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Maharashtra: 'जाति जांच समिति के पास अपने निर्णयों की समीक्षा की शक्ति नही', हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

Maharashtra बांबे हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य जाति जांच समिति के पास पिछले रिकार्डों को स्वत सत्यापित करने पिछले निर्णयों की समीक्षा करने और पहले से दिए गए जाति वैधता प्रमाणपत्रों को अमान्य करने की कोई शक्ति नहीं है।जस्टिस जीएस कुलकर्णी एवं जस्टिस जीतेंद्र जैन की खंडपीठ ने एक नवंबर को पारित और शुक्रवार को उपलब्ध कराए गए।

By Jagran NewsEdited By: Paras PandeyUpdated: Sat, 25 Nov 2023 03:00 AM (IST)
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जाति प्रमाणपत्रों को अमान्य करने के समिति के आदेशों को किया रद

राज्य ब्यूरो, मुंबई। बांबे हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य जाति जांच समिति के पास पिछले रिकार्डों को स्वत: सत्यापित करने, पिछले निर्णयों की समीक्षा करने और पहले से दिए गए जाति वैधता प्रमाणपत्रों को अमान्य करने की कोई शक्ति नहीं है।

जस्टिस जीएस कुलकर्णी एवं जस्टिस जीतेंद्र जैन की खंडपीठ ने एक नवंबर को पारित और शुक्रवार को उपलब्ध कराए गए आदेश में कहा है कि जाति जांच समति को अपने निर्णयों की समीक्षा करने के लिए कानून के तहत कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इस तरह की अंतर्निहित शक्ति समिति के कामकाज में भारी अनिश्चितता पैदा करेगी। सरकारी कर्मचारियों ने 1992 से 2005 की अवधि के बीच उन्हें जारी किए गए 

जाति प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित करने के संबंध में समिति द्वारा पिछले साल स्वत:

संज्ञान लेकर पारित आदेशों को चुनौती देने वाली 10 याचिकाएं दायर की हैं। इन याचिकाओं को अदालत ने स्वीकार कर लिया। याचिकाकर्ता अनुसूचित जनजाति कोली महादेव, ठाकुर एवं ठाकर समूहों से संबंधित हैं। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि किसी को दिए गए जाति प्रमाण पत्र पर केवल तभी सवाल उठाया जा सकता है, यदि हाई कोर्ट इसे लेकर प्रथम ²ष्ट्या संतुष्ट हो। 

जाति जांच समिति को अपने पहले के आदेशों द्वारा दी गई वैधता के बंद हो चुके मामलों को फिर से खोलने या किसी शिकायत पर फिर से जांच करने, या अपने आदेशों की समीक्षा करने की खुली छूट का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता। यदि समिति के पास अपने आदेशों की समीक्षा करने की अंतर्निहित शक्तियां होंगी, तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। पीठ ने 10 याचिकाकर्ताओं को दिए गए जाति प्रमाणपत्रों को अमान्य करने के पिछले साल समिति द्वारा पारित आदेशों को रद कर दिया है।