Punjab News: SAD को लेकर BJP के सुरों में नरमी, गठबंधन के आसर बढ़े; बदल सकते हैं पंजाब के समीकरण
पंजाब में राजनीतिक समीकरण भी बदल रहे है। एक तरफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन की पूरी-पूरी संभावना है तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के पुराने सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल को लेकर सुर नरम पड़ते दिखाई दे रहे है। दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा लंबे समय से चल रही है लेकिन ताजा घटनाक्रम ने इसे और बल दे दिया है।
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। लोक सभा चुनाव के दिन जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं पंजाब में राजनीतिक समीकरण भी बदल रहे है। एक तरफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन की पूरी-पूरी संभावना है तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के पुराने सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल को लेकर सुर नरम पड़ते दिखाई दे रहे है। जिससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि पंजाब की राजनीति में नया बदलाव आ सकता है और भाजपा और अकाली दल तीन साल बाद फिर से एक मंच पर आ सकते है।
लंबे समय से चर्चाएं तेज
दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा लंबे समय से चल रही है लेकिन ताजा घटनाक्रम ने इसे और बल दे दिया है। 2015 से अकाली दल के साथ पंजाब में हुई बेअदबियों की घटनाओं का काला अध्याय चल रहा है। शिअद प्रधान सुखबीर बादल ने 14 दिसंबर अकाल तख्त में रखे गए समागम के दौरान बेअदबी की घटनाओं के लिए माफी मांगी। सुखबीर बादल द्वारा मांगी गई माफी का शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के प्रधान व पूर्व केंद्रीय सुखदेव सिंह ढींढसा ने समर्थन किया।
23 दिसंबर को पार्टी की बैठक
ढींढसा ने सुखबीर बादल की वजह से ही शिअद छोड़ अपनी पार्टी बनाई थी। ढींढसा की पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन है। सुखबीर की माफी के बाद यह संकेत मिल रहे हैं कि ढींढसा वापस शिअद में जा सकते है। क्योंकि ढींढसा 23 दिसंबर को पार्टी की बैठक बुलाई हुई है।
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वहीं, बीते बुधवार को भाजपा के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने यह कह कर गठबंधन की संभावनाओं को बल दे दिया कि पंजाब व राष्ट्र के लिए शिअद का मजबूत रहना आवश्यक है। क्योंकि सिखों को यह पता रहना चाहिए कि उनकी बात रखने के लिए कोई पार्टी है।
जाखड़ ने नहीं दिया था कोई बयान
जाखड़ के बयान को इसलिए भी गंभीरता से देखा जा रहा हैं क्योंकि प्रदेश प्रधान बनने के बाद जाखड़ ने कभी भी शिअद को लेकर कभी कोई बयान नहीं दिया था। जाखड़ का बयान भी तब आया जब सुखबीर बादल ने माफी मांगी और सुखदेव सिंह ढींढसा ने सकारात्मक रुख अपनाया।
अहम बात यह है कि तीन कृषि कानून को लेकर भले ही अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूटा हो लेकिन उससे पहले इस गठबंधन को स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ‘नाखून और मांस’ रिश्ता बताते थे। जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी इसे ‘खिचड़ी और घी’ का रिश्ता बताते थे।
कांग्रेस और आप का गठबंधन तय माना जा रहा
बादल हमेशा ही शिअद-भाजपा गठबंधन को दो पार्टियों का नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द का गठबंधन बताते थे। यही कारण है कि भले ही भाजपा और अकाली दल के रिश्तों में दरार आ गई हो लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद पहुंचे थे।
जबकि बादल के अंतिम संस्कार पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अंतिम किरया पर गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे थे। वहीं, पंजाब में बदलने राजनीतिक समीकरण के बीच सबकी नजरें अकाली दल और भाजपा पर टिकी हैं कि क्या इन दोनों पार्टियों का गठबंधन होता है या नहीं। जबकि कांग्रेस और आप का गठबंधन तय ही माना जा रहा है।