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Panch Tatva: न केवल मनुष्य बल्कि भगवान में भी विद्यमान है यह पांच तत्व, जानिए क्या है पंचतत्व का महत्व?

Panch Tatva श्रृष्टि में जीवन के लिए महत्वपूर्ण पांच तत्वों को वेद भाषा में पंचतत्व कहा जाता है। सांसारिक जीवन में इन पंचतत्वों का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं क्या और कितने हैं पंचतत्व और उनका महत्व?

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sun, 21 May 2023 09:00 AM (IST)
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Panch Tatva: जानिए क्या है जीवन में पांच तत्वों का महत्व?

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क; 5 Elements of Panch Tatva: वेद एवं पुराणों में बताया गया है कि सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु द्वारा किया गया था। वहीं सृष्टि पर जीवन के लिए पांच तत्वों की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई थी। ब्रह्मांड के निर्माण में पांच तत्वों की अहम भूमिका है। वह पांच तत्व हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। इन पांच तत्वों को वेद भाषा में पंचतत्व कहा जाता है। इसी से आत्मा और शरीर की उत्पत्ति होती है। सर्वप्रथम आकाश फिर वायु, वायु के पश्चात अग्नि, अग्नि से जल और जल के बाद पृथ्वी। इन पांच तत्वों के बाद पृथ्वी से औषधि का निर्माण होता है, औषधि से अन्न, अन्न से वीर्य और अंत वीर्य से पुरुष या शरीर उत्पन्न होते हैं। इसका वर्णन तैत्तिरीय उपनिषद में विस्तार से किया गया। सांसारिक जीवन में इन पंचतत्वों का विशेष महत्व है।

पुराणों में बताया गया है कि शिव और आदिशक्ति से मिलकर पंच तत्वों का निर्माण हुआ था, ताकि सृष्टि पर जीवन निरंतर चलता रहे। बता दें कि मानव शरीर भी पंचतत्वों से मिलकर ही बनता है। किसी जीव में यह तत्व कम होते हैं तो किसी में इसकी मात्रा अधिक होती है। मृत्यु के बाद भी व्यक्ति का शरीर इन पंच तत्वों में ही मिल जाता है। यहां तक कि भगवान में भी पंच तत्व ही निवास करते हैं। आइए जानते हैं, क्या है पंचतत्व और उनका महत्व?

पृथ्वी

हमारा शरीर जो दिखाई देता है, वह इस जगत का ही हिस्सा है और उसे पृथ्वी कहते हैं और इसी से हमारा भौतिक शरीर बना हुआ है। लेकिन इसमें तब तक जान नहीं आती है जब तक अन्य तत्व सम्मिलित नहीं होते हैं। जिस तरह किसी चीज के निर्माण में भिन्न-भिन्न चीजों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जीव-जंतुओं के निर्माण में भी पृथ्वी से अलग चार अन्य चीजों की भी आवश्यकता होती है।

जल

वैदिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो जल ही मनुष्य का सबसे अहम हिस्सा है। मनुष्य के शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल मौजूद है। उसी तरह जिस तरह धरती के तीन चौथाई हिस्सा जल से भरा हुआ है। यह जल व्यक्ति के खून और शरीर दोनों में हैं। तभी कहा गया है कि अन्न के बिना कुछ दिन जीव-जंतु जीवित रह सकते हैं, लेकिन जल के बिना यह संभव नहीं है।

अग्नि

अग्नि की उत्पत्ति जल से मानी जाती है। जिस तरह जल हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है, उसी तरह अग्नि भी ऊर्जा के रूप में शरीर में विद्यमान है। अग्नि के कारण ही शरीर चल-फिर सकता है। अग्नि तत्व ऊष्मा, शक्ति, ऊर्जा और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी गर्माहट होती है, वह अग्नि तत्व के कारण ही है। यही तत्व अधिकांश रूप से शरीर को निरोगी रखता है। साथ ही इससे बल और शक्ति प्राप्त होती है।

वायु

धरती पर जीवन के लिए वायु को सबसे महत्वपूर्ण तत्व बताया गया है। माना जाता है कि वायु की उत्पत्ति के कारण ही अग्नि की उत्पत्ति होती है। हमारा शरीर यदी प्राणवायु लेता हैम, तभी वह जीवित कहलता है। अन्यथा वायु के निकल जाने से शरीर में निर्जीव हो जाता है। जितना प्राण है वह सभी वायु तत्व के करण है। यह धरती, पेड़, पौधे, पशु-पक्षी सभी के लिए प्राणवायु आवश्यक होती है। इसलिए वायु को ही आयु भी कहा गया है।

आकाश

आकाश वह तत्व है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु यह सभी चार तत्व विद्यमान हैं। आकाश ही आत्मा का वाहक है और साधना के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण मन जाता है। जिस तरह आकाश अनंत है उसी तरह मन की भी कोई सीमा नहीं होते है। इसलिए आकाश तत्व को भौतिक रूप से मन कहा गया है। आकाश में बादल भी आते हैं, धूल भी उड़ती है और रौशनी भी होती है। ठीक उसी तरह मन में भी सुख, दुख और शांति यह सभी भाव उत्पन्न होते हैं।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।