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भारत में हर वर्ष होती है दो लाख किडनी, 50 हजार हृदय और इतने ही लीवर की दरकार!

अंगदान की पूर्वघोषणा के बावजूद मृत व्यक्ति के निकटतम संबंधी की पुन: अनुमति अनिवार्य है। अंगदान की आयुसीमा नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 14 Aug 2018 06:13 AM (IST)
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भारत में हर वर्ष होती है दो लाख किडनी, 50 हजार हृदय और इतने ही लीवर की दरकार!

हरीश बड़थ्वाल। देना नेकी का काम है, सभी समुदायों-पंथों में दाता का गुणगान किया जाता रहा है। इससे बड़ा दान क्या होगा जब आपके दिए से किसी को दिखने लगे या उसका मरणासन्न हृदय धड़कने लगे या निष्क्रिय किडनी कार्य करने लगे। इन पांच अंगों का प्रत्यारोपण प्राय: किया जाता है-किडनी, लीवर, हृदय, फेफड़े और अग्न्याशय (पैंक्रियाज)। किडनी की मांग सर्वाधिक है। प्रत्यारोपित किडनी नौ वर्ष तक बखूबी कार्य करती है और एक किडनी देने के बाद भी दाता को खास फर्क नहीं पड़ता।

एक जीवित व्यक्ति के लीवर का अंश दो व्यक्तियों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। दिलचस्प यह है कि कालांतर में लीवर रीजेनरेट हो कर कमोबेश सामान्य आकार का हो जाएगा। लीवर की भांति पैंक्रियाज का आंशिक दान किया जाता है, फिर भी दाता का यह अंग बखूबी कार्य करता रहेगा। विरले मामलों में आंत का हिस्सा भी प्रत्यारोपित किया जाता है। अंगों के अलावा खासी मांग वाले ऊतक, रक्त या स्टेम सेल, प्लेटलेट जैसे सह उत्पादों के अलावा हड्डियां, त्वचा, हृदय के वॉल्व, नसें दान किए जाते हैं। कोर्निया यानी आंख के आवरण की पारदर्शी परत मृत्यु के 24 घंटे में दान देने से दो नेत्रहीनों का जीवन रोशन हो सकता है।

अंगदान प्रक्रिया सरल नहीं है, शरीर से पुन:प्रयोग के लिए अंग निष्कासित करने की प्रक्रिया के तहत चार डॉक्टरों का पैनल छह घंटे की अवधि में दो बार सत्यापित करता है कि मस्तिष्क मृत हो गया है। इनमें से दो सरकार से अनुमोदित होने चाहिए। अन्य देशों के मुकाबले भारत में मस्तिष्क का मृत होना ही इसके लिए मान्य होता है। नियमानुसार दुर्घटनाग्रस्त लावारिस लाश से अंग नहीं निकाले जा सकते। अंगदान की पूर्वघोषणा के बावजूद मृत व्यक्ति के निकटतम संबंधी की पुन: अनुमति अनिवार्य है। अंगदान की आयुसीमा नहीं है।

दुर्भाग्य से देश के केवल तीन राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के सरकारी अस्पताल नेटवर्क से जुड़े हैं जहां प्रतीक्षारत जरूरतदों को तत्काल अंग पहुंचाए जाने की व्यवस्था की जाती है। देश में पांच लाख से ज्यादा मौतें इसलिए होती हैं चूंकि पीड़ित का कोई अंग विफल होने पर उन्हें दूसरा अंग सुलभ नहीं होता। प्रतिवर्ष हमें दो लाख किडनी, 50 हजार हृदय और इतने ही लीवर चाहिए, जबकि उपलब्धता बमुश्किल करीब चौथाई है। अंगदान को प्रोत्साहित करने और प्रत्यारोपण को कम खर्चीला करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी।

देश में अंगदान प्रक्रिया को संचालित करने का जिम्मा राष्ट्रीय अंग और ऊतक संगठन (नोट्टो) का है। इसके फ्री हेल्पलाइन नंबर पर चौबीसों घंटे मदद ली जा सकती है। अंचल व राज्यस्तर पर स्थित केंद्रों के जरिये यह सुनिश्चित किया जाता है कि अंगदान का कार्य संतोषजनक रूप से चल रहा है। प्रतिवर्ष 13 अगस्त को मनाए जाने वाले अंगदान दिवस के अवसर पर जनस्वास्थ्य के हित में अंगदान की अहमियत और प्रक्रिया के बाबत लोगों को जागरूक किया जाता है। एक दाता आठ जरूरतमंदों की जान बचा सकता है। आप भी इस पुनीत कार्य से जुड़ कर जीवन सार्थक बना सकते हैं।

(लेखक स्वास्थ्य मामलों के जानकार हैं)