'ऐसा तो दानव भी नहीं करते' बेटी से रेप के दोषी पिता को उम्रकैद, कोर्ट ने रामचरितमानस की चौपाई लिखकर दिया उदाहरण
राजस्थान के कोटा में नाबालिग बेटी के साथ रेप करने वाले दोषी पिता को अदालत ने अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। न्यायाधीश दीपक दुबे ने फैसला सुनाते हुए रामचरितमानस की चौपाई लिखकर बाली वध का उदाहरण दिया है। अदालत ने कहा कि ऐसा तो दानव भी नहीं करते।
जागरण संवाददाता, जयपुर। राजस्थान के कोटा में अपनी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने वाले पिता को जिला पॉक्सो न्यायालय ने अंतिम सांस तक जेल में रहने (उम्रकैद) की सजा सुनाई है। साथ ही 10 हजार का अर्थदंड भी लगाया है। गुरुवार को न्यायाधीश दीपक दुबे ने फैसला सुनाते हुए रामचरितमानस की चौपाई लिखकर बाली वध का उदाहरण दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा उदाहरण तो दानवों में भी देखने को नहीं मिलता। पीड़िता राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है।
पीड़िता ने थाने में दर्ज कराई थी शिकायत
सरकारी वकील ललित शर्मा ने बताया कि मामला 19 दिसंबर, 2022 का है। पीड़िता तीन बहनों से सबसे बड़ी है। पीड़िता की मां और छोटी बहन बाजार गई थी। मंझली बहन खेलने के लिए गई थी। इस दौरान पीड़िता रसोई में काम कर रही थी। शाम छह बजे उसके पिता ने उसे जबरन पकड़ लिया और अंदर कमरे में ले जाकर दुष्कर्म किया। पीड़िता ने मां के घर लौटने पर पूरी घटना की जानकारी दी । इस पर पीड़िता के मां और पिता में विवाद हुआ। पिता ने माफी मांग ली, लेकिन पिता फिर परेशान करने लगा तो पीड़िता ने 9 मार्च 2023 को उद्योग नगर थाने में रिपोर्ट दी थी।
पिता का कलंक और बेटी की कटु स्मृतियां कभी नहीं मिटेगी
न्यायाधीश दुबे ने फैसले में रामचरितमानस की चौपाई लिखी। जिसमें लिखा- मरते समय बाली ने श्रीराम से पूछा, आपने मेरा वध क्यों किया, तब श्रीराम ने कहा, 'अनुज वधु भगिनी सत नारी, सुनु सठ कन्या सम ऐ चारी, इन्हहि कुदृष्टि बिलोकई जोई, ताहि वधु कछु पाप न होई।' अर्थात छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री, इन चारों में कोई अंतर नहीं है। किसी भी पुरुष के लिए ये एक समान होनी चाहिए। इन पर अपनी कुदृष्टि रखने वाला या इनका अपमान करने वाले का वध करना पाप की श्रेणी में नहीं आता है।
ये भी पढ़ें:
Kerala के त्रिशूर में ततैया के हमले में एक MNREGA मजदूर की मौत, सात अन्य घायल
ये भी लिखा है- श्रेष्ठ परवरिश और संस्कारों के चलते ही बेटी ने राष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिता में भाग लिया। अपरिपक्व अवस्था से बालिग अवस्था तक, शारीरिक संबंध बनाना मानवता को शर्मशार करने वाली घटना है। समय परिवर्तनशील है, लेकिन पिता का कलंक और बेटी की कटु स्मृतियां कभी नहीं मिटेगी। दोषी पिता अपने जीवन की आखिरी सांस तक कारागार में बैठकर प्रत्येक क्षण अपने पापों का प्रायश्चित करता रहेगा, जिससे भविष्य में कोई पिता अपनी बेटी की ओर कुदृष्टि डालने की हिम्मत नहीं करेगा।
न्यायालय ने पीड़िता को दिया संदेश
आदेश में लिखा है- हमारी बिटिया रानी तुम होनहार खिलाड़ी हो, विपरित परिस्थितियों में साहस के साथ लड़ना और विजय होना तो तुम्हारे खून में है। चलो उठो काली अंधेरी रात गुजर चुकी है। आशाओं का सूरज नई किरण के साथ तुम्हें बुला रहा है। आगे बढ़ो और आशाओं के उन्मुक्त आसमान में उड़कर अपने सपनों को साकार करो। पीड़िता अब बालिग है। वह हॉकी की खिलाड़ी है। न्यायालय ने पीड़िता प्रतिकार योजना के तहत 10 लाख की आर्थिक सहायता देने की भी अनुशंसा की है।
ये भी पढ़ें: