ब्रिटेन में ऋषि राज : भारतीयता को मिली नई संजीवनी, चुनौतियों के बीच बनता नया इतिहास; एक्सपर्ट व्यू
UK New PM Rishi Sunak आधुनिक दौर में शासन व्यवस्था के लिए लोकतंत्र को सर्वाधिक बेहतर माना जाता है। लोकतंत्र की आवश्यक शर्त व्यवस्था का सेक्युलर होना है। सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगने के डर से शासन व्यवस्था से जुड़े लोग अब तक मंदिरों में जाने से परहेज करते थे।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Fri, 28 Oct 2022 12:09 PM (IST)
उमेश चतुर्वेदी। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के चरम पर पहुंचने के बाद वर्ष 1932 में ऐसा महसूस किया जा रहा था कि भारत को गुलाम बनाने वाली ब्रिटिश सरकार को भारतीय स्वाधीनता सेनानियों से समझौता करना पड़ेगा। तब ब्रिटिश संसद में एक समिति गठित की गई थी, जिसे भारत में संवैधानिक सुधारों को लागू करना था। उसके सम्मुख प्रस्तुति के लिए तब के एक ब्रिटिश सांसद ने छह पृष्ठों का एक दस्तावेज तैयार किया था, जिसमें उन्होंने भारत और भारतीयों के बारे में लिखा था, ‘वे जानवर जैसे लोग हैं और उनका धर्म भी पशुओं जैसा है।’ उन्होंने तब भारत के बारे में कहा था कि भारत न एक देश है या राष्ट्र है, यह एक महाद्वीप है, जिसमें कई देश बसे हुए हैं।’
अपने इन तर्कों के जरिए भारत के प्रति अपनी घृणा को जाहिर करने वाले नेता थे विंस्टल चर्चिल, जो बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भी बने। भारत और भारतीयों पर जाहिर इन विचारों ने 90 वर्षों की यात्रा पूरी कर ली है। इस बीच समय चक्र लगभग पूरी तरह घूम चुका है। चर्चिल के इन विचारों का जवाब कहेंगे या फिर संयोग, उनकी ही टोरी पार्टी को अपनी अगुआई के लिए उसी भारतीय रक्त पर विश्वास करना पड़ा है, जिसे लेकर उसके ही एक पूर्वज में गहरे तक घृणा बैठी हुई थी।
ऋषि सुनक के दादा अविभाजित भारत के गुजरांवाला के निवासी थे
आर्थिक बवंडर के दरिया में हिचकोले खा रही ब्रिटिश नौका को खेने और उसे पूरी सुरक्षा के साथ किनारे लगाने को लेकर जिस व्यक्ति पर ब्रिटिश टोरी पार्टी को विश्वास जताना पड़ा है, उसकी रगों में वही भारतीय रक्त स्पंदित हो रहा है, जिसे विंस्टन चर्चिल देखना तक पसंद नहीं करते थे। ऋषि सुनक के दादा अविभाजित भारत के गुजरांवाला के निवासी थे। जिस समय विंस्टन चर्चिल भारत के बारे में अपनी कुख्यात राय जाहिर कर रहे थे, उसके ठीक तीन साल बाद ऋषि के दादा बदहाल भारतीय धरती को छोड़ रोजी-रोटी की तलाश में अफ्रीकी देश कीनिया पहुंच गए थे। बाद में वे ब्रिटेन आए और यहां के साउथम्प्टन शहर में डेरा जमाया और गृहस्थी खड़ी की।गुलाम भारत से दरबदर हुए इस परिवार ने शायद ही सोचा होगा कि उसके चिराग से रोशनी की उम्मीद वह ब्रिटेन लगा बैठेगा, जिसके राज में कभी सूरज नहीं डूबता था।
मध्यकालीन इतिहास में भारत से बाहर अपना राज विस्तार करने वाले कुछ चरित्रों की जानकारी मिलती है। कनिष्क और फुआन नाम के राजाओं ने विदेशी धरती तक अपना साम्राज्य फैलाया था। इन्होंने अपना राजकाज ईरान, उजबेकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान और दक्षिणी पूर्वी एशिया तक पहुंचा दिया था। तब का दौर तलवारों के दम पर राज स्थापित करना था। लेकिन आज का दौर लोकतंत्र का है। लोकतांत्रिक समाज में जिसे जनता चुनती है, वही उनका भाग्यविधाता बनता है।