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राजा दशरथ ने यहां किया था पुत्रेष्टि यज्ञ… राम मंदिर जाएं तो जरूर घूम कर आएं, सरयू पार करने पर मिलता है रास्ता

श्रद्धालु सरयू के इस पार उमड़ रहे है किंतु बुधवार को यायावर सरयू के उस पार जा रहा है। फर्राटा भरते वाहनों की भरमार बताती है कि सरयू और उसके दक्षिण में अवस्थित अयोध्या दुनिया का नया गंतव्य बनने को है। इसके बावजूद सरयू पार कर उत्तर की ओर बढ़ते हुए वर्तमान के कोलाहल से मुक्त होकर जड़ों की ओर जाने का अवसर मिलता है।

By Raghuvar Sharan Edited By: Shivam Yadav Updated: Wed, 03 Jan 2024 10:45 PM (IST)
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राजा दशरथ ने यहां किया था पुत्रेष्टि यज्ञ… राम मंदिर जाएं तो जरूर घूम कर आएं।

रघुवरशरण, अयोध्या। श्रद्धालु सरयू के इस पार उमड़ रहे है, किंतु बुधवार को यायावर सरयू के उस पार जा रहा है। यद्यपि फोरलेन के पुल पर भी भीड़-भाड़ है। फर्राटा भरते वाहनों की भरमार बताती है कि सरयू और उसके दक्षिण में अवस्थित अयोध्या दुनिया का नया गंतव्य बनने को है। इसके बावजूद सरयू पार कर उत्तर की ओर बढ़ते हुए वर्तमान के कोलाहल से मुक्त होकर जड़ों की ओर जाने का अवसर मिलता है। 

जड़ों की ओर जाने की सबसे बड़ी प्रेरक स्वयं सरयू होती हैं। गंगा से भी पूर्व की पुण्य सलिला सरयू श्रीराम के लिए मातृत्व की परिचायक रही हैं। श्रीराम वंश के प्रवर्तक मनु की जिस 63वीं पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, उन्हीं मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के निवेदन पर गुरु वशिष्ठ अपने आध्यात्मिक प्रयास से सरयू को मानसरोवर से लेकर अयोध्या आए थे। 

श्रीराम की प्रामाणिकता स्वयं सिद्ध 

इक्ष्वाकु के अतिरिक्त श्रीराम के अन्य यशस्वी पूर्वज पृथु, मांधाता, सगर, दिलीप, भगीरथ, रघु, अज, दशरथ जैसे पूर्वजों की साक्षी सरयू आगे बढ़ने के साथ यह बताती प्रतीत होती हैं कि वर्तमान की साज-सज्जा विरासत के ही अनुरूप है और श्रीराम की प्रामाणिकता न्यायालय का निर्णय आने के बहुत पूर्व से स्वयं सिद्ध है।

सरयू पार करने के बावजूद कुछ देर तक फोरलेन का साथ बना रहता है। फोरलेन मार्ग दाहिनी ओर लहराकर किंचित आगे बढ़ता है और बाईं ओर मख भूमि का मार्ग प्रशस्त होता है। यह मार्ग और कुछ उप मार्गों पर करीब 10 किलोमीटर की यात्रा के बाद उस यज्ञ भूमि से सामना होता है, जहां राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति की कामना से यज्ञ किया था और जो आज बस्ती जिला के परशुरामपुर थाना क्षेत्र में पड़ने वाले पवित्र मख यानी यज्ञ भूमि के नाम से जाना जाता है। 

श्रृंगी ऋषि ने कराया दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ

प्रत्येक वर्ष चैत्र पूर्णिमा को इसी भूमि से अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा होती है। रामजन्मभूमि पर 22 जनवरी को रामलला के अर्चावतार की तैयार हो रही भावभूमि से रामावतार की प्रेरक इस भूमि की अनुभूति अवर्णनीय है। यज्ञभूमि के बगल त्रेतायुगीन वह मनोरमा नदी आज भी प्रवाहमान नजर आती है, जिसके तट पर श्रृंगी ऋषि ने दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। 

रामलला के विग्रह की स्थापना के साथ करीब पांच सौ वर्ष से आहत स्वाभिमान पुनर्गौरव प्राप्त करने को है और इस स्वर्णिम बेला में दशरथ की पुत्र कामेष्टि से जुड़े इस स्मारक को भी सुसज्जित किए जाने का यत्न किया जा रहा है। 

उद्दालक की तपोभूमि से हुआ मनोरमा का प्राकट्य

पौराणिक मान्यता के अनुसार, उद्दालक ऋषि ने यज्ञ का अनुष्ठान कर सरस्वती नदी को मनोरमा के रूप में यहीं प्रकट किया। मनोरमा का प्राकट्य स्थल गोंडा जिला मुख्यालय से 19 किलोमीटर दूर इटियाथोक नामक स्थान है। 

गोंडा और मनकापुर तहसील में कुछ दूर बहने के बाद इसकी एक धारा रामरेखा बन कर छावनी कस्बा के समीप सरयू में तिरोहित हो जाती है, जबकि दूसरी धारा परशुरामपुर के उस क्षेत्र तक पहुंचती है, जहां दशरथ ने यह यज्ञ किया था। हरैया, कप्तानगंज आदि से होती हुई मनोरमा की दूसरी धारा कुआनो नदी में मिलती है।

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