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Sanskarshala: मोबाइल का अधिक यूज अपनों से कर रहा दूर, अब लाइक ही बन गई है अधिकतर बच्चों की लाइफ

परिवार मानवीय मूल्यों का आधार है। समाज की न्यूनतम इकाई है। संयुक्त परिवार की अवधारणा रही है। यह हमारी सभ्यता का मूल है जो अन्य देशों की तुलना में वैशिष्टता प्रदान करती है। मोबाइल की लत हमें परिवार से दूर कर रही है। समाज को विचार करना आवश्यक है।’

By Jagran NewsEdited By: Ankur TripathiUpdated: Thu, 20 Oct 2022 04:18 PM (IST)
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बच्चे मोबाइल व इंटरनेट मीडिया के अलग अलग प्लेटफार्म पर बहुत समय बिताते हैं।

युगल किशोर मिश्र, लेखक ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज गंगापुरी के प्रधानाचार्य हैं

प्रयागराज, जेएनएन। प्राचीन काल से लेकर अब तक परिवार अपना अस्तित्व समाज में बनाए हुए है। इसकी संरचना और परिभाषा समय दर समय बदलती रही है। अब भारतीय परिवार पश्चिमी सभ्यता से ज्यादा प्रभावित दिखने लगे हैं। भारतीय संस्कृति प्रदूषित सी प्रतीत होने लगी है। वैसे इंटरनेट (सोशल) मीडिया आने के बाद कई बदलाव हो रहे हैं चिंतन की दिशा में। होने भी चाहिए जब तक बदलाव नहीं होगा तब तक हम सामाजिक कुरीतिओं और कुंठाओं से बाहर नहीं आएंगे। बच्चों का पालन पोषण बाबा आजी और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा किए जाने से उनमें पारिवारिक मूल्यों के साथ सामाजिक मूल्यों का भी स्थानांतरण होता है। वर्तमान दौर एकल परिवार का है। इससे बच्चे पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का ज्ञान नहीं पाते। मोबाइल व इंटरनेट मीडिया के अलग अलग प्लेटफार्म पर समय बिताते हैं। अब लाइक ही उनके लिए पूंजी बन चली है।

आज ज्यादातर माता-पिता की यही शिकायत रहती है कि बच्चा घंटों मोबाइल से चिपका रहता है। भाषा खराब होने के साथ स्वभाव चिड़चिड़ा हो चला है, लेकिन दिक्कत यह है कि शिकायत का समाधान आसान नहीं दिखता। इंटरनेट मीडिया का कोई न कोई प्लेटफार्म प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। समस्या तब और अधिक बढ़ जाती है जब यह लत बड़ों के साथ ही बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में लेने लगती है। मैं तो यही कहूंगा कि यदि आप अभिभावक हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि बच्चे के विकास पर इंटरनेट मीडिया का क्या असर पड़ता है?

ज्यादा नेट सर्फिंग भी डालता है दिमाग पर नकारात्मक असर

कई शोधों से यह साफ हुआ है कि अधिक टेलीविजन देखना और नेट सर्फिंग दिमाग पर असर डालता है। बच्चों से यदि कुछ समय के लिए फोन ले लिया जाए तो उनमें गुस्सा और चिड़चिड़ापन आम हो चुका है। इंटरनेट का अधिक प्रयोग करने वाले लोगों में डिप्रेशन (अवसाद) के भी खतरा बढ़ता है। विद्यार्थी और किशोर गिरफ्त में हैं। इसकी वजह से वह अपने दैनिक कार्यों को भी ठीक से नहीं निपटा पा रहे हैं।

मोबाइल ला रहा व्यवहार में बड़ा बदलाव

कम आयु के विद्यार्थियों की बात करें तो वह इंटरनेट मीडिया विभिन्न प्लेटफार्मों पर अधिक समय बिताने की वजह से अच्छे बुरे का भी फर्क नहीं कर पाते। उनके व्यवहार में बड़ा बदलाव हो रहा है। चीजों को गंभीरता से नहीं लेना अथवा सब चलता है जैसी प्रवृत्ति बढ़ रही है। बड़े भी अपनी भूमिका को ठीक तरह से नहीं निर्वहन कर रहे हैं। गलत बातों को देखकर भी मुंह मोड़ लेते हैं, अर्थात दबाव डाल कर सुधार की प्रवृत्ति नहीं बची है।

पहले विद्यार्थी जीवन में एक दूसरे को लोग सही - गलत समझाते थे। यह बातें भी अब व्यवहार में नहीं हैं। कह सकते हैं कि इंटरनेट के विभिन्न प्लेटफार्मों पर निरुद्देश्य समय बिताने से लोगों में आपसी संबंध समाप्त हो रहे हैं। संवेदनाएं खत्म हो रही हैं। यदि सुधार चाहिए तो अभिभावकों को बच्चों की मोबाइल और टीवी की लत छुड़वाने के लिए खुद उनके साथ समय देना होगा। परिवार के अन्य रिश्तों को भी उतना ही महत्व देना पड़ेगा, तभी निकटता आएगी। अच्छी सीख देने वाली पुस्तकों से भी जोड़ना जरूरी हो चुका है।

पौधों को लगाने, उन्हें पानी देने, पेटिंग जैसी गतिविधियों से भी विद्याथियों को जोड़ना सकारात्मक नतीजे दे सकता है। बच्चों के सोने के कमरे में कभी भी टीवी, लैपटाप, या मोबाइल फोन न रखें। उनके साथ बैठकर जरूर पूछें कि वीडियो गेम्स, फिल्म और टीवी प्रोग्राम में क्या पसंद है। बच्चों को सामूहिक गतिविधियों के लिए मैदान में जरूर भेजें। वहां सामूहिकता के गुण विकिसत होंगे। आस-पड़ोस के लोगों को पहचानने और उनसे संवाद जैसी गतिविधि भी जरूरी है, यह तभी होगा जब स्क्रीन की दुनिया से हम बाहर आएंगे।