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EWS आरक्षण विवाद से सुर्खियों में आई संवैधानिक पीठ, जानें- कैसे होता है गठन और किन मामलों में देती है फैसला

EWS reservation dispute पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का फैसला आ चुका है। इस मामले में 3-2 से फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट की Constitutional Bench हर तरह का मामला नहीं सनुती है। इसके समक्ष कुछ खास मामले ही आते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Kamal VermaUpdated: Mon, 07 Nov 2022 12:55 PM (IST)
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EWS reservation dispute पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सुनाया है फैसला

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। EWS Reservation dispute पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले के बाद कुछ लोग खुश होंगे तो कुछ दुखी भी होंगे। आज आए इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बैंच सुर्खियों में है। लेकिन क्‍या आप इस पांच जजों की बैंच के मायने जानते हैं। क्‍या आप जानते हैं कि ये बैंच क्‍या होती है और इसमें कितने सदस्‍य होते हैं और किस परिस्थिति में ये बैंच किसी मामले को सुनकर फैसला सुनाती है। यदि नहीं जानते हैं तो हम आपको इस बारे में विस्‍तार से बताते हैं।

संवैधानिक पीठ 

इससे पहले आपको ये बता दें कि भारत के संविधान में दी गई व्‍य‍वस्‍थाओं पर यदि कोई प्रश्‍न उठता है तो ये मामला बेहद संगीन माना जाता है। इसलिए ऐसे मामलों में चीफ जस्टिस आफ इंडिया संवैधानिक पीठ का गठन करते हैं। इस तरह के मामले यही पीठ सुनती है। इसको सुप्रीम कोर्ट की फुल बैंच भी कहा जाता है जिसमें 5 या उससे अधिक जज हो सकते हैं। किसी भी मामले में जो संवैधानिक पीठ के सामने आता है उस पर फैसला बहुमत के आधार पर माना जाता है। जैसे सोमवार को ईडब्‍ल्‍यूएस मामले में जो फैसला आया है वो 3-2 से किया गया है। इसमें तीन जजों ने इसके पक्ष में जबकि दो ने इसके विरोध में अपना फैसला सुनाया है। बहुमत के आधार पर कोर्ट ने सरकार द्वारा लिए गए फैसले को सही माना है।

नियमित नहीं होती है ये बैंच 

इस तरह की संवैधानिक पीठ का गठन नियमित नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट में आने वाले अधिकतर मामलों में डिवीजन बैंच बनाई जाती है जिसमें दो जज जोते हैं। इनमें कभी-कभी तीन जजों की बैंच भी होती है। भारतीय संविधान में किसी भी संवैधानिक पीठ के गठन को लेकर जो व्‍यवस्‍था दी गई है उसका जिक्र अनुच्छेद 145(3) में स्‍पष्‍ट किया गया है। इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 143 के तहत किसी मामले की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णय के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या 5 होगी।

सामान्‍य भाषा में संवैधानिक पीठ की परिभाषा 

सामान्‍य भाषा में कहें तो जब किसी मामले में दो जजों की बैंच का फैसला परस्‍पर विरोधी होता है तो सुप्रीम कोर्ट इस स्थिति में तीसरे जज की नियुक्ति कर ता है। इसके बाद भी यदि फैसले पर और संवैधानिक व्‍यवस्‍था पर सवाल उठाए जाते हैं और कानून की व्‍यख्‍या करने की अपील की जाती है तो ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक पीठ का गठन करती है।

राष्‍ट्रपति ले सकता है सलाह

आपको बता दें कि जब राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मांगता है तब भी इस तरह की पीठ का गठन किया जाता है। भारत के राष्‍ट्रपति के पास ये जानने का अधिकार है कि अमुक विषय में संविधान क्‍या कहता है और क्‍या प्रावधान हैं। ऐसा वे लोक कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले विषयों में कर सकते हैं। ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट राष्‍ट्रपति को सलाह देता है। 

इस तरह के मामले में भी हो सकता है गठन  

इस तरह की पीठ का गठन तब भी किया जा सकता है जब सर्वोच्च न्यायालय के दो या तीन से अधिक जजों की पीठ ने कानून के एक ही बिंदु पर अलग-अलग निर्णय लेते हैं। उस वक्‍त एक बड़ी पीठ को इसकी सुनवाई कर फैसला सुनाने के लिए फुल बैंच का गठन किया जाता है। ये बैंच उस मामले में कानून की व्‍याख्‍या करती है और फैसला सुनाती है।

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