संबंधों में जीवंतता स्वस्थ संवाद से बनी रहती है
संबंधों का दारोमदार स्वस्थ संवाद पर टिका रहता है। संवाद के माध्यम से हम हर्षोल्लास व्यथाएं चिंताएं और निजी सरोकार साझा करते हुए सकारात्मक और संतुष्ट जीवन बिता पाते हैं। ऐसा तभी संभव होगा जब इन्हें निष्ठा ईमानदारी और पारदर्शिता से निभाया जाए।
By Jeetesh KumarEdited By: Updated: Tue, 14 Dec 2021 12:34 PM (IST)
नानाविध व्यक्तियों से अविरल जुड़ाव मनुष्य के जीवन में वैविध्य, आनंद और उत्साह का संचार करता है, इसे अर्थ देता है। संबंधों का दारोमदार स्वस्थ संवाद पर टिका रहता है। संवाद के माध्यम से हम हर्षोल्लास, व्यथाएं, चिंताएं और निजी सरोकार साझा करते हुए सकारात्मक और संतुष्ट जीवन बिता पाते हैं। संवेदनाशून्य या औपचारिक संवादों का अर्थ है किसी तरह संबंधों को ढोना। मायने उन्हीं संबंधों के हैं जिनमें गहराई हो। ऐसा तभी संभव होगा जब इन्हें निष्ठा, ईमानदारी और पारदर्शिता से निभाया जाए। सुधी व्यक्तियों के संबंध गिनती के होते हैं, जिन्हें वे परिधान की भांति नहीं बदलते रहते, बल्कि अंतकाल तक निभाते हैं। वे संबंधों की अनवरत देखभाल करते हैं।
उचित पैदावार के लिए खरपतवार और अन्य अवांछित अंशों की काटछांट, निर्धारित समय पर सिंचाई तथा उर्वरक डालना आवश्यक है। इसी प्रकार संबंधों में अनायास उभरती शंकाओं और भ्रांतियों को खुले संवाद से निष्क्रिय करना आवश्यक है। संबंधों को सम्मान देने वाला जानता है कि इन्हें जीवंत और स्वस्थ रखने की प्रक्रिया में कदाचित दूसरे के अनुचित व्यवहार की अनदेखी करनी होगी, स्वयं सही होने पर भी दूसरे के दुराग्रह के समक्ष झुकना होगा।
अच्छे संबंध जिजीविषा को धार देते हुए उमंगों और आशावादिता को संपुष्ट करते हैं। अत: अपने दूरगामी हित में इन्हें स्वस्थ और जीवंत रखना होगा। इस आशय से परिजनों, मित्रों, सहकर्मियों आदि से संबंधों को समय समय पर तरोताजा रखने के प्रयास करने होंगे। अन्यथा ये निष्प्राण हो जाएंगे। दूसरों के सरोकारों में योगदान देकर तथा विशेष अवसरों पर उपहारों के आदान-प्रदान से संबंध जीवंत रहते हैं। सहज, निश्छल व्यवहार से जजर्र होते संबंधों में नई जान फूंकी जा सकती है। नए संबंध बनाने के साथ भावनात्मक संबल प्रदान करते पुराने संबंधों को संरक्षित रखना भी आवश्यक है।
हरीश बड़थ्वाल