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Raksha Bandhan 2024: आज रक्षाबंधन पर क्या है शुभ मुहुर्त, बरेली के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ने बताया सटीक समय

Raksha Bandhan Muhurat भद्रा रहित त्रि-मुहूर्त योग में बहन बांधेगी प्रेम की डोर। अगर कोई भद्राकाल में राखी बांधता अथवा बंधवाता है तो उसे गलत परिणाम भुगतना पड़ता है। रक्षाबंधन बहन-भाई के स्नेह का पर्व है। जिन बहनों के भाई नहीं हैं वे अपने पिता इष्टदेव अथवा किसी पेड़-पौधे को रक्षासूत्र बांध सकती हैं। भद्रा के कारण राखी का शुभ मुहुर्त दोपहर डेढ़ बजे के बाद शुरू होगा।

By Saurabh Srivastava Edited By: Abhishek Saxena Updated: Mon, 19 Aug 2024 08:14 AM (IST)
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Raksha Bandhan 2024: रक्षाबंधन का शुभ मुहुर्त का सांकेतिक फोटो।

जागरण संवाददाता बरेली। Raksha Bandhan Muhurat श्रावण मास का अंतिम सोमवार के साथ ही भाई बहन के प्रेम का पर्व रक्षा बंधन का पर्व त्रि-मुहूर्त व्यपिनी योग में मनाया जाएगा। सोमवार को भद्रादोष लगा हुआ है, लेकिन भद्रा रहित काल में रक्षाबंधन मनाया जाएगा।

पंडित राजीव शर्मा बताते है कि पहले दिन व्याप्त पूर्णिमा के अपराह्न काल में भद्रा हो तथा दूसरे दिन उदय कालिका पूर्णिमा तिथि त्रि-मुहूर्त-व्यपिनी हो तो उसी उदय पूर्णिमा के अपराह्न काल में रक्षा बंधन करना चाहिए। चाहे वह अपराह्न से पूर्व ही क्यों न समाप्त हो जाए। यदि आगामी दिन पूर्णिमा त्रि-मुहूर्त व्यपिनी न हो तो पहले दिन भद्रा समाप्त होने पर प्रदोष काल में ही रक्षाबंधन करने का विधान है।

राजीव शर्मा का कहना है, कि सोमवार को पूर्णिमा में भद्रादोष व्याप्त है जो कि पूर्णिमा सूर्योदय से रात्रि तक रहेगी। इस वजह से सोमवार को ही भद्रा रहित काल में दोपहर 1:33 बजे के बाद रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा। सोमवार को उपरोक्त समयानुसार निशीथ काल आरंभ होने से पहले ही रक्षा बंधन करना चाहिए। सुबह 10:54 बजे से 12:38 बजे तक का समय भद्रामुख काल का होने के चलते राखी न बधंवाए।

रक्षाबंधन की क्या है मान्यता

रक्षाबंधन का पर्व रक्षा और स्नेह का प्रतीक होता है, जो व्यक्ति रक्षा सूत्र बंधवाता है, वह यह प्रण लेता है कि बांधने वाले की वह सदैव रक्षा करेगा। पुरानी मान्यताओं के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार बृहस्पति के निर्देश में इंद्राणी द्वारा तैयार किए गए रक्षा सूत्र को ब्राह्मणों द्वारा इंद्र की कलाई में बांधने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

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ऐसा माना जाता है कि 12 वर्ष तक चले देवासुर संग्राम में इंद्र की भीषण पराजय के बाद इंद्र को इंद्र लोक छोड़कर जाना पड़ा, तब देव गुरु बृहस्पति ने इंद्र को श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षा विधान करने का परामर्श दिया। इस पर इंद्राणी ने एक रक्षा सूत्र तैयार किया और उसे ब्राह्मणों द्वारा इंद्र की कलाई पर बंधवा दिया। इस रक्षा सूत्र के कारण इंद्र की सेवासुर संग्राम में विजय हुई।

क्या है व्रत-पूजा-विधान

इस दिन व्रत रखने वाले को चाहिए कि स्नान करके देवता पितर और ऋषियों का तर्पण करें। दोपहर को सूती वस्त्र लेकर उसमें सरसो, केसर, चंदन, अक्षत एवं दूर्वा रखकर बांधे, फिर कलश स्थापन कर उस पर रक्षा सूत्र रखकर उसका यथाविधि पूजन करें। उसके बाद रक्षा सूत्र को दाहिने हाथ में बंधवाना चाहिए।