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Agnipath Scheme: 'बलिदान देने वाले अग्निवीरों को शहीद का दर्जा देना जरूरी', पूर्व सैन्य अधिकारियों ने मोदी सरकार से की मांग

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने अपने एक विचारोतेजक आलेख में कहा है कि वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद पेंशन का बोझ घटाने और सेना की वर्तमान औसत आयु 32 साल से घटाकर 26 साल करने के लिए लाई गई अग्निवीर स्कीम में बदलवा की जरूरत है। सरकार के पास इसको लेकर तीन विकल्प हैं जिसमें पहला भर्ती की पुरानी प्रक्रिया बहाल करना।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Fri, 14 Jun 2024 07:34 PM (IST)
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पूर्व सैन्य अधिकारी इस बात को लेकर एकमत हैं कि अग्निवीरों की सेवा अवधि बढ़ाई जानी चाहिए।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अग्निवीर भर्ती योजना में बदलाव की उठ रही आवाजों के बीच कई वरिष्ठ सामरिक विशेषज्ञ पूर्व सैन्य अधिकारियों का मानना है कि सेना की दीर्घकालिक ऑपरेशनल क्षमताओं के साथ अग्निवीरों के हित के मद्देनजर इसकी समीक्षा की जानी चाहिए। अग्निवीर योजना को समाप्त करने और स्थाई सैनिकों की भर्ती की पुरानी व्यवस्था को बहाल करने पर भले ही अलग-अलग तरह की राय है, मगर वरिष्ठ पूर्व सैन्य अधिकारी इस बात को लेकर एकमत हैं कि अग्निवीरों की सेवा अवधि बढ़ाई जानी चाहिए।

इसके अलावा, सैन्य ऑपरेशन के मोर्चे पर तैनाती के दौरान बलिदान देने वाले अग्निवीरों को स्थाई सैनिकों के समान ही शहीद का दर्जा देते हुए सभी लाभ दिए जाने चाहिए। अग्निवीर भर्ती की समीक्षा को लेकर शुरू हुई बहस के संदर्भ में इस मुद्दे पर बातचीत करते हुए सामरिक विशेषज्ञ सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने कहा कि कोई नई चीज शुरू होती है तो एक समय के बाद इसकी समीक्षा करना सेना की प्रथा रही है। जहां तक अग्निवीर भर्ती की बात है तो इसके कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक पहलू हैं।

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सेवा की अवधि को चार से बढ़ा सात-आठ करने का सुझाव

इसमें अच्छी बात यह है कि अग्निवीर का बैच जल्दी-जल्दी बदलने से आधुनिक तकनीक से लैस और अपडेट युवाओं के सेना में आने का सिलसिला जारी रहेगा जिससे सेना की औसत उम्र प्रोफाइल युवा रहेगी। सेना का पेंशन बोझ कम होगा। नकारात्मक पहलू यह है कि चार साल की नौकरी की अवधि काफी कम है। साथ ही ऑपरेशन या जंग के मोर्चे पर अग्निवीर अपना प्राण न्योछावर करता है तो उससे शहीद का दर्जा नहीं है।

लेफ्टिनेंट जनरल दुआ अग्निपथ स्कीम में सुधार की जरूरत बताते हुए कहते हैं कि चार साल का समय पर्याप्त नहीं है और इससे न्यूनतम सात साल किया जाना आवश्यक है। हर बैच के 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही स्थाई सैनिक बनाने की सीमा भी कम है और यह 50-60 फीसद होना चाहिए। ऐसा किया जाएगा तो फिर 12-15 साल बाद सेना में स्थाई सैनिकों के अनुभव और संख्या पर किसी तरह का प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।

वे कहते हैं कि यह बेहद अहम है कि सेना के आपरेशनल मोर्चे पर प्राण गंवाने वाले अग्निवीर को स्थाई सैनिक की तरह ही शहीद का सम्मान देते हुए उसे वित्तीय लाभ और स्थाई विकलांगता लाभ दिया जाए। वहीं, सामरिक विशेषज्ञ सेवानिवृत्त मेजर जनरल जेकेएस परिहार कहते हैं कि अग्निवीर के बारे में बुनियादी सोच ही गलत है, क्योंकि सेना नागरिक कल्याण के लिए मैन पावर तैयार करने के लिए नहीं है। इसका पहला और आखिरी लक्ष्य देश की रक्षा-सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

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पूर्व सैनिक के समान दर्जा जैसे आए सुझाव

इस लिहाज से अग्निवीर की छह माह की ट्रेनिंग पर्याप्त नहीं और ऑन जॉब सीखने के लिए चार साल में उनके पास ज्यादा वक्त नहीं। ऐसे में अग्निवीर स्थाई सैनिक की तुलना में कौशल और अनुभव दोनों में बराबरी नहीं कर सकता और इससे सेना की लड़ने की क्षमता पर असर पड़ेगा। वे कहते हैं कि एक सैनिक को पूरी तरह मेच्योर होने में चार-पांच साल लगते हैं, जिस दौरान वह अलग-अलग हथियारों के संचालन से लेकर हर तरह की भौगोलिक चुनौतियों में काम करने का अनुभव हासिल करता है।

स्थाई सैनिक भी 17 साल की सेवा के बाद रिटायर होता है तो वास्तविकता यह है कि हर साल बाहर आने वाले 40000 पूर्व सैनिकों को ही वैकल्पिक नौकरी नहीं मिल पाती तो फिर अग्निवीरों की चुनौती कहीं ज्यादा होगी। मेजरल जनरल परिहार कहते हैं कि नए दौर की जरूरतों के हिसाब से जब सैनिकों की संख्या सेना में घटाई जानी है तब तो अग्निवीर की बजाय स्थाई सैनिकों के रूप में भर्ती ज्यादा अहम है, ताकि सेना की ऑपरेशनल क्षमता पर किसी तरह का असर न पड़े। हमें इस पहलु पर भी गौर करना चाहिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस को हार जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा है कि रूसी सेना में कांट्रैक्ट सैनिक ज्यादा हैं, जिनकी युद्ध मोर्चे पर प्रेरणा की एक सीमा है।

वहीं, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने अपने एक विचारोतेजक आलेख में कहा है कि वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद पेंशन का बोझ घटाने और सेना की वर्तमान औसत आयु 32 साल से घटाकर 26 साल करने के लिए लाई गई अग्निवीर स्कीम में बदलवा की जरूरत है।

सरकार के पास इसको लेकर तीन विकल्प हैं जिसमें पहला भर्ती की पुरानी प्रक्रिया बहाल करना। दूसरा नई व्यवस्था जारी रखते हुए इसे आकर्षक बनाने के लिए विशेष कंट्रिब्यूटरी पेशन स्कीम लागू कर इसमें सरकार का अंशदान सुनिश्चित करना। तीसरा अग्निवीर को बलिदान की स्थिति में सैनिक की तरह शहीद का दर्जा दिया जाए।

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