Gorakhpur News: पूर्वोत्तर रेलवे में बहुत गहरी हैं भ्रष्टाचार की जड़ें, पहले भी गिरती रही है अफसरों पर गाज
पूर्वोत्तर रेलवे में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं। सामग्री प्रबंधन में सीबीआइ की छापेमारी कोई नई नहीं है। वर्ष 2013 में भी सीबीआइ की टीम गोरखपुर स्थित स्क्रैप डिपो में छापेमारी की थी। इसके साथ ही सीबीआइ टीम पांच माह के अंदर तीन बार गोरखपुर आई थी। सामग्री प्रबंधन और निर्माण संगठन में तो सीबीआइ समय-समय पर छपेमारी करती रही है।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। पूर्वोत्तर रेलवे में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं। सामग्री प्रबंधन में सीबीआइ की छापेमारी कोई नई नहीं है। वर्ष 2013 में भी सीबीआइ की टीम गोरखपुर स्थित स्क्रैप डिपो में छापेमारी की थी। इसके साथ ही सीबीआइ टीम पांच माह के अंदर तीन बार गोरखपुर आई थी। सामग्री प्रबंधन और निर्माण संगठन में तो सीबीआइ समय-समय पर छपेमारी करती रही है।
इसके अलावा प्रबंधन, परिचालन और वाणिज्य विभाग के अधिकारियों पर भी सीबीआइ जांच की गांज गिरती रही है। सीबीआइ जांच की रिपोर्ट के आधार पर तो परिचालन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की सेवा ही समाप्त कर दी गई। वर्ष 2013 के बाद सामग्री प्रबंधन विभाग के भ्रष्टाचार का मामला एकबार फिर प्रकाश में आया है। इसकी नींव कोविड काल में ही पड़ गई थी।
जानकारों का कहना है कि कोविडकाल में स्टोर डिपो ने रेलवे अस्पतालों को दवाइयां, सामग्री और उपकरण उपलबधकराने के लिए जेम पोर्टल पर सिर्फ एक ही फर्म का आवेदन स्वीकार किया था। वर्ष 2022 में स्टोर डिपो में जेम पार्टल पर सामानों की खरीद और बिक्री तथा लोकल खरीद में अनियमितता, एक विशेष एजेंसी को लाभ पहुंचाने, रेलवे के वाहनों और उपकरणों के नाम पर हेराफेरी की शिकायत विजिलेंस तक पहुंचने लगी।
वर्ष 2023 की शुरुआत में मामला दिल्ली रेलवे बोर्ड स्थित विजिलेंस तक पहुंच गया। आरोप था कि एक विशेष एजेंसी (फर्म) को ही दर्जन भर से अधिक सामानों की खरीदारी के लिए पंजीकृत किया गया है। रेलवे अस्पताल में लोकल खरीद मामले में दवा की सप्लाई में भी एक कंपनी को विशेष लाभ पहुंचाया गया है। रेलवे के एक बड़े क्रेन को निष्प्रयोज्य बताकर प्राइवेट क्रेन को कार्य के लिए लगाया गया है।
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शिकायत के आधार पर विजिलेंस टीम मामले की पड़ताल करने के बाद 23 मार्च को गोरखपुर पहुंच गई। दिल्ली से पहुंची विशेष छह सदस्यीय टीम कार्यालयों का निरीक्षण कर संबंधित फाइलों को खंगालकर अपने साथ ले गई थी। इस मामले में रेलवे बोर्ड ने स्टोर डिपो के उप मुख्य सामग्री प्रबंधक ऋतुराज का स्थानांतरण कर कार्रवाइयों की खानापूरी कर ली। सूक्ति इंटरप्राइजेज पर मुखौटा फर्म का भी आरोप है।
इस फर्म के साथ रेलवे के एक अधिकारी का भी नाम जोड़ा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि विजिलेंस की छापेमारी और अधिकारी के स्थानांतरण के बाद मामला शांत होने के बाद अंदर-अंदर सुलगता रहा, जो अब पूरी तरह धधक चुका है। इस प्रकरण में पूर्वोत्तर रेलवे की कार्यप्रणाली और उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की कलई खुलती नजर आ रही है।
जानकारों का कहना है कि कुछ अधिकारी तो जुगाड़ लगाकर सामग्री प्रबंधन की कमाई वाली कुर्सी पर बैठे हुए हैं। कुछ वर्षों से बैठे हैं, उनपर रेलवे प्रशासन की भी नजर नहीं पड़ रही। यह प्रकरण सिर्फ सामग्री प्रबंधन का ही नहीं है बल्कि कारखानों और अन्य विभागों की है। जहां मलाईदार पदों पर आसीन अधिकारियों की जांच करने पर सारी हकीकत सामने आ जाएगी।
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