहीं खाता है। विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं। लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं। संथाल मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है।

मुंडा जनजाति

मुंडा एक भारतीय आदिवासी समुदाय है, जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करता है। मुण्डा संस्कृति की सामाजिक व्यवस्था बहुत ही बुनियादी और सरल है। मुण्डाओं के लिए भारतीय जाति व्यवस्था विदेशी है। उनके दफनाए गए पूर्वज परिवार के अभिभावक के रूप मे याद किए जाते हैं। दफन पत्थर उनका वंशावली का प्रतीक है। यह पत्थर सुलाकर धरती पर रखी जाती है पर कब्र के रूप में चिन्हित नहीं होता। बल्कि, मृतकों के हड्डियों को इस पत्थर के तहत रखते हैं, जहाँ पिछले पूर्वजों की हड्डियाँ भी मौजूद हैं। जब तक कब्रिस्तान समारोह नहीं होता तब तक मृतकों के हड्डियों को मिट्टी के बर्त्तन में रखा जाता है। हर वर्ष में एक बार, परिवार के सभी सदस्य अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए दफन पत्थरों पर जाते हैं और यह आवश्यक माना है। पूर्वजों को याद करने के लिए अन्य पत्थर भी हैं जिन्हें मेमोरियल पत्थर (भो:दीरी) कहा जाता है।