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Magh Gupt Navratri 2024: गुप्त नवरात्र में इन मंत्रों से करें 10 महाविद्याओं को प्रसन्न

हर साल 2 बार गुप्त नवरात्र मनाई जाती है जिसमें दस महाविद्याओं की पूजा-अर्चना गुप्त तरीके से की जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्र की शुरुआत होती है। इस दौरान दस महाविद्याओं की आराधना द्वारा सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। यह पूजा मुख्य रूप से तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले अघोरियों या तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Wed, 07 Feb 2024 12:31 PM (IST)
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Magh Gupt Navratri 2024 गुप्त नवरात्र के मंत्र।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Magh Gupt Navratri 2024: हिंदू धर्म में नवरात्र का समय मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की आराधना करने के लिए समर्पित माना गया है। प्रत्येक वर्ष में 4 नवरात्र मनाए जाते हैं, जिसमें से दो गुप्त नवरात्र होते हैं और 2 प्रकट नवरात्र के रूप में मनाए जाते हैं। गुप्त नवरात्र माघ और आषाढ़ माह में आती है। वहीं, प्रकट नवरात्र चैत्र और आश्विन माह में मनाई जाती है। इस समय में ऐसे में दस महाविद्याओं की पूजा करने का विधान है। ऐसे में आइए जानते हैं दस महाविद्याएं को प्रसन्न करने के लिए मंत्र।

गुप्त नवरात्र 2024 शुभ मुहूर्त (Gupta Navratri Shubh Muhurat)

माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 10 फरवरी से शुरू हो रही है। ऐसे में 10 फरवरी, शनिवार के दिन से गुप्त नवरात्र की शुरुआत होगी। साथ ही 18 फरवरी, रविवार के दिन इसका समापन होने जा रहा है।

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त (Ghat Sthapana Muhurt)

गुप्त नवरात्र की पूजा-अर्चना भी प्रकट नवरात्र की तरह ही की जाती है। इन नौ दिनों में अखंड दीप भी जलाया जाता है। ऐसे में माघ गुप्त नवरात्र के घट स्थापना का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा -

घट स्थापना का मुहूर्त - 10 फरवरी, सुबह 08 बजकर 45 मिनट से सुबह 10 बजकर 10 मिनट तक

घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त - 10 फरवरी, दोपहर 12 बजकर 13 मिनट से 12 बजकर 58 मिनट तक

दस महाविद्याओं के मंत्र (Das Mahavidya Name)

गुप्त नवरात्र के दौरान दस महाविद्या की पूजा का विधान है। ये 10 महाविद्याएं मां दुर्गा के ही रूप हैं। गुप्त नवरात्र में प्रत्येक दिन अगल-अलग देव की आराधना के लिए समर्पित होता है। ऐसे में आप इन मंत्रों की सहायता से इन देवियों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

माता काली

मंत्र - ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।।

देवी तारा

मंत्र - ऐं ऊँ ह्रीं क्रीं हूं फट्।।

देवी छिन्नमस्ता

मंत्र - श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा।।

देवी षोडशी

मंत्र - ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क ए ह ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं महाज्ञानमयी विद्या षोडशी मॉं सदा अवतु।।

देवी भुवनेश्वरी

मंत्र - ऐं ह्रीं श्रीं।।

देवी त्रिपुर भैरवी

मंत्र - हस्त्रौं हस्क्लरीं हस्त्रौं।।

देवी धूमावती

मंत्र - धूं धूं धूमावती ठः ठः।।

देवी बगलामुखी

मंत्र - ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम् वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वा कीलय-कीलय बुद्धि विनाशाय-विनाशाय ह्रीं ऊँ स्वाहा।।

देवी मातंगी

मंत्र - ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।।

देवी कमला

मंत्र - ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः जगत्प्रसूत्यै नमः।।

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